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शिक्षा काअधिकार अधिनियम और स्कूलों का विलय

  • डॉ. रामानुज
    सर्व शिक्षा अभियान का प्रमुख उद्देश्य छात्रों का नामांकन, ठहराव,और न्यूनतम दक्षता हासिल करना था।अब समग्र शिक्षा का पूरा ध्यान गुणवत्ता पर है। मौजूदा व्यवस्था के अंतर्गत स्कूलों में अधिगम का न्यून स्तर,शिक्षकों की कमी और विद्यालय प्रशासन संबंधी कठिनाइयों जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है। एक महत्वपूर्ण चुनौती कई छोटे, अकुशल स्कूल चलाना है। छोटे स्कूल पाठशाला ना रहकर भ्रम शाला बन कर रह जाते हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार छात्रों के समान नामांकन के लिए भारत में चीन की तुलना में 5 गुना अधिक स्कूल है तथा भारत के कई राज्यों में 50 फीसद से अधिक प्राथमिक विद्यालयों में 60 से कम छात्रों का नामांकन है।ऐसे में एक अवधारणा स्कूल या पाठशाला विलय की आई। यद्यपि,शिक्षा का अधिकार अधिनियम और सर्व शिक्षा अभियान जैसी पहलों ने शैक्षिक पहुंच में सुधार किया है। मध्याह्न भोजन योजना छात्र कल्याण का समर्थन करती है तथापि आधे अधूरे संसाधनों और एक शिक्षकीय या शिक्षक विहीन पाठशालाओं ने शिक्षा नीतियों की पोल ही खोली है। यू डाइस प्लस की 2022 की रपट के अनुसार भारत में कुल 14 लाख 8हजार1सौ पंद्रह विद्यालय हैं जिनमें से सरकारी विद्यालय 10 लाख 22हजार3सौ 86 सरकारी सहायता प्राप्त 82 हजार 4सौ 80 तथा निजी विद्यालय 34 हजार 7 सौ 53 प्राथमिक पाठशाला 11 लाख 96 हजार 2 सौ 65, हाई स्कूल 15 लाख 4 सौ 52 तथा हायर सेकेंडरी 1 लाख42हजार3सौ98, एवं इनमें 97 लाख से ज्यादा शिक्षक अध्यापन कार्य कर रहे हैं यू डाइस प्लस की ही 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 26 करोड़ 52 लाख 35हजार 8सौ 30 विद्यार्थी विभिन्न प्रकार के विद्यालयों में पंजीकृत है। यहां यह जानना भी उचित होगा कि साल 2021 में विद्यालयों का आंकड़ा 15 लाख 9हजार1सौ36 था इससे साफ पता चलता है कि 1 साल में 1लाख एक हजार 21 विद्यालय बंद हो गए।2019 में विद्यालयों की संख्या 15 लाख 51 हजार थी।ऐसे समय में नई शिक्षा नीति 2020से तीन साल पहले ही नीति आयोग ने वर्ष 2017में”शिक्षण में मानव पूंजी को रूपांतरित करने के लिए सतत कारवाई (सस्टेनेबल एक्शन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग ह्यूमन कैपिटल इन एजुकेशन,साथ ई)कार्यक्रम प्रारंभ किया था।इसके लिए झारखंड ,ओड़ीसा, एवम मध्यप्रदेश को आदर्श माना गया।झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा में कार्यान्वित, साथ-ई परियोजना दक्षता और बेहतर गुणवत्ता के लिए स्कूलों के विलय पर केंद्रित है। नीति आयोग की रिपोर्ट में ऐसे छह मुद्दों की पहचान की गई है जिन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में बड़े पैमाने पर संबोधित करने की आवश्यकता है जैसे, मजबूत राजनीतिक समर्थन के साथ उप स्तर पर एवं अपर्याप्त संसाधन वाले स्कूलों के मुद्दे को सीधे संबोधित करना, बड़े पैमाने पर शिक्षक रिक्तियों के मुद्दों का समाधान करना, शिक्षक गुणवत्ता एवं शिक्षण शास्त्र में सुधार करना, अधिगम (सीखने) के परिणामो के प्रति जवाबदेही लागू करना, प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा और प्रासंगिक मातृभाषा शिक्षा और प्रासंगिक मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा पर ध्यान देना, शिक्षा विभागों में शासन संरचनाओं को मजबूत करना अर्थात शिक्षा प्रशासन को मजबूत करना। शिक्षा विलय योजना से शैक्षिक लागत में पर्याप्त बचत हुई, जिसका उदाहरण झारखंड में स्कूल विलय से 2400 करोड़ रुपये की बचत है।2017 में लॉन्च की गई शिक्षा में मानव पूंजी को बदलने के लिए सतत कार्रवाई (एसएटीएच-ई) परियोजना का उद्देश्य भारत में स्कूली शिक्षा को बदलना है। इसमें स्कूलों का विलय, उपचारात्मक कार्यक्रम, शिक्षक प्रशिक्षण, भर्ती की निगरानी, जिला और राज्य स्तर पर संस्थानों का पुनर्गठन और प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) का उपयोग करना शामिल है। प्रबंधन सूचना प्रणाली, लक्ष्य निर्धारित करने, योजना बनाने, संसाधन आवंटन और प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में मदद करता है। प्रगति की निगरानी राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय संचालन समूह (एनएसजी) और केंद्रीय परियोजना निगरानी इकाई (सीपीएमयू) द्वारा की जाती है, और राज्य स्तर पर राज्य परियोजना निगरानी इकाइयों (एसपीएमयू) द्वारा की जाती है।
    स्कूलों के विलय से संसाधन समेकन हो जाता है,जैसा कि 4,380 स्कूलों वाले झारखंड में देखा गया है, महत्वपूर्ण लागत बचत और कुशल संसाधन उपयोग होता है।
    बड़े स्कूल बेहतर सुविधाएं और अधिक विविध सहकर्मी समूह प्रदान करते हैं, जिससे सीखने का अनुभव बढ़ता है।समेकन, शिक्षक तैनाती को तर्कसंगत बनाने, बेहतर शिक्षक-छात्र अनुपात सुनिश्चित करने में मदद करता है।कम लेकिन बड़े स्कूलों के साथ, शासन और निगरानी अधिक प्रभावी हो जाती है, बेहतर शासन से स्कूल का प्रदर्शन बेहतर होता है और स्कूल छोड़ने की दर में कमी आती है, जैसा कि स्कूल विलय के परिणामों में देखा गया है। जैसा कि साथ- ई परियोजना में देखा गया है।स्कूल विलय में वस्तुतः निम्न विचार ध्यान में रखना चाहिए जैसे,पहुंच सुनिश्चित करना,यह सुनिश्चित करने के लिए परिवहन और बुनियादी ढांचा ऐसा होना चाहिए कि छात्र बिना किसी कठिनाई के बड़े, विलय किए गए स्कूलों में जा सकें। दूर-दराज के इलाकों के छात्रों के लिए बसों की व्यवस्था करने के लिए मानक आदर्श खूंटी जिले के दृष्टिकोण का अनुकरण किया जा सकता है।शिक्षक युक्तिकरण पर ध्यान देना चाहिए, सीखने के परिणामों को बढ़ाने के लिए विलय किए गए स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता और गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए।नजदीकी स्कूलों को बनाए रखा जाना चाहिए,विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा के लिए, दूर स्थित स्कूली शिक्षा के कारण स्कूल छोड़ने की बढ़ती दर को रोकने के लिए।स्कूल विलय से कुछ चिंताएं उपजती हैं ,जैसे शिक्षा तक पहुंच, स्कूलों के विलय से यात्रा की दूरी बढ़ सकती है, जिससे संभवतः स्कूल छोड़ने की दर बढ़ सकती है।

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