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- प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी
किसी विचारक का कहना है कि तुम्हारा अच्छे से अच्छा सिद्धांत व्यर्थ है, अगर तुम उसे अमल में नहीं लाते। हमारी सुरक्षा चिंताओं से संबंधित कानूनों की भी एक दशक पहले तक यही स्थिति रही है। वर्ष 1947 में तैयार राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को अभी तक ठीक से परिभाषित नहीं किया जा सका है, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 सुरक्षा से ज्यादा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए ज्यादा जाना जाता रहा है। देश को भीतरी-बाहरी खतरों से सुरक्षित रखने के लिए बने ऐसे तमाम कानून कभी उन उद्देश्यों की पूर्ति में सफल नहीं हो पाए, जिनके लिए उनका निर्माण किया गया था। इसके पीछे ईमानदार प्रयासों की कमी रही हो या इच्छाशक्ति की, या फिर दोनों की, देश ने आजादी के बाद के छह दशकों में बहुत कुछ सहा है। सीमाओं के भीतर भी और सीमाओं पर भी।
नई सरकार, नए संकल्प : एक दशक पहले, जब से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार सत्ता में आई, तो कुछ ही समय बाद उसने दिखा दिया कि वह देश की सुरक्षा को लेकर किसी प्रकार की ढिलाई देने के मूड में नहीं है। इस क्रम में वर्ष 2018 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में शीर्ष स्तरीय रक्षा योजना समिति (डीपीसी) का गठन एक अच्छी शुरुआत रही है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाने के लिए गठित किया गया था। भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के अलावा डीपीसी के प्रमुख उद्देश्यों में क्षमता संवर्द्धन योजना का विकास, रक्षा रणनीति से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर काम करना और भारत में रक्षा उत्पादन ईकोसिस्टम को उन्नत बनाना आदि शामिल हैं। एक राष्ट्र का सम्मान, प्रभुत्व और शक्ति इसमें निहित है कि वह भीतरी और बाहरी चुनौतियों से निपटने में कितना सक्षम है और किसी भी संभावित खतरे से कितना सुरक्षित है। महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य ने एक राष्ट्र की सम्प्रभुता के लिए खतरा साबित होने वाली इन चुनौतियों की चार श्रेणियां निर्धारित की थीं। भीतरी खतरे, बाहरी खतरे, बाहरी सहायता से पनपने वाले भीतरी खतरे और भीतर से सहायता पाकर मजबूत होने वाले बाहरी खतरे। लगभग यही खतरे आज भी नक्सलवाद, अलगाववाद, सीमा पर चलने वाली चीनी-पाकिस्तानी गतिविधियों, आतंकवाद, स्लीपर सेल आदि के रूप में सिर उठाते रहते हैं। नए दौर में इनके अलावा भी और कई सुरक्षा चुनौतियां हैं, जो परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित हैं। इनमें आर्थिक सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, साइबर सुरक्षा जैसे और भी कई मुद्दे शामिल हो चुके हैं, जिनके तार भीतर ही भीतर एक-दूसरे से जुड़े हैं।
लेकिन, दैवयोग से वर्ष 2014 में भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक जबरदस्त बदलाव हुआ और देश को एक मजबूत इरादों वाली मजबूत सरकार मिली, जिसका नेतृत्व 21वीं सदी के विश्व के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा किया जा रहा था। और फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में देश में चीजें तेजी से बदलना शुरू हुईं। प्रधानमंत्री जी की दूरर्शिता और अथक प्रयासों के नतीजे हम लगभग हर क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तनों के रूप में देख रहे हैं। अगर हम एक दशक पहले की परिस्थितियों से तुलना करें तो आज भारत की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता को चुनौती देने वाले तमाम तत्व नि:शक्त और सहमे-सहमे से नजर आते हैं। आतंकवाद और सीमापार से होने वाली राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को मुंहतोड़ जवाब मिला है, तो देश के भीतर चलने वाली नक्सलवादी/ वामसमर्थित अलगाववादी गतिविधियों पर भी लगाम लगी है।