रमेश शर्मा
अंततः रामलला अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर विराजमान हो गये। कितनी पीढ़ियां यह सुखद पल देखने का सपना संजोये संसार से विदा हो गईं । संतों का संघर्ष और बलिदान भी निरंतर रहा। और जब संतों के संघर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शक्ति सहभागिता एवं प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के संकल्प की त्रिवेणी बनी तो सपना सकार हो गया ।
बाईस जनवरी विश्व इतिहास केलिये एक अमर स्मृति बन गई है । यह कलिकाल की दीपावली का दिन था। रामलला के अपने जन्मस्थान पर विराजमान होने से केवल अयोध्या नगरी ही नहीं संवरी अपितु पूरे संसार ने उल्लास की नई अंगड़ाई ली है।
संतों का संघर्ष और बलिदान : े संतों का संघर्ष और बलिदान न कभी रुका और न कभी थका। भारत पर हमलों और विध्वंस का दौर सातवीँ से आरंभ हुआ था। तब हमलावरों का उद्देश्य लूट और नारियों का अपहरण था उनके निशाने पर राजमहल और देवस्थान रहे। रक्षा के लिये दोनों प्रकार की शक्तियाँ सामने आईं। राजशक्ति भी और संत शक्ति भी। जब स्थानीय राजशक्ति का क्षय हो गया तब धर्म स्थानों की रक्षा के लिये संतशक्ति ने ही संघर्ष किया और प्राणों का बलिदान दिया।
संतों का यह संघर्ष देश के हर कोने में हुआ। अयोध्या में निरंतर रहा। पहले आक्रमणकारी सालार मसूद से लेकर जन्मस्थान की मुक्ति तक । बाबर के हमले के बाद की घटनाओं का विवरण तो बाबरनामें से लेकर लखनऊ गजेटियर तक लूटपाट, पुजारियों की हत्या मूर्तियां तोड़ने का विवरण भरा पड़ा है । जिन संतों, साधुओं और पुरोहितों के बलिदान के प्रसंग इतिहास में मिलते हैं उनमें सबसे पहला नाम महात्मा श्यामनंदजी महाराज का है । वे मंदिर के मुख्य पुजारी थे। जब भीटी के राजा महताब सिंह का सेना सहित बलिदान हो गया तब महात्मा श्यामनन्द जी के नेतृत्व में संत महात्माओं और जन सामान्य ने मोर्चा लिया और बलिदान हुये। दूसरा नाम पंडित देवीदीन पाण्डेय का है। वे अयोध्या के समीप सनेथू नामक ग्राम निवासी थे और जन्मस्थान मंदिर में भगवान राम की सेवा में। बाबर के हमले और मंदिर विध्वंस करने पर पं. देवीदीन पाण्डेय ने आसपास के संतों और क्षत्रिय समाज को एकत्रित किया और मंदिर में तैनात बाबर की सेना पर धावा बोला । यह युद्ध पं. देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में ही लड़ा गया और बलिदान हुये। हुमायूं के समय स्वामी महेश्वरानंदजी ने सन्यासियों की एक सेना बनाई और रानी जयराज कुमारी हंसवर से सहयोग माँगा ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शक्ति की सहभागिता : संतों द्वारा आरंभ किये गये जन्म स्थान पर प्रतिष्ठापना संघर्ष को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहभागिता से निर्णायक गति मिली । पूरे देश की भावनाएँ तो थीं पर उन भावनाओं को संगठित कर दिशा देने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया । यूँ तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के साथ ही संतों के अभियान का समर्थक रहा है फिर भी माना जाता है कि 1966 में आरंभ हुये गौरक्षा आँदोलन से गति तेज हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी की गोरखपुर और काशी यात्रा में संतों ने उनके सामने अयोध्या का विषय रखा । चर्चा है कि 1961 में सुन्नी बक्फ बोर्ड की सक्रियता बढ़ने से संतों में चिंता बढ़ी और संतों ने संघ से सहयोग की अपेक्षा की । संघ के बारे में कहा जाता है कि वह अचानक कोई विषय नहीं उठाता । पहले विषय को समझता है, जन भावनाओं का अध्ययन करता है फिर आगे बढ़ने की तैयारी होती है ।
‘बजरंग दल की है ललकार, ताला खोले यह सरकार’ इस पदयात्रा में हजारों की संख्या में साधु-संत, युवा चल पड़े और ‘आगे बढ़ो जोर से बोलो, जन्मभूमि का ताला खोलो’, ‘जब तक ताला नहीं खुलेगा, तब तक हिंदू चैन न लेगा’ आदि नारे भी लगे। विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और रामजन्म भूमि मुक्ति अभियान समिति ने 1984 में तालों में बंद रामलला के बड़े-बड़े बैनर 40 ट्रकों पर लगाए और उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश में यात्रा निकालकर सामाजिक जागरण किया । देशभर में राम शिलापूजन आरंभ हुआ जो देश के तीन लाख से ज्यादा गांवों और कस्बों तक पहुंचा । भारतीय जनता पार्टी ने 1989 से राममंदिर का मुद्दा अपने एजेण्डे में लिया । यह माना जाता है कि संघ की सलाह पर ही भाजपा ने राम मंदिर को अपने एजेण्डे में लिया होगा ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संकल्प : अयोध्या में भगवान राम जन्मस्थान के गौरव की प्रतिष्ठापना यदि संतों के संघर्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय सहभागिता से हो सकी तो इसमें तीसरा महत्वपूर्ण आयाम है प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति। मोदी जी प्रधानमंत्री तो 2014 में बने । पर वे लगभग तैंतीस वर्ष पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता श्रीलालकृष्ण आडवाणी की रामजन्म मुक्ति संकल्प रथ यात्रा के समन्वयक थे । बिहार में रथयात्रा के रोके जाने के बाद मोदीजी श्री मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या आये और संकल्प व्यक्त किया कि अब जन्मस्थान की मुक्ति के बाद ही अयोध्या आयेंगे।
मोदीजी ने प्रचार से दूर रहकर लगभग पूरे भारत की यात्रा की और जन जागरण किया। न्यायालयों के निर्णय तो इससे पहले भी आये थे लेकिन तब प्रत्येक सरकार ने उनके क्रियान्वयन में तुष्टीकरण का संतुलन बिठाने का प्रयास किया। जिस प्रकार प्रातःकालीन सूर्योदय के निमित्त हजारों पलों की आहूति होती है। उसी प्रकार लाखों संतों और भक्तों का बलिदान हुआ, जिस प्रकार ब्रह्म मुहूर्त प्रातःकालीन यात्रा के लिये मार्ग बनाता है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शक्ति ने पूरे देश में वातावरण बनाया और मानो उषाकाल अपनी विनती से भगवान सूर्यदेव को प्रकट करते हैं, उसी प्रकार प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति से अंततः समस्त विश्व ने अपने जन्मस्थान पर रामलला विराजमान होते हुये देखा ।
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