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तस्वीर वैसी नहीं जैसा विरोधी बता रहे

  • अवधेश कुमार
    अब जब लोकसभा चुनाव का एक चरण बाकी है नेताओं, पार्टियों और विश्लेषकों के दावों पर बात किया जाना आवश्यक है। विरोधी दलों, नेताओं और उनका समर्थन करने वाले मुख्य मीडिया, सोशल मीडिया के पत्रकारों, एक्टिविस्टों ने ऐसा माहौल बनाया है मानो 4 जून के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का अंत हो जाएगा और उसकी जगह विपक्ष के गठबंधन की सरकार बनेगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब चौथे दौर के साथ बहुमत एवं पांचवें दौर के साथ 310 सीटों तक पहुंचने की बात की तो ऐसे लोगों ने उसका उपहास उड़ाना शुरू कर दिया। आजकल डिबेट में भी पूछा जा रहा है कि अब भाजपा 400 से आकर 300 की बात कैसे करने लगी है? न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न गृह मंत्री अमित शाह ने कभी कहा है कि हमारा 400 पार का दावा खत्म हो गया है। सरकार में वरिष्ठ क्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दूसरे नंबर पर आते हैं लेकिन नेतृत्व और नियंत्रण के आधार पर देखें तो प्रधानमंत्री के बाद गृह मंत्री अमित शाह ही सरकार और संगठन के दूसरे मुख्य निर्णायक हैं। इन दोनों ने 400 पार का दावा छोड़ नहीं है तो विरोधियों की बात कैसे मान ली जाए कि भाजपा ने 300 तक का मन बना लिया है। 4 जून को किसको कितनी सीटें आएंगी इसकी भविष्यवाणी जोखिम भरी होगी। किंतु क्या देश में ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि बहुसंख्य मतदाता मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की सीमा तक विद्रोह कर दे? इसी के साथ यह भी प्रश्न है कि क्या विपक्ष ने अपनी छवि ऐसी बना ली है कि लोग वर्तमान परिस्थितियों में उनके हाथों सत्ता सौंपने का निर्णय कर लें? निष्पक्ष होकर विचार करेंगे तो इन दोनों प्रश्नों का उत्तर हां में नहीं आ सकता है। तीन चरणों के मतदान में कमी से माहौल ऐसा बनाया गया मानो लोग मोदी सरकार से रुष्ट थे जिस कारण मतदान गिरा है। यह भी अजीब बात है कि सामान्यतः मतदान घटने को सत्ता के पक्ष का संकेत माना जाता था। हालांकि 2010 से मतदान के घटने या बढ़ने से किसी की सत्ता जाने या आने के संकेत की धारणा खत्म हो चुकी है। विपक्ष का यह दावा कैसे मान लिया जाए कि भाजपा के मतदाता नहीं आ रहे हैं और उनके मतदाता निकल रहे हैं? क्या जिन परिस्थितियों में और जिन अपेक्षाओं से 2014 में भारत के लोगों ने 1984 के बाद एक नेता और दल के नेतृत्व में बहुमत दिया और 2019 में सशक्त किया उनके संदर्भ में ऐसी निराशाजनक प्रदर्शन सरकार है कि लोग उसे वाकई हटाने के लिए तैयार हो जाएं? सच यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने उन परिस्थितियों और अपेक्षाओं के संदर्भ में कुछ ऐसे काम किए हैं जिनकी उम्मीद उनके अनेक समर्थकों ने नहीं की थी। भाजपा को राजनीति में संघ विचारधारा का प्रतिनिधि माना जाता है। हिंदुत्व, हिंदुत्व आधारित राष्ट्र भाव और वैश्विक दर्शन इसके मूल में है। इस कारण देश का बहुत बड़ा वर्ग उससे हिंदुत्व के मामलों पर विचार और व्यवहार में प्रखरता की उम्मीद करता है।
    नरेंद्र मोदी सरकार ने पहले दिन से इस दिशा में पूर्व सरकारों से अलग मुखर भूमिका निभाने की कोशिश की। यह नहीं कह सकते कि हिंदुत्व के मामले में जितनी अपेक्षाएं थीं सब पूरी हुई पर जो कमी पहली सरकार में थी वह अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद काफी हद तक खत्म हुईं हैं। उदाहरण के लिए किसी ने कल्पना नहीं की थी कि सरकार धारा 370 को एक दिन में समाप्त कर देगी।
    विश्व भर में भारत में वांछित आतंकवादियों की लगातार हत्याएं हो रही हैं। कौन कर रहा है कैसे कर रहा है इस विषय पर अलग-अलग मत हो सकते हैं। कनाडा ने भारत सरकार पर आरोप लगाया तो अमेरिका ने भी आतंकवादी पन्नू की हत्या के प्रयास के पीछे भारत की भूमिका का उल्लेख किया है। पाकिस्तान लगातार कह रहा है कि भारत की एजेंसियां ही उसके देश के अंदर नागरिकों की हत्याएं करा रहा है। पाकिस्तान में जितने को मारा गया वह सब आतंकवादी थे। भारत विरोधी आतंकवादियों में पूरी दुनिया के अंदर दहशत पैदा हो चुका है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दुनिया की सबसे तेजी से विकास करता हुआ देश भारत है। ऐसा नहीं है कि लोगों की सारी अपेक्षाएं पूरी हो गई हैं और हर व्यक्ति सुख समृद्धि और निश्चिंतता की अवस्था में पहुंच गया है। िक यूपीए सरकार की निराशाजनक स्थिति से उलट सकारात्मक और आशाजनक तस्वीर अवश्य है।
    उम्मीदवारों के चयन, गठबंधन आदि को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं और समर्थकों के अंदर असंतोष और नाराजगी देखी गई है जो स्वाभाविक है मोदी और शाह का नेतृत्व, प्रबंधन, नियंत्रण, जगह-जगह नेताओं से संवाद करने, उन्हें संभालने की क्षमता तथा उसके साथ केंद्र से प्रदेश के स्तरों पर विश्वसनीय लोगों के समूह की सक्रियता का सामना विपक्ष करने की स्थिति में नहीं है। भाजपा का समर्थन और विरोध दोनों के पीछे उसकी विचारधारा को लेकर निर्मित सोच होती है।
    भारत और दुनिया भर के विरोधी अगर मोदी सरकार को हर हाल में सत्ता से हटाना चाहते हैं तो उसके पीछे मूल कारण इस विचारधारा के आधार पर खड़ा होता हुआ स्वाभिमानी भारत ही है जिसे वह पसंद नहीं करते या जो उनके लिए खतरा हो सकता है। भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग इस विचारधारा को समझ कर खड़ा है और उसे लगता है कि हमारे सामने राजनीति में एक मात्र विकल्प इस समय भाजपा ही है। विरोधी भारतीय राजनीति में आए इस बदलाव की शक्ति को अभी तक नहीं पहचान सके। प्रधानमंत्री ने अपने इंटरव्यू में कहा कि पहले केवल मोदी करते थे और बाद में इसमें योगी को भी जोड़ लिया। कानून व्यवस्था के प्रति योगी सरकार की सख्ती और सांप्रदायिकता के आरोपों की चिंता न करते हुए कठोरतापूर्वक कदम उठाने के कारण लोगों में अलग प्रकार की धारणा बनी है।
    विरोधियों का एक वर्ग हमेशा दुष्प्रचार करता रहता है कि अमित शाह योगी की लोकप्रियता से ईर्ष्या रखते हैं। सच यही है कि उनको मुख्यमंत्री बनाने के पीछे मोदी और शाह दोनों की भूमिका थी। ऐसी स्थिति में यह मान लेना कि विपक्ष के प्रचार के अनुरूप लोगों ने सरकार को हटाने का मन बना लिया है किसी के गले नहीं उतर सकता। आईएनडीआईए घटकों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जिम्मेवार और देश के लिए दूरगामी वाली सोच, कार्ययोजना एवं नेतृत्व की छवि प्रस्तुत नहीं की है। इसलिए यह मत मानिए कि देश भर के मतदाता उनके दावों के अनुरुप मतदान कर रहा है।

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