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गीतों की शब्द शक्ति से राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान जागरण की यात्रा

रमेश शर्मा 
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में करोड़ों प्राणों के बलिदान हुये । ये बलिदान साधारण नहीं थे। इन बलिदानों का आहवान करने वाले शब्द साधकों की भी एक धारा रही है जिन्होंने अपने शब्दों की शैली और गीतों के माध्यम से राष्ट्र जागरण का अभियान छेड़ा। यह अभियान स्वतंत्रता के पहले भी चला और स्वतंत्रता के बाद भी । अपनी रचनाओं से राष्ट्र जागरण करने वाले ऐसे ही कालजयी रचनाकार हैं कवि प्रदीप जिन्होंने जीवन भर अपने ओजस्वी गीतों से पूरे राष्ट्र चेतना की अलख जगाई। स्वतन्त्रता के पूर्व यदि उनके गीतों में संघर्ष केलिये आह्वान था तो स्वाधीनता के बाद राष्ट्र निर्माण की उत्प्रेरणा। स्वाधीनता के पूर्व दूर हटो ‘ये दुनिया वालो ये हिन्दुस्तान हमारा है’ और स्वतंत्रता के बाद- ‘ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आँख में भर लो पानी’ जैसे अमर गीत के रचयिता कवि प्रदीप ही हैं। वे दुनिया के उन विरले गीतकारों में से हैं जिनका हर गीत लोकप्रिय हुआ।
उन्होंने दो हजार से अधिक गीत लिखे इसमें लगभग 1700 गीत फिल्मों में आये और राष्ट्रभक्ति के ही सौ से अधिक गीत हर देशवासी की जुबान पर चढ़ गये । ऐसे अमर गीतों के गीतकार कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश में उज्जैन जिले के अंतर्गत बड़नगर में हुआ। उनके पिता रामचंद्र द्विवेदी आर्य समाज से जुड़े थे । घर में राष्ट्रसेवा सांस्कृतिक गरिमा का वातावरण था । इसलिये प्रदीपजी मन और विचार बचपन से राष्ट्र और संस्कृति चेतना से भरे थे।
पढ़ाई के दौरान ही उनकी भेंट उस समय के एक प्रखर और प्रभाव शाली कवि गिरिजा शंकर दीक्षित से हुई । दीक्षित जी अपने समय में कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय कवि और उनके शिक्षक भी थे । उनके मार्गदर्शन गीत जीवन की यात्रा आरंभ हुई । प्रदीपजी ने 1939 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और शिक्षक बनने की तैयारी भी । पर गीत रचना निरन्तर रही । उनके शिक्षक दीक्षित जी के पिता बलभद्र प्रसाद जी भी अपने समय के लोकप्रिय गीतकार थे और उनके कुछ गीत फिल्मों में आये। वे प्रदीप जी के गीतों से बहुत प्रभावित थे । उन्ही दिनों प्रदीपजी ने “चल चल रे नौजवान एक गीत लिखा। दीक्षित जी ने यह गीत मुम्बई भेज दिया । यह गीत एक फिल्म नौजवान में आ गया । फिल्म लोकप्रिय हुई और गीत भी । यह फिल्म 1940 में रिलीज हुई थी ।
इस गीत के साथ प्रदीप जी रातोंरात पूरे देश में लोकप्रिय हो गये । 1942 में उनका दूसरा गीत मानों भारत छोड़ो आंदोलन का एक मंत्र बन गया । यह गीत था -आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है । यह गीत समाज को आव्हान करने वाला था आँदोलन के दौरान उस समय हर गली चौराहे पर गाया गया । 1944 में उनके एक और गीत “दूर हटो ऐ दुनिया वालो, यह हिन्दुस्तान हमारा है” ने फिर पूरे देश में तहलका मचा दिया। अंग्रेजी सरकार ने उनके गीतों को भड़काने वाला माना और गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया । कवि प्रदीप गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गये । बाद में फिल्म निर्माताओं ने मध्यस्थता की और प्रशासन को फिल्म स्क्रिप्ट केलिये इन गीतों की आवश्यकता बताई तब जाकर वारंट निरस्त हुआ।
प्रदीपजी ने स्वतंत्रता के बाद जागृति जैसी फिल्मों के लिये नये अंदाज से गीत लिखे । हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकल के आज भी लोकप्रिय है। उन्होंने 1954 में बच्चों को समझाया कि आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झाँकी हिन्दुस्तान की। स्वतंत्रता की इस यात्रा के बीच ही 1962 में भारत चीन युद्ध आ गया। उस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने कितनी विषम परिस्थिति में भारत राष्ट्र की रक्षा की । वे कहानियाँ दिल को दहलाने वाली है। सैनिकों के बलिदान पर उनका गीत ” ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आँख में भर लो पानी की रचना की । जिस भाव से प्रदीप ने इस गीत की रचना की उसी भावना से लता जी ने गाया। इस गीत के बोल आज भी हृदय को छू जाते हैं।

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