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परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भर होता देश

  • प्रमोद भार्गव
    भारत में एक ओर अर्से से अटकी परमाणु बिजली परियोजनाओं में विद्युत का उत्पादन शुरू हो रहा है, वहीं निजी निवेश से परमाणु ऊर्जा बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सूरत जिले के तापी काकरापार में 22,500 करोड़ रुपए की लागत से बने 700-700 मेगावाट बिजली उत्पादन के दो परमाणु ऊर्जा संयंत्र 22 फरवरी 2024 को राष्ट्र को समर्पित कर दिए। ये देश के पहले स्वदेशी परमाणु ऊर्जा संयंत्र हैं। ये उन्नत सुरक्षा सुविधाओं से युक्त हैं। ये संयंत्र प्रतिवर्ष लगभग 10.4 अरब यूनिट स्वच्छ बिजली का उत्पादन करेंगे। जो गुजरात में बिजली की आपूर्ति के साथ अन्य प्रांतों को भी बिजली देंगे। ये संयंत्र शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ने की दृष्िट से मील का पत्थर साबित होंगे।
    दूसरी तरफ भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों से 26 अरब डाॅलर का निवेश आमंत्रित किया है। यह पहल ऐसे स्रोतों से बिजली बनाने की मात्रा बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम है, जो वायुमंडल में प्रदूषण और तापमान बढ़ाने वाले कार्बनडाड आॅक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते हैं। यह पहली बार है जब परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सरकार निजी कंपनियों से पूंजी निवेश की मांग कर रही है। फिलहाल भारत में परमाणु ऊर्जा कुल बिजली उत्पादन की तुलना में महज दो प्रतिशत भी नहीं है। यदि यह निवेश बढ़ता है तो 2030 तक अपनी स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 50 प्रतिशत गैर जीवाश्म ईंधन के उपयोग से प्राप्त लक्ष्य को हासिल करने में सहायता मिलेगी। वर्तमान में यह 42 प्रतिशत है।
    सरकार इस सिलसिले में रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, अदाणी पावर और वेदांत लिमिटेड सहित पांच निजी कंपनियों से बात कर रही है। प्रत्येक कंपनी को 5.30 अरब डॉलर का निवेश करने को कहा गया है। इस सिलसिले में परमाणु ऊर्जा विभाग और न्यूक्लियर पावर काॅर्पोरेशन आॅफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) ने इस निवेश के बाबत बीते वर्ष निजी कंपनियों के साथ कई दौर की बातचीत की हुई है। सरकार को इस निवेश से 2040 तक 11000 मेगावाट नई परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता की उम्मीद है। फिलहाल एनपीसीआईएल के पास 7500 मेगावाट की क्षमता वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं। इसमें और बढ़ोत्तरी के लिए 1300 मेगा वाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जो निवेश से संभव हो सकेगा। निजी कंपनियों के साथ परमाणु ऊर्जा विभाग की शर्तों में परमाणु संयंत्रों के उपकरणों के साथ भूमि और पानी के प्रबंधन में होने वाला खर्च कंपनियां उठाएंगी। हालांकि संयंत्र के निर्माण, संचालन और उसमें प्रयुक्त होने वाले ईंधन का अधिकार एनपीसीआइएल के पास रहेगा। निजी कंपनी इन संयंत्रों में बनने वाली बिजली बेचकर राजस्व प्राप्त करने की आधिकारी होंगी और एनपीसीआइएल परियोजना के संचालन का शुल्क वसूल करेगा। अतएव कहा जा सकता है कि ये शर्तें व्यावहारिक होने के साथ सरकार और कंपनी दोनों के लिए ही लाभदायी साबित होंगी। साथ ही बड़ी मात्रा में नए कुशल और अकुशल रोजगार का सृजन होगा। परमाणु ऊर्जा परियोजना के विकास का यह हाईब्रिड नमूना परमाणु क्षमता स्थापित करने में भविष्य में अत्यंत मददगार साबित होगा। इस योजना के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 में किसी भी प्रकार के संशोधन की आवश्यकता नहीं पड़ी है।
    हमारे यहां दो तरह के परमाणु रिएक्टर हैं। एक गर्म पानी का जिसे बाॅयलिंग वाॅटर रिएक्टर और दूसरे को प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर कहा जाता है। इनमें प्राकृतिक यूरेनियम का प्रयोग होता है। यूरेनियम के अणुओं के विखंडन के लिए, पहले रिएक्टर में अति उच्च दबाव और तापमान में पानी को खोलाया जाता है, जिससे अणु विखंडित होकर ऊर्जा में परिवर्तित हों। यह प्रक्रिया लगातार टरबाइन में चलती रहती हैं। इसे टरबाइन ब्लेड में चलाने की प्रक्रिया के साथ ऊर्जा उत्सर्जित होने लगती है। दूसरे रिएक्टर में ऊर्जा पानी के भारी दबाव से बनती है और इसमें पानी की मात्रा की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। इसीलिए ये संयंत्र समुद्री तटों पर लगाए जाते हैं। गुजरात के तापी काकरापार परमाणु संयंत्र में बिजली पानी के उच्च दबाव से बनेगी। हालांकि अभी तक परमाणु ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के लक्ष्य को सरकार हासिल करने में असफल रही है। इसका एक प्रमुख कारण परमाणु ईंधन आपूर्ति की कमी रही है। 2010 में इस हेतु मनमोहन सिंह सरकार ने रीपोसेस्ड परमाणु ईंधन की आपूर्ति के लिए अमेरिका से करार किया हुआ है। साथ ही एक बड़ी समस्या परमाणु ऊर्जा उत्पादन के दौरान होने वाली किसी दुर्घटना के लिए कड़े मुआवजा कानूनों का होना है। यही वजह है कि परमाणु संयंत्रों से ऊर्जा उत्पादन के काम वर्षों से अधर में लटके हुए थे, जो अब काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र में बिजली उत्पादन के साथ, लगता है गति पकड़ेंगे।
    दरअसल अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान छह साल से अटके असैन्य परमाणु ऊर्जा अनुबंध पर समझौता नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल की शुरूआत में ही हो गया था। इस करार की बड़ी सफलता यह रही कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व कौशल के चलते भारत को झुकना नहीं पड़ा और अमेरिका संतुष्ट हो गया। इस मुद्दे के सिलसिले में दोनों देशों ने चतुराई यह बरती कि परमाणु ऊर्जा नागरिक उत्तरदायित्व अधिनियम मंा संशोधन की जरूरत नहीं पड़ी। इस परमाणु करार को अमल में लाने के बाबत सबसे बड़ी बाधा ‘परमाणु ऊर्जा नागरिक उत्तरदायित्व अधिनियम‘ का उपबंध 17 था। इस धारा में प्रावधान हैं कि यदि अमेरिकी उपकरणों के कारण भारत में कोई त्रासदी होती है तो परमाणु संयंत्र प्रदायक कंपनी को नुकसान की भरपाई करनी होगी।

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