रमेश शर्मा
किसानों का बैनर लगाकर एक बार फिर एक बड़ा समूह दिल्ली की सीमा पर जुट गया है। पहली दृष्टि में यह केवल किसानों का प्रदर्शन नहीं लगता। किसानों के वेश में कुछ ऐसे तत्व भी हो सकते हैं जो देश की प्रगति और सद्भाव का वातावरण बिगाड़ना चाहते हैं। मीडिया में जो तस्वीरें आ रहीं हैं, उनसे लगता है कि तैयारी महीनों से की गई है। कुछ ट्रैक्टर ऐसे हैं जो बेरीकेट्स तोड़ सकें और चालक को आँसू गैस के प्रभाव से बचा सकें।
इस आंदोलन के लिये तिथियों का निर्धारण और यह अवसर भी साधारण नहीं है। यह एक ऐसा समय है जब भारत एक नई करवट ले रहा है। प्रगति की ऊँचाइयाँ छूने की ओर तो बढ़ ही रहा है। साथ ही सामाजिक सद्भाव और समन्वय का भाव भी प्रगाढ़ हुआ है। यही नहीं प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने भारत के भावी विकास का जो ‘ज्ञान का सम्मान’ मंत्र दिया है इसमें अन्नदाता अर्थात किसान प्रमुख है। उनकी कुछ नीतियों में प्रत्यक्ष और कुछ नीतियों में परोक्ष रूप से किसानों का हित चिंतन स्पष्ट दिखता है। यह केन्द्र और राज्य सरकारों की किसान हितैषी नीतियों का ही परिणाम है कि आज भारत कृषि उत्पाद का निर्यातक देश बना। अपनी इसी नीति से एक कदम आगे भारत सरकार ने अपने समय के किसान नेता चौधरी चरण सिंह और कृषि विकास केलिये नीतियाँ बनाने का सुझाव देने वाले स्वामीनाथन को भारत रत्न सम्मान दिया गया। किसान आंदोलन के समय का चयन ही नहीं आंदोलन करने का तरीका भी वातावरण बिगाड़कर सरकार के प्रयासों पर पानी फेरने वाला है। अभी आरंभिक दिनों में आंदोलन का जो स्वरूप सामने आया है यह केवल अपनी माँगों की ओर ध्यानाकर्षक करना भर नहीं लगता। इससे पूरी दिल्ली का जन जीवन अस्त व्यस्त होने लगा है। यदि दिल्ली और आसपास का जीवन अस्त व्यस्त हुआ। गति में अवरोध आया तो निसंदेह यह विकासगति को अवरुद्ध करेगा। आँदोलन की तैयारी और तरीके से ही यह प्रश्न खड़ा होता है कि यह इसमें वे तत्व तो शामिल नहीं हो गये जो अराजकता फैलाकर देश की प्रगति अवरुद्ध करना चाहते हैं।
किसी भी परिवार, समाज या देश की प्रगति सभी स्वजनों को परस्पर सद्भाव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त एक सावधानी की भी आवश्यकता होती है। जब भी कोई देश प्रगति की दिशा में आगे बढ़ता है तब ईर्ष्यालु शक्तियाँ आन्तरिक अशांति पैदा करके अवरोध उत्पन्न करने का षड्यंत्र करती हैं। भारत ने अपनी प्रगति का एक अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी ने वर्ष 2047 तक भारत को विश्व की सर्वश्रेष्ठ आर्थिक शक्ति बनने का संकल्प व्यक्त किया है। यह असंभव भी नहीं है। आज दुनिया के अधिकांश देश आर्थिक मंदी के दौर में हैं, भारत के लगभग सभी पड़ौसी देश घोर आर्थिक संकट के दौर में हैं वहीं भारत में आर्थिक स्थिरता और प्रगति की रफ्तार बढ़ीं है। यह तथ्य संसार की उन सभी शक्तियों की नींद उड़ाने वाला है जो भारत की प्रगति से ईर्ष्या करते हैं। वे दोनों दिशाओं में षड्यंत्र कर सकतीं है। भारत का सामाजिक वातावरण बिगाड़ने की दिशा में भी और अराजकता पैदा कर प्रगति की गति अवरुद्ध करने की दिशा में भी।
हम आज के भारत में प्रगति की दिशा और लक्ष्य के साथ सामाजिक वातावरण को भी देखें तो सद्भाव और उल्लास के इस वातावरण ने भविष्य की प्रगति लक्ष्य को पूरा करने का स्पष्ट संकेत दिया है। अयोध्या में रामलला के अपने जन्मस्थान पर विराजमान होने से पूरे देश में एक विशेष सांस्कृतिक राष्ट्रभाव का बातावरण बना। यह सद्भाव भारत के भावी लक्ष्य पूर्ति केलिये आवश्यक भी है। लेकिन यदि पिछले दस दिनों के घटनाक्रम पर दृष्टि डालें तो यह विचार बलवती होता है कि कोई है जो भारत में सद्भाव भी बिगाड़ना चाहता है और अराजक वातावरण भी बनाना चाहता है। सद्भाव बिगाड़ने केलिये हल्दवानी और बरेली में कुछ घटनाएँ घटीं जिन पर बंगाल और हैदराबाद के दो राजनेताओं के भड़काऊ ब्यान भी आए लेकिन जन मानस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसके तुरन्त बाद अब यह किसान आंदोलन आरंभ हुआ।
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