Home » सत्ता हो विपक्ष, राजनीति तो स्वाभाविक है

सत्ता हो विपक्ष, राजनीति तो स्वाभाविक है

  • उमेश चतुर्वेदी
    विपक्षी कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने बजट को लेकर राजनीति की है। विपक्ष का आरोप है कि इस बजट में नीतीश कुमार और एन चंद्रबाबू नायडू ने अल्पमत सरकार को समर्थन देने की कीमत वसूली है। आरोप यह भी है कि सरकार बचाने के लिए बीजेपी ने बिहार और तेलंगाना को विशेष पैकेज दिया है, जबकि अन्य राज्यों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। आरोप को बढ़ाते हुए विपक्ष यहां तक कह रहा है कि यह पूरे देश का बजट नहीं है। कांग्रेस तो यहां तक कह रही है कि मौजूदा बजट उसके चुनाव घोषणा पत्र की कॉपी है।
    जहां तक बजट में राजनीति का सवाल है तो शायद ही कोई सरकार या दल होगा, जिसने अपने कार्यकाल में प्रस्तुत बजट में राजनीति ना की होगी। हर राजनीतिक दल की अपनी विचारधारा है, उसका अपना एजेंडा होता है, उसका अपना वोट बैंक होता है। बजट हो या अन्य सरकारी फैसले, हर राजनीतिक दल और सरकार अपने कदम उठाते वक्त उनका ध्यान रखती है। इसके साथ ही हर राजनीतिक दल अपने भावी और लक्षित वोट बैंक को लुभाने के लिहाज से भी फैसले लेता है। हर राजनीतिक दल की चाहत होती है कि उसका मौजूदा वोट आधार बढ़े। इस लिहाज से भी वह अपने राजनीतिक फैसले लेता है और उसकी सरकारें भी अपनी नीतियां इसी हिसाब से बनाती और बढ़ाती हैं। इस नजरिए से देखें तो अगर मोदी सरकार ने नीतीश और नायडू के राज्यों को कुछ विशेष सहूलियतें दी है तो कोई गलत नहीं है। अगर बिहार बाकी राज्यों की तुलना में पिछड़ा है, वह जनसंख्या पलायन का दंश झेलने को मजबूर है तो हर सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उस देश के साथ कदमताल करने के लिए बिहार को अगर सहूलियत देनी पड़ी तो दे। मदद का हाथ बढ़ाना पड़े तो बढ़ाए। अगर आंध्र प्रदेश को भी मदद की दरकार हो तो मिलनी चाहिए। सिर्फ बिहार और आंध्र ही नहीं, जो राज्य पिछड़ा है, उसे आगे लाने और उसे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मदद की स्पष्ट नीति होनी चाहिए। अव्वल तो हम देश को एक इकाई के तौर पर देखने का दावा करते हैं। अपना संविधान नागरिक को देश की मूल इकाई घोषित करता है। इस लिहाज से हर नागरिक बराबर है। लेकिन आर्थिक और सामाजिक नजरिए से देखें तो हर नागरिक बराबरी की बेंच पर नहीं बैठा है। समान मतदान और कानून के सामने बराबरी के अधिकार ने एक हद तक बराबरी की इस अवधारणा को जिंदा जरूर रखा है। यह बात और है कि अक्सर अमीर और गरीब के लिए कानूनी पेच और प्रक्रियाएं, यहां तक कि न्यायिक अवधारणा भी बदल जाती है। इन बातों को छोड़ दें तो कम से कम आर्थिक आधार पर बराबरी की ओर बढ़ने की कोशिश होनी चाहिए। प्रशासनिक सहूलियत और सांस्कृतिक आधार पर हमने राज्य गठित कर लिए तो इसका यह मतलब नहीं कि उनकी असमानताओं को अनदेखी की जाए। किसे नहीं पता है कि बिहार के उत्तरी हिस्से में हर साल कोसी नदी प्रलय लेकर आती है। जिससे तकरीबन आधार बिहार नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर रहता है। इसी तरह समूचे देश को पता है कि तेलंगाना के अलग होने के बाद हैदराबाद आंध्र की राजधानी नहीं रहा। उसे राजधानी बनाने के लिए संसाधन चाहिए ही होंगे। इसलिए अगर बिहार और आंध्र को सहूलियतें कुछ ज्यादा मिली भी हैं तो उसे राजनीतिक चश्मे से देखने की बजाय जमीनी हकीकत के लिहाज से समझा जाना चाहिए।
    वैसे यह भी अर्ध सत्य ही है कि बाकी राज्यों को बजट में कुछ नहीं मिला। जबकि इस बजट में अगर रेल परियोजनाएं हैं, अगर कृषि बजट को सवा लाख करोड़ से बढ़ाकर एक करोड़ 52 लाख करोड़ कर दिया गया है, अगर सड़क परियोजनाओं की बाढ़ लाई गई है, अगर केंद्रीय करो में राज्यों का हिस्सा बढ़ाया गया है तो इससे किसी एक ही राज्य का भला नहीं होना है, बल्कि देश के हर राज्य को भला होना है। बजट में आदिवासी लोगों के लिए बजट में वित्त मंत्री पूर्वोदय योजना लेकर
    चाहे सरकार को विपक्ष, सबका दावा है कि उनकी राजनीति का उद्देश्य देश के लोगों का जीवन स्तर सुधारना है। सवाल यह है कि जब सबका यही उद्देश्य है तो कल्याणकारी योजनाएं कोई भी लाए, उसे खुश होना चाहिए। कांग्रेस को तो वाकई में प्रसन्न होना चाहिए कि उसका वायदा इतना ताकतवर रहा कि उसे अपनाने के लिए उसकी कट्टर विरोधी बीजेपी की सरकार को मजबूर होना पड़ा। लेकिन हकीकत में कांग्रेस खुश नहीं है, उसे लगता है कि सरकार ने सत्ता के जरिए उसका मुद्दा लपक लिया है। कांग्रेस को डर है कि अगर इस प्रस्ताव को ईमानदारी से लागू कर दिया गया तो उसकी ओर आकर्षित हो रहे युवाओं के आकर्षण में कमी आ सकती है। जिसकी वजह से उसे सियासी नुकसान हो सकता है या भविष्य में जितने फायदे मिलने की उम्मीदें रहीं हैं, वह पूरा नहीं हो पाएगा।
    सत्ता संभालने की बात हो या उसके विरोध की, सबका उद्देश्य जब राजनीति ही है तो फिर सरकारी कदमों में राजनीति ना होने की उम्मीद पालना बेमानी ही कहा जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी अगर राजनीति में हैं तो वह संत की भूमिका निभाने के लिए नहीं हैं और अगर राहुल भी राजनीति में हैं तो वह अध्यात्म की सेवा करने के लिए नहीं हैं। इसलिए बजट हो विरोध, राजनीति होगी। लिहाजा बजट को लेकर आरोप लगाना कि यह राजनीति बजट है, उसका कोई मतलब नहीं। राजनीति तो यह समझती ही है, आम वोटरों को भी यह जल्द से जल्द समझ लेना चाहिए।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd