डॉ सुमन चौरे
साँझ पड़े घर से बाहर थोड़ा घूमने-फिरने की नियत से निकली थी। बड़े ही उमंग से उछलते-कूदते, खिलखिलाते हुए बच्चों की टोली निकल रही थी। कुछ सात-आठ से दस-बारह साल तक की उम्र के आठ-दस बच्चों की टोली थी। हरेक बच्चे के पास एक-ही जैसा एक-एक डिब्बा था। बड़े ही जोश से बातें करते हुए जा रहे थे। मैंने सोचा ज़रा सुनुं तो ये बच्चे किस प्रकार की चर्चा करते हुए जा रहे हैं। मैं उनके पीछे-पीछे ही चल दी।
बच्चे अपनी बातों में मशग़ूल थे। चलते-चलते कुछ बच्चे चॉकलेट खोलकर खाने लगे। एक छोटे बच्चे के हाथ से खुली चॉकलेट नीचे गिर गई। दूसरे ने उठाकर उसे दे दी, तब एक बड़ा बच्चा बोला अरे ये मत खाना इंफेक्शन हो जाएगा। तब तक चौथे बच्चे ने छोटे बच्चे से वो चॉकलेट लेकर सड़क के किनारे दूर फेंक दी। मुझसे शायद तीन पीढ़ी बाद के बच्चे थे। इंफेक्शन कैसे हो सकता है ये जानते हैं। जब मैं इनकी उम्र की थी तो इंफेक्शन जैसा शब्द तो कभी सुना ही नहीं था। इसी सोच के बीच मुझे लगा कि पीछे से किसी ने कहा, बहन, नीचे का गिरा हुआ मत उठाना। यह तो धरती माता के हिस्से का है। तुम धरती माता को देने में चूक गई तो उन्होंने तुमसे ले लिया। जब भी हमसे कोई भी खाने-पीने की कोई‘रक्कम’ (वस्तु) ज़मीन पर गिर जाती थी तो उसे उठाकर माथे पर लगाकर कहते थे, धरती माता अनजाने में हुई गलती को माफ़ कर दो। फिर नीचे बैठकर उस रक्कम को क्यारी में डालकर कहते थे कि ‘भुई माता यो तुम्हारो’। खाने की इन्हीं रक्कम से हम बच्चों का नाता भुई से जुड़ता जाता था गहराता जाता था।
धरती की महत्ता क्या है, हमारी आजी माय ने हमें सिखा दिया था कि भोर में बिस्तर छोड़ते ही सबसे पहले भुई को प्रणाम करना। भुई पर पैर रखने से पहले खटिया से झुककर जवणा (दायें) हाथ से धरती छूकर को प्रणाम करना। जब कभी प्रसंगवश गाँव का वह बचपन याद आता है, तो लगता है, हम कितने बड़े अमानती रहे। हमें बिना किसी सायास के अपने बडे लोगों से वह सब कुछ अनायास ही मिलता रहा जो ज्ञान का विशाल भंडार रहा। धीरे-धीरे उम्र के साथ समझ और अनुभव से यह पाया कि पैळा रोटा रसोई में अग्नि का फिर गो माता की और थाली से पहला ग्रास भूई-धरा धरती माता का था । बिना धरती के अन्न की कल्पना तो थोथी है।
बच्चों की टोली जितनी आगे बढ़ती चलती जा रही थी मैं उतनी ही पीछे की ओर जा रही थी। आजी कहती थी सबसे पहले भुई माता की पूजा करना चाहिए, सब कुछ धरती, धरणी का ही है, अगर धरती नहीं होती तो सृष्टि नहीं होती। इसी कारण सर्व प्रथम धरती की पूजा करना चाहिए|घर-परिवार में होने वाली छोटी-सी पूजा हो या फिर यज्ञ, कथा और अनुष्ठान हो भूई माता के पूजन का विधान है।
खेत में बीज बोने के पहले ही धरा का पूजन नहीं किया जाता है अपितु घर बनाने, कुआँ और बावड़ी खोदने, खलिहान बनाने, गाँव के रास्ते बनाने से लेकर नदी के घाट बनाने तक सभी के पहले धरा का पूजन किया जाता है। ये धरा के प्रति भावनात्मक लगाव और कृतज्ञता व्यक्त करने से कहीं अधिक व्यापक भाव है। धरती तो माँ है, जननी है, धरणी है।
अचानक मेरा ध्यान आकाश की ओर गया। मैं कहाँ पहुँच गई थी, कितनी पीढ़ी पीछे पहुँच गई थी। अपने बचपन में।मैंने सामने देखा। बच्चों की टोली छोटी होती जा रही थी। बच्चों के घर आते जा रहे थे, जिनमें वे समाते जा रहे थे। बची मैं अकेली, मैं उस अकेलेपन बिसरे दिन खुशी से जी ली धरती की गोद में।
लेखक डॉ सुमन चौरे, लोक संस्कृतिविद् एवं लोक साहित्यकार हैं