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इतिहास का काला दिन काकोरी शहीदों को फांसी

  • डॉ. राघवेन्द्र शर्मा
    19 दिसंबर 1927 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए काली तारीख साबित हुआ। क्योंकि इस दिन देश के जाने-माने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को ब्रिटिश शासको द्वारा फांसी पर लटका दिया गया। इनका कसूर यह था कि यह सभी भारत माता के सपूत देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करना चाहते थे। कांग्रेसी असहयोग के चलते उनके सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ तो आजादी की लड़ाई दुष्प्रभावित होती नजर आई। इस पर राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिंद्रनाथ बक्शी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुरारी शर्मा, मुकुंदी लाल, मनमथ नाथ गुप्त आदि ने सरकारी खजाना लूटने की रणनीति अपनाई। इन सभी ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक संगठन के बैनर तले यह निर्णय लिया कि एक ट्रेन सरकारी खजाना लेकर लखनऊ से गुजरने वाली है।
    इसमें हिंदुस्तानियों से लूटा हुआ धन ढोकर ब्रिटिश हुक्मरानों को देने के लिए ले जाया जा रहा है। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के उपरोक्त सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने यह निर्णय सुनाया कि ट्रेन में ढोया जा रहा खजाना भारतीयों का है। अतः इसे भारत की आजादी के काम आना चाहिए। लिहाजा इसे लूटने की योजना बनाई गई।
    नतीजा यह निकला कि लखनऊ के पास स्थित काकोरी गांव में उक्त खजाने को आजादी के सिपाहियों द्वारा लूट लिया गया। इससे जहां स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में नई ताकत पैदा हुई, वहीं अंग्रेजी सरकार कुपित होकर इन सभी आंदोलनकारियों की खोजबीन में जुट गई। एक भेदिए द्वारा की गई मुखबिरी के आधार पर पुलिस ने 7 दिसंबर 19 26 को अशफ़ाकउल्ला खान को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया। उनके साथ रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह भी गिरफ्तार कर लिये गए।
    इन सभी को लगभग 1 साल की अदालती लड़ाई के बाद 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई। अफसोस की बात यह रही कि इस मामले में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर मोतीलाल नेहरू थे। खुद को बदनामी से बचाने के लिए उन्होंने अदालत में अपनी फुफेरे भाई जगत नारायण मुल्ला को वकील के रूप में आगे किया। इन दोनों ने अंग्रेजी शासको के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को हर हाल में फांसी की सजा दिलाने हेतु जी तोड़ मेहनत की। दुर्भाग्यवश इस साजिश के तहत उपरोक्त सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। इतिहासकार बताते हैं कि मोतीलाल नेहरू के फुफेरे भाई जगत नारायण मुला को अंग्रेजों का साथ देने का इनाम तब मिला जब देश आजाद हुआ। कांग्रेस ने जगत नारायण मुल्ला के बेटे आनंद नारायण मुल्ला को लोकसभा का चुनाव लड़ाया। फलस्वरूप वह 10 साल तक सांसद रहे। बाद में उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज भी बनाया गया। अंत में उन्हें कांग्रेस की ओर से राज्यसभा भेजने की जानकारी भी दर्ज है।

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