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शून्य भोजन वाले बच्चों की रपट वास्तविक या सनसनी

  • डॉ. रामानुज
    जनसंख्या स्वास्थ्य शोधकर्ता एस.वी. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के सुब्रमण्यन और अध्ययन करने वाले उनके सहयोगियों ने एक समीक्षा पत्रिका जेएएमए नेटवर्क ओपन में अपना एक बहुचर्चित शोध प्रकाशित किया है। जेएएमए नेटवर्क ओपन पत्रिका में प्रकाशित इस रपट ने भारत सरकार की नींद उड़ा दी है। रपट का नाम है ‘शून्य भोजन वाले बच्चे’ यानि जीरो फूड चिल्ड्रन। जनसंख्या स्वास्थ्य और भूगोल के प्रोफेसर सुब्रमण्यम और हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट स्टडीज के वैज्ञानिक रॉकली किम ने 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों के छह से 23 महीने की उम्र के 276,379 बच्चों का विश्लेषण किया, जिनकी देखभाल करने वालों ने उनके भोजन के बारे में जानकारी दी थी।अध्ययन में कहा गया है कि नवजात शिशुओं को 6 महीने की उम्र तक केवल स्तनपान पर निर्भर रहना चाहिए 6 महीने की उम्र के बाद शिशुओं और छोटे बच्चों की बढ़ती पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अकेले मां का दूध पर्याप्त नहीं है अध्ययन के दौरान भारत में लगभग 67 लाख बच्चे ऐसे पाए गए जिन्होंने 24 घंटे के दौरान कुछ नहीं खाया इन बच्चों को ‘शून्य भोजन वाले बच्चे’ यानि जीरो फूड चिल्ड्रन की श्रेणी में रखा गया। जीरो फूड चिल्ड्रन का आशय है कि 6 से 23 माह की उम्र के वे बच्चे जिन्होंने पिछले 24 घंटे में कोई तरल या ठोस पदार्थ का सेवन भोजन के रूप में नहीं किया है।193 से अधिक देशों वाले विश्व में यह अध्ययन 92 देशो में किया गया है और वे देश गरीब,अति गरीब श्रेणी में सम्मिलित है जो मुख्यतः दक्षिण अफ्रीकी देश एवं दक्षिण पश्चिम एशिया महाद्वीप के देश हैं। अध्ययन के मुताबिक भारत में जीरो फूड चिल्ड्रन की संख्या अब तक की सर्वाधिक है।भारत की यह दर गिनी,बेनिन, लाइबेरिया माली जैसे पश्चिम अफ्रीकी देशों में प्रचलित दर के बराबर है आशय स्पष्ट है कि भारत में भुखमरी और गरीबी तथा कुपोषण का स्तर दुनिया के अति गरीब देशों के समान है।भारत में, जहां अध्ययन के लगभग आधे बिना भोजन वाले बच्चे थे, जिनका प्रसार 19.3 फीसदी था।अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, बिना भोजन वाले बच्चोंकी व्यापकता विकास की इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान शिशु और छोटे बच्चों के आहार प्रथाओं में सुधार और अधिकतम पोषण सुनिश्चित करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता को उजागर करती है। हावर्ड द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि कुछ देशों में बिना भोजन के बच्चों की प्रचलन दर 21 फीसद तक है।अध्ययन में पाया गया कि बिना भोजन वाले बच्चे अध्ययन आबादी का 10.4 फीसद थे।
    शून्य-भोजन वाले बच्चों का प्रचलन देशों के बीच व्यापक रूप से फैला हुआ है। कोस्टा रिका में, प्रसार 0.1 फीसद था, गिनी में, 21.8 फीसद था। पोषण संबंधी यह मुद्दा पश्चिम और मध्य अफ्रीका और भारत में विशेष रूप से जरूरी है।भारत में कुपोषण और विशेष कर बच्चों में कुपोषण एक ऐसा मुद्दा है जिसे वैश्विक स्तर पर बार-बार उजागर किया गया है जो भारत के विकसित देश बनने की दिशा में शायद सबसे बड़ा रोड़ा है। जीरो फूड चिल्ड्रन अर्थात शून्य खाद्य बच्चों की रपट के मुताबिक भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या एक और जहां 67 लाख से अधिक है वहीं नाइजीरिया में 9लाख 62हजार पाकिस्तान में 8 लाख 49 हजार इथियोपिया में 7 लाख 72 हजारऔर कांगो गणराज्य में तीन लाख 62 हजार है अर्थात हम इन शीर्ष पांच कुपोषित देशों से भी खाद्य सुरक्षा और पोषण के मामले में गैर गुजरे हैं। इस रपट में दिलचस्प बात यह है कि रपट भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत काम करने वाली एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 से 2021 के आंकड़ों का इस्तेमाल कर किए गए शोध के आधार पर तैयार की गई है और दावा किया गया है।6 से 23 माह के उम्र के बच्चों के लिए निरंतर स्तनपान के अलावा पर्याप्त खाद्य पदार्थों की शुरुआत अधिकतम पोषण सबसे महत्वपूर्ण है।

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