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मंगल पांडेय के स्वाभिमान की चिंगारी क्रांति का दावानल बनी

  • रमेश शर्मा
    प्रसिद्ध क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय 1849 में 22 वर्ष की आयु में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना मे बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34 वीं बटालियन मे भर्ती हो गए। अपनी विभिन्न पदस्थापना में उन्होंने अंग्रेज अफसरों का भारतीयों के प्रति शोषण और अपमान जनक व्यवहार को देखा था जिससे उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा था । उनकी इन्फ्रेन्ट्री का केन्द्र बंगाल का बैरकपुर था। बीच बीच में बैरकपुर आते थे। तभी नये कारतूसों को लेकर चर्चा चली। यह बात प्रचारित हुई कि इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी है। यह एनफ़ील्ड बंदूक थी जो 1853 में सिपाहियों के लिये आई थी । लेकिन दो तीन साल स्टोर में पड़ी रही और 1856 में सिपाहियों को दी गई। यह 0.557 कैलीबर की इंफील्ड बंदूक थी। इससे पहले ब्राउन बैस बंदूक सिपाहियों के पास थी जो बहुत पुरानी हो चुकी थी। इसे बदलकर नयी बंदूक दी गई थी जो मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली प्रिकशन कैप का प्रयोग किया जाता था।परन्तु नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस के बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। इस बात को लेकर सिपाहियों में असंतोष उभरने लगा ।तथा इन कारतूसों का उपयोग न करने का वातावरण बनने लगा। सिपाहियों ने अपनी समस्या से अंग्रेज अधिकारियों को अवगत कराया पर अधिकारियों ने इसका समाधान निकालने के बजाय उन सैनिकों पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया जो इन कारतूसों के प्रति वातावरण बना रहे थे । इसमें मंगल का नाम सबसे ऊपर पाया गया। इसलिये अधिकारियों ने मंगल पांडेय को दण्ड देकर रास्ते पर लाने का निर्णय लिया।
    मंगल पाण्डेय को पहले एक बैरक में बंद करके बेंत मारने की सजा दी गई। तब 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान में परेड का आयोजन हुआ। इसमें वे दो अंग्रेज अधिकारी भी भाग लेने वाले थे जो इन कारतूसों के उपयोग पर जोर दे रहे थे। इनमें लेफ़्टिनेण्ट बाउ भी था। परेड करते हुये जैसे ही बाग सामने आया क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय ने बाउ पर गोली चला दी। बाउ घायल होकर गिर पड़ा । जनरल जान ह्यूसन ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर जमादार ने मना कर दिया। सारी पलटन सर झुकाकर खड़ी रही। 6 अप्रैल 1857 को कोर्ट मार्शल हुआ। उन्हे मृत्युदंड मिला। इसके लिये 18 अप्रैल 1857 की तिथि निर्धारित की गई। किन्तु इससे दस दिन पहले 8 अप्रैल को ही उन्हें फाँसी दे दी गई। उन्होंने जिस क्रांति का उद्घोष किया था वही आगे चलकर पूरे देश में एक विशाल दावानल बनी। क्राँतिकारी मंगल पाण्डेय के बलिदान के एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर ने क्रांति का उद्घोष किया और दिल्ली को अंग्रेजों से मुक्त कराया। यह विप्लव था जिससे अंग्रेजों को यह संदेश बहुत स्पष्ट मिल गया था।

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