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370 और 400 सीटें जीतने के दावे का सच

अवधेश कुमार
संसद में राष्ट्रपति अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए 370 और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए 400 सीटों की जो बात की उस पर गहन चर्चा स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री द्वारा संसद के रिकॉर्ड में इसे लाने के बाद इस बात का विश्लेषण आवश्यक है कि यह उनका वास्तविक आत्मविश्वास है या अतिआत्मविश्वास। इस संदर्भ में पहला तर्क यही होता है कि पार्टियां चुनाव में विजय के बड़े-बड़े दावे करती हैं और इसे अस्वाभाविक नहीं माना जाता। प्रश्न है कि क्या मोदी ने केवल भाजपा और राजग के पक्ष में माहौल बनाए रखने के लिए बड़ा लक्ष्य दिया है? क्या वे विपक्ष को हतोत्साहित करना या डराना चाहते हैं? या धरातल पर ऐसे कुछ ठोस आधार या माहौल भी हैं?
2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने 300 पार का नारा दिया था और भाजपा ने 303 सीटें जीती। हां ,कई विधानसभा चुनावों में भाजपा सीटों का घोषित लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकी। इसके समानांतर यह भी सच है कि भाजपा ने अपने नारे के अनुरूप या आसपास लक्ष्यों को प्राप्त भी किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा बसपा का गठबंधन हुआ तो भाजपा ने घोषणा की कि हम 50% मत के लिए लड़ रहे हैं और उसे 49.5% मत तथा 63 सीटें प्राप्त हुईं। 2019 में भी विरोधियों और अनेक विश्लेषकों ने प्रधानमंत्री द्वारा दिए लक्ष्य पर कटाक्ष किए थे। 2014 में कोई मानने को तैयार ही नहीं था कि भाजपा अकेले लोकसभा में बहुमत पा सकती है। किंतु ऐसा हुआ। जिस तरह 2014 और 2019 के अंकगणितीय आंकड़े के पीछे ठोस आधार और माहौल की भूमिका थी कुछ वैसा ही दूसरे रूप में 2024 चुनाव के पूर्व भी हम महसूस कर सकते हैं। सेफोलॉजी या चुनाव शास्त्र की दृष्टि से देखें तो सत्ता विरोधी रुझान की अभिव्यक्ति देने वाला विपक्ष आपसी एकता के लिए ही हाथ पैर मार रहा है। सत्ता विरोधी रुझान का इंडेक्स आफ अपोजिशन यूनिटी यानी विपक्षी एकता सूचकांक इस समय 30% से भी कम है। इसके समानांतर सत्ता समर्थक सूचकांक यानी इंडेक्स आफ पोजिशन यूनिटी 70% के आसपास दिखता है। संभव है इसमें आगे और बढोत्तरी हो। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के गठबंधन की कोशिश के एलाइनमेंट बिगड़ने की चर्चा व्यंग्यात्मक लहजे में की लेकिन सच्चाई तो यही है‌‌ कि विपक्षी गठबंधन आकार लेने के पूर्व ही हिल चुका है।
प्रधानमंत्री ने 2014 में सत्ता में आने के पूर्व देश की आर्थिक अवस्था, रक्षा , विदेश नीति से लेकर महिलाओं व युवाओं की स्थिति, समाज की सोच से लेकर प्रशासनिक कार्यक्षमता, भ्रष्टाचार आदि का अपनी दृष्टि से तुलनात्मक विश्लेषण किया। कुल मिलाकर उन्होंने यह कहा कि जिस देश का आत्मविश्वास तक उनकी सत्ता में आने के पूर्व डोल गया था वह अब भविष्य की बड़ी शक्ति या विकसित भारत बनने के आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ गया है। ध्यान रखिए कि भाजपा ने श्री राम मंदिर आंदोलन के साथ 1989 में दो लोकसभा सीटों से 89 तक की छलांग लगाई। लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के बाद 1991 में हुए चुनाव में भाजपा 120 सीटों के साथ देश की दूसरी बड़ी पार्टी का स्थान प्राप्त किया।
यह असर कितना व्यापक है इसका एक प्रमाण नीतीश कुमार का पाला बदल भी है। वैसे तो वह पलटने पलटवाने के माहिर हैं किंतु अपने मंडलवादी चरित्र को हर हाल में बनाए रखना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने जाति आधारित गणना से लेकर विधानसभा में 75% आरक्षण का कानून पारित किया। उनके चरित्र को देखें तो अगर वह भाजपा के साथ होते तो भी छोड़ कर जाना चाहिए था। श्रीराम विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान वे भाजपा में आए, क्योंकि उन्होंने बिहार और देश में उसके प्रभाव को देखा है। मंडलवादी नेता की ऐसी सोच एक व्यक्ति की नहीं है। इसका असर लोकसभा चुनाव पर होगा।
प्रधानमंत्री के भाषण का मूल तत्व यही था कि पूर्व की सरकारों में आत्मविश्वास की कमी थी, वे लोगों की क्षमता पर भी विश्वास नहीं करते थे, दिशा नहीं थी, परिवारवाद और भ्रष्टाचार में फंस थे, इस कारण भारत को जहां होना चाहिए वहां नहीं पहुंचा।‌ इसके विपरीत उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया, परिवारवाद बढ़ने नहीं दिया तथा उम्मीद और आत्मविश्वास के साथ सही दिशा और नीतियां अपनाई जिस कारण भारत आगे बढ़ रहा है। उन्होंने तीसरे कार्यकाल में भारत को तीसरी अर्थव्यवस्था तथा 2047 तक विकसित भारत बनाने के लक्ष्य की घोषणा की। यूपीए सरकार का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2014 में अगले तीन दशक में तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही थी। इसके अनुसार भारत 2044 तक तीसरी अर्थव्यवस्था बनता। यहीं से उन्होंने आज के कदमों को अगले 1000 वर्ष तक के प्रभावों की आधारभूमि बताई। उन्होंने कहा कि 2014 में आने के बाद हमने गड्ढे भरे, 2019 से नवनिर्माण की नींव डाली और अब पुनर्निर्माण करेंगे।यह भी कि श्रीराम मंदिर हमारी संस्कृति और गौरव को ऊर्जा देता रहेगा। इसका अर्थ समझने की आवश्यकता है। यानी 1000 वर्ष से भी पहले एक प्रक्रिया भारत में शुरू हुई, विदेशी आक्रमणकारी आए, अर्थ लूटा, धर्मस्थल नष्ट किये और लाखों का निर्दयतापूर्वक धर्म परिवर्तन किया या मौत के घाट उतारा, स्वतंत्रता के बाद भी सरकारों ने उनको पलटने की कोशिश नहीं की। श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ वह प्रक्रिया पलट गई है। वैसी स्थिति पैदा नहीं होगी कि फिर वह त्रासदपूर्ण प्रक्रिया आरंभ हो। यानी अब भारत विकसित होगा , लेकिन यह शुष्क अर्थव्यवस्था नहीं, इसके पीछे भारत की सभ्यता, संस्कृति, अध्यात्म, सामाजिक समरसता का संपूर्ण योगदान होगा।
जब प्रधानमंत्री ने विपक्ष को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आप सजा प्राप्त व्यक्ति का महिमामंडन करते हैं तो किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। उनका इशारा लालू प्रसाद यादव की ओर था जिनको कांग्रेस‌ व विपक्ष की कई पार्टियां पूरा सम्मान दे रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जिनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप में कार्रवाई हो रही है वो सब एक दूसरे का साथ दे रहे हैं किंतु करवाई जारी रहेगी। इस तरह उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में भी देश में दो स्पष्ट पक्ष बनाए- जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कार्रवाई कर रहा है तथा जो या तो भ्रष्टाचार के मुकदमों का सामना कर रहा है या ऐसे दूसरे का साथ दे रहा है। यह भी मतों के ध्रुवीकरण का एक कारक साबित होगा।

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