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आतंकवाद आरोपी अमेरिका ब्रिटेन में सांसद नहीं बन सकते

  • आलोक मेहता
    भारत के बाद ब्रिटिश संसद के चुनाव संपन्न हो गए | तीन महीने बाद नवम्बर में संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव होना है। क्या उन जैसे देशों में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के गंभीर आरोपी सांसद बन सकता है ? कोई लॉस एजेंल्स को अमेरिका से अलग करने की मांग या चीन से फंडिंग लेकर अमेरिका विरोधी गतिविधियां चला सकता है और संसद का सदस्य बन सकता है ? दोनों सवालों का तीखा उत्तर उनसे मिलेगा – नहीं | लेकिन यह महान और अति उदार लोकतान्त्रिक भारत ही है , जहाँ पंजाब और जम्मू कश्मीर में आतंकवादी विभाजनकारी गतिविधियों और भारत विरोधी विदेषी फंडिंग के जेल में बंद आरोपी अपराधी न केवल चुनाव में खड़े हुए , लोगों को भ्रम जाल में फंसाकर और विरोधी उम्मीदवार की कमजोरी से जीतकर लोक सभा की सदस्यता की शपथ भी ले लेते हैं | असम जेल में बंद अमृतपाल और तिहाड़ में बंद शेख अब्दुल राशिद ने 5 जुलाई को सांसद के रुप में शपथ ली | जरा कल्पना कीजिये कि इस तरह के अपराधी यदि अधिक संख्या में पंजाब , जम्मू कश्मीर जैसे किसी राज्य में चुनाव जीतकर विधान सभा और राज्य सरकारों में आ जाएं तो भारत विरोधी किस तरह के प्रस्ताव पारित कर अलगाववाद की आग लगा सकते हैं |
    लोकसभा चुनाव 2024 में अमृतपाल सिंह ने पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट से जीत दर्ज की है। वहीं, शेख अब्दुल राशिद ने जेल में रहते हुए जम्मू-कश्मीर की बारामुला सीट जीती है।अमृतपाल सिंह असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है। कोर्ट ने उसे सशर्त पैरोल दी । शर्त में कहा गया कि जेल से बाहर रहने के दौरान वह कोई राजनीतिक बयान नहीं देगा। ना ही उसका कोई वीडियो बनाया जा सकेगा। उसके फोटो भी नहीं खींचे जा सकेंगे। अमृतपाल को शपथ के लिए चार दिन की जबकि राशिद को दो घंटे की पैरोल मिली |अमृतपाल को पंजाब पुलिस ने पिछले साल अप्रैल में मोगा के रोडे गांव से गिरफ्तार किया था और उसके और उसके संगठन वारिस पंजाब दे के खिलाफ पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा एक महीने तक चलाए गए अभियान के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत आरोप लगाए गए थे। असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक इस व्यक्ति पर पंजाब में ग्यारह आपराधिक मामले और डिब्रूगढ़ में एक मामला दर्ज है, जिसमें जेल में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के अनधिकृत उपयोग का आरोप भी है। एनएसए एक निवारक निरोध कानून है जो औपचारिक आरोप लगाए बिना 12 महीने तक व्यक्तियों को हिरासत में रखने की अनुमति देता है।
    इसी तरह पिछले पांच सालों से राशिद दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं और उस पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत “आतंकवाद के वित्तपोषण” का आरोप है। राशिद ने अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और दो लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की। उसने जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ओमार अब्दुल्ला को ही हरा दिया | जबकि अब्दुल्ला परिवार शेखा अब्दुल्ला – फारूक अब्दुल्ला आज़ादी के बाद से इस प्रदेश की सत्ता की राजनीति के केंद्र रहे हैं | राशिद के जेल में रहने पर उसके बेटों अबरार राशिद और असरार राशिद तथा समर्थकों ने उसके लिए प्रचार किया और मतदाताओं से ” जेल का बदला वोट से ” नारे के साथ उनकी गिरफ्तारी का बदला लेने की अपील की ।
    दोनों की पैरोल या अंतरिम जमानत की अवधि के आधार पर, उन्हें स्पीकर को लिखित रूप से सूचित करना होगा कि वे अपनी कैद के कारण सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हो पाएंगे। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 101(4) में यह प्रावधान है कि यदि 60 दिनों तक संसद के किसी भी सदन का कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना सभी बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो सदन उसकी सीट को रिक्त घोषित कर सकता है। इसके बाद स्पीकर उनके अनुरोधों को सदन की अनुपस्थिति समिति को भेजेंगे ताकि यह निर्णय लिया जा सके कि सांसदों को सदन की कार्यवाही में अनुपस्थित रहने की अनुमति दी जाए या नहीं। इस सिफारिश को स्पीकर द्वारा सदन में मतदान के लिए रखा जाएग | इसी तरह अगर अमृतपाल या राशिद को अदालत से सजा हो जाती है तो वे तुरंत लोकसभा में अपनी सीट खो देंगे। यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (आरपीए) की धारा 8(3) का प्रावधान है, जो सांसदों को किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने और कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाए जाने की स्थिति में अयोग्य घोषित करने का आदेश देता है। नतीजतन, वे सांसद नहीं रहेंगे और रिहा होने के बाद छह साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने पर भी रोक रहेगी।
    भारत ने इसी सप्ताह अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उन देशों को ‘अलग-थलग और ‘बेनकाब’ करने को कहा जो आतंकवादियों को प्रश्रय देते हैं, उन्हें सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराते हैं और आतंकवाद को नजरअंदाज करते हैं |भारत ने चीन और पाकिस्तान पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर आतंकवाद को बेलगाम छोड़ दिया गया तो यह क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा बन सकता है | कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण पढ़ते हुए बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि एससीओ का एक मूल लक्ष्य आतंकवाद का मुकाबला करना है | जयशंकर ने सम्मेलन में कहा, हममें से कई लोगों के अपने अनुभव हैं, जो अक्सर हमारी सीमाओं पर सामने आते हैं |
    हम एक तरफ विश्व मंचों पर आतंकवाद के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं, दूसरी तरफ लोकतांत्रिक और मानव अधिकारों के नाम पर भारत विरोधी विघटनकारी आतंकवादी समर्थक संगठन तथा उनसे जुड़े लोग न केवल सक्रिय हैं , चुनाव और भविष्य के लिए खतरे पैदा कर रहे हैं | कुछ राजनीतिक पार्टियां भी उन्हें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से समर्थन कर रही हैं | सबसे चिंता की बात यह है कि अगले तीन महीनों में जम्मू कश्मीर विधान सभा के चुनाव होने की संभावना है| परिसीमन के बाद चुनाव आयोग भी तैयारियां कर रहा है | कई सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि लोक सभा चुनाव की चार सीटों में से केवल एक पर विवादस्पद आतंकी आरोपी जीत गया , लेकिन विधानं सभा में अनुचित तरीकों और मतदाताओं को आतंकित कर ऐसे भारत विरोधी उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधान सभा में पहुँच गए , तो सुरक्षा के लिए खतरे बढ़ सकते हैं | वहीं इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को प्राथमिकता देना चाहिए | यही नहीं आतंकवादी गतिविधियों के मामलों को सर्वोच्च प्राथमिकता और लगातार सुनवाई के साथ आतंवादियों को कठोर मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा दे देनी चाहिए , ताकि वे या उनके साथी भारत में आतंकवादी हमले न कर सकें |

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