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आस्था के प्रतीक हैं खाटू के श्री श्याम

  • रमेश सर्राफ धमोरा
    हमारे देश में बहुत से ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो अपने चमत्कारों व वरदानों के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हीं मंदिरों में से एक है राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले का विश्व विख्यात प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर। यहां फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को श्याम बाबा का विशाल वार्षिक मेला भरता है। जिसमें देश-विदेशों से आये करीबन 25 से 30 लाख श्रृद्धालु शामिल होते हैं। खाटू श्याम का मेला राजस्थान के बड़े मेलों में से एक है।
    इस मंदिर में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की श्याम यानी कृष्ण के रूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर के लिए कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उन्हें श्याम बाबा का नित नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को तो इस विग्रह में कई बदलाव भी नजर आते है। कभी मोटा तो कभी दुबला। कभी हंसता हुआ तो कभी ऐसा तेज भरा कि नजरें भी नहीं टिक पातीं। श्याम बाबा का धड़ से अलग शीष और धनुष पर तीन वाण की छवि वाली मूर्ति यहां स्थापित की गईं। कहते हैं कि मन्दिर की स्थापना महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद स्वयं भगवान कृष्ण ने अपने हाथों की थी। श्याम बाबा की कहानी महाभारत काल से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे तथा भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या अहिलवती के पुत्र थे। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी मां से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे तीन अभेध्य बाण प्राप्त कर तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध हुये। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे। कौरवों और पाण्डवों के मध्य महाभारत युद्ध का समाचार बर्बरीक को प्राप्त हआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुयी। जब वे अपनी मां से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे तब मां को हारे हुये पक्ष का साथ देने का वचन दिया। महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिये वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर धनुष व तीन बाणों के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की और अग्रसर हुये।
    भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिये उसे रोका और यह जानकर उनकी हंसी भी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को ध्वस्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापिस तरकस में ही आयेगा। यदि उन्होने तीनो बाणों को प्रयोग में ले लिया गया तो तीनो लोकों में हाहाकार मच जायेगा। इस पर कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस पीपल के पेड के सभी पत्रों को छेद कर दिखलाओ। जिसके नीचे दोनो खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तो की और चलाया।
    तीर ने क्षण भर में पेड के सभी पत्तों को भेद दिया और कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा। क्योंकि एक पत्ता उन्होनें अपने पैर के नीचे छुपा लिया था। तब बर्बरीक ने कृष्ण से कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिये वर्ना ये आपके पैर को चोट पहुंचा देगा। कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस और से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी मां को दिये वचन दोहराते हुये कहा कि वह युद्ध में निर्बल और हार की और अग्रसर पक्ष की तरफ से भाग लेगा। कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है। अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।
    ब्राह्मण बने कृष्ण ने बालक बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा। कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिये चकरा गया परन्तु उसने अपने वचन की दृढ़ता जतायी।

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