रमेश शर्मा
स्वाधीनता के लिये संघर्ष जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण है समाज में स्वत्व जागरण का अभियान। यदि स्वत्ववोध नहीं होगा तो स्वतंत्रता की चेतना कैसे जाग्रत होगी । अपने लेखन से स्वत्व चेतना का यही अभियान चलाया आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने । उन्होने अपना सार्वजनिक जीवन स्वतंत्रता संग्राम से आरंभ किया लेकिन शीघ्र ही आँदोलन से अलग होकर साहित्य से सामाजिक जागरण का अभियान चलाया ।
उन्होंने अपने रचना संसार से भारतीय समाज को अपने अतीत की गरिमा एवं गल्तियों दोनों से अवगत कराया । उनकी भाषा बहुत रोचक और प्रवाहमयी थी । कथा कहानी, उपन्यास कविता और आलेख सभी विधाओं के सुप्रसिद्ध रचनाकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त 1891को उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के अंतर्गत ग्राम चांदोख में हुआ था। उनके पिता केवलराम ठाकुर अपने क्षेत्र के एक प्रभावशाली वैद्य थे और आर्यसमाज से जुड़े थे । माता नन्हींदेवी राजस्थान से थीं और भारतीय परंपराओं एवं स्वाभिमान के प्रति समर्पित थीं। जब आचार्य चतुरसेन जी का जन्म हुआ तो परिवार ने उनका नाम चतुर्भुज रखा । उनकी शिक्षा दीक्षा और आरंभिक जीवन इसी नाम से जाना गया
। बालक चतुर्भुज की प्राथमिक शिक्षा पास के गाँव सिकन्दराबाद में हुई । आगे की शिक्षा के लिये जयपुर संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश लिया। 1915 में आयुर्वेदाचार्य एवं संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की । वे बचपन से बहुत भावुक और विचारशील स्वभाव के थे । और इतने कल्पनाशील कि किसी घटना के एक दो वाक्य सुनकर पूरा दृश्यांकन कर दें। लेखन का शौक बचपन से था । छोटी छोटी कहानियाँ लिखा करते थे । शिक्षा पूरी करके दिल्ली आये । दिल्ली में आयुर्वेदिक चिकित्सालय आरंभ किया । संवेदनशील इतने थे कि गरीब और बेबश लोगो का इलाज निशुल्क किया करते थे इससे उनका चिकित्सालय न चल पाया । रोगी तो आते पर चिकित्सालय घाटे में रहा । लगातार घाटे के कारण चिकित्सालय बंद कर दिया । और पच्चीस रुपये के वेतन पर एक अन्य धर्मार्थ औषधालय में नौकरी कर ली । लगभग दो वर्ष के इस संघर्ष के बाद 1917 में, वे डीएवी कॉलेज, लाहौर में आयुर्वेद के प्रोफेसर बने। लेकिन यहाँ भी उनका तालमेल न बैठ सका और त्यागपत्र देकर राजस्थान के अजमेर आ गये । यहाँ उनके ससुरजी का औषधालय था । आचार्य चतुरसेन इसी औषधालय जुड़ गये । यहाँ उनके जीवन में स्थायित्व आया और लेखन कार्य को भी गति मिली। एक लेखक के रूप में उन्होंने अपना नाम चतुरसेन रखा । और वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुये । उन्होंने साहित्य की प्रत्येक विधा में लेखन किया । उपन्यास, कहानी, गीत, संस्मरण, धार्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक जीवन, चिकित्सा, स्वास्थ्य और तिलस्मी आदि विषयों पर भी लिखा । उनके संपूर्ण लेखकीय जीवन में उनके द्वारा सृजित और प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 है।
101