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- डा मनमोहन प्रकाश
पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं, और स्वयं प्रकृति के फल- फूलने में बारिश से प्राप्त स्वच्छ मीठे जल (अलवणीय जल)का विशेष महत्व है।जो पानी पृथ्वी पर उपलब्ध है उसमें से लगभग 97 प्रतिशत पानी खारा है और पीने योग्य नहीं है।जो तीन प्रतिशत मीठा जल उपलब्ध है वो भी नदी, झरने,झील, बर्फीले पहाड़ों,वाष्प , जमीनी पानी आदि विभिन्न रुपों में उपलब्ध है।सतह पर उपलब्ध मीठे सीधे पीने योग्य जल की मात्रा तो एक प्रतिशत से भी कम है।इसी उपलब्ध मीठे पानी में से मनुष्य को दैनिक जीवन से लेकर व्यवसायिक जीवन तक की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। जमीन के अंदर और जमीन की सतह के मीठे जल का स्रोत एक मात्र बारिश ही है। उसमें भी समस्या यह है कि मनुष्य ने अपने अविवेक पूर्ण व्यवहार और भोगवादी प्रवृत्ति से उपयोगी सतही जल की उपलब्धता को जहां एक तरफ कम किया है वहीं मवेशियों से लेकर स्वयं मनुष्य की जनसंख्या को बेतहाशा बढ़ाया है । पेड़-पौधे,जीव- जंतु, किसान से लेकर सभी खास और आम लोग तथा शासन- प्रशासन साल भर पानी की निर्बाध आपूर्ति के लिए वर्षा ऋतु का इंतजार करते हैं,मन ही मन ईश्वर से अच्छी बारिश की प्रार्थना करते हैं । सभी का मानना है कि अच्छी बारिश सभी जल स्रोतों यथा -नदी, तालाब,लेक, रिजर्वायर, बांध, झरने तथा जमीन के अंदर के पानी आदि को आगामी कुछ महीनों से लेकर कुछ साल तक के लिए अभयदान देने के लिए आवश्यक है,साथ ही सतही बहते पानी के शुद्धि करण की प्रक्रिया के लिए जरूरी भी है ।जमीन के अंदर के मीठे पानी का भविष्य भी कमोवेश बारिश पर ही टिका हुआ है। बरसात के निर्धारित समय से देर से आने,कम होने या न होने पर चिंतित मानव मन को इन्द्र देव को मनाने के लिए विभिन्न टोने-टोटके से लेकर पूजा- पाठ आदि का साहार लेने में कुछ भी हिचकिचाहट नहीं है। मानव को पानी की किल्लत होने पर तो उसकी एक-एक बूंद का महत्व समझ में आता है और ऐसी स्थिति में मानव जल का मितव्ययिता से उपयोग भी करता हुआ नजर आता है, मन ही मन कसम भी खाता है कि वह भविष्य में पानी का ज़रूरत से ज़्यादा उपयोग नहीं करेगा। किन्तु पानी की किल्लत दूर होते ही वह अपनी सारी कसमें और बायदे भूल कर पानी का दूरपयोग करने से बाज नहीं आता है।यहि मानव का स्वभाव जल समस्या को पैदा भी करता है और विकराल भी बनाता है। वस्तुत: मानव को पानी के महत्व को समझते हुए इसकी सहज सरल निरंतर उपलब्धता के लिए अपनी ओर से भी कुछ प्रयास अवश्य करना चाहिए , मसलन (1) न्यूनतम आवश्यकता के सिद्धान्त का पालन अथार्त ‘पानी के कम या ज्यादा होने’ पर , दोनों ही स्थितियों में पानी का न्यूनतम आवश्यक उपयोग करना चाहिए अथार्त जीवन में पानी के अपव्यय से बचते हुए हमेशा कम से कम पानी में काम चलाने की आदत डालना चाहिए।(2)जल संग्रह के लिए सरकार से लेकर जनता तक को प्रयास करना चाहिए।