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जग की सारी पीड़ाओं का भार अकेले सहते राम… विजय दशमी पर प्रभु श्रीराम के जीवन पर आधारित वायरल इन कविताओं को एक बार अवश्य पढ़ें

अपने अंत समय में दशरथ के मुख से भी ‘राम’ ही निकला था और बापू का ‘हे राम’ भी चर्चित रहा है! मानव का अंतिम पथ भी ‘रामनाम सत्य ‘से ही गूँजता रहता है! ‘रामराम’ तो हमारे व्यवहार में सदियों से है! हिंदी कविताओं में राम विषयक सामग्री पर्याप्त मिलती है किन्तु हिंदी ग़ज़ल में राम की चर्चा कम ही है विशेषकर कहीं एक पूरी ग़ज़ल में तो बहुत ही कम वर्णन मिलता है प्रभु श्रीराम का!

विजय दशमी के अवसर पर आज “अमन कुमार मुसाफ़िर” की इस ग़ज़ल के साथ अन्य कविताएँ काफी पसंद की जा रही है। इंटरनेट पर वायरल इस ग़ज़ल में उन्होंने राम के प्रारम्भ से उनके विजयी होकर अवध वापस आने का सरल-सहज चित्रण किया है और उनके इस प्रयास पर उन्हें उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान एवं राष्ट्रीय कवि संगम ने सम्मानित भी किया गया है।

रामचरितमानस पर आधारित हिंदी ग़ज़ल

रघुकुल गौरव की प्रतिमानी,
जयति-जयति कोसल महरानी।

मिथिला-कुल के बंधन काटे,
सुभग विदेह देह हुलसानी।

धनुष हटाया शिव का हाथों,
वरण-प्रतिज्ञा नृप ने ठानी।

भूप सहस वे देश-देश के,
सबकी सगरी शक्ति अमानी।

प्रेम-प्रसंगी फुलवारी वह,
गिरा अनयन नयन बिनु बानी।

टूटा धनुष करों राघव के,
वरमाला प्रिय कंठ समानी।

मिथिला-अवध जुड़े मिलते से,
रघुवर की युवराज-कहानी।

कैकैयी के वर उन दो पर,
गहन विपिन की आज्ञा ठानी।

असुर-विनाश हरण-सीता का,
तरु-अशोक वाटिका वितानी।

सिय की खोज सेतु बंधन वह,
रावण-वध प्रभु विजय प्रमानी।

भयी वापसी राज-अवध को,
राम राज्य वरनें मुनि-ज्ञानी।

सुरमय सुर तुलसी से मेरे,
सियाराममय सब जग जानी।

राम-गीत

त्याग सिया का करके बोलो जाने कैसे रहते राम,
जग की सारी पीड़ाओं का भार अकेले सहते राम ।

कह न सके यह बात किसी से खुद का ही तो भाग किया,
सिर्फ प्रजा के अनुरंजन के लिए सिया का त्याग किया,
जग की चिंता थी उनको पर सिय की चिंता ज्यादा थी,
एक तरफ थी सारी दुनिया एक तरफ मर्यादा थी,

सरयू तट पर सिय वियोग में निर्झर-निर्झर बहते राम,
जग की सारी पीड़ाओं का भार अकेले सहते राम ।

चौदह वर्षों के तप का फल पल भर में निस्सार हुआ,
बिना सिया के क्षण भर में ही शून्य उन्हें संसार हुआ,
पतझड़ से जीवन में सुख से पुष्प सुगंधित बिछा दिए,
जग के आँसू देख प्रभू ने अपने आँसू छिपा दिए,
आँसू की निर्मल धारा संग सिया-सिया ही कहते राम,
जग की सारी पीड़ाओं का भार अकेले सहते राम ।

राम पर मुक्तक


भक्ति रस में रमा नाम बन जाओगे
एक पावन कोई धाम बन जाओगे
कृष्ण बन जाओगे कर्म को साधकर
काम को त्याग दो राम बन जाओगे

आपको बता दें, वर्तमान में अमन कुमार मुसाफ़िर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शोधार्थी है। इनकी रचनाएं विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है तथा 2017 में इनका साझा ग़ज़ल संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। इन्हें बहुत ही कम उम्र में विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं जैसे मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान आदि द्वारा कविता लेखन के लिए सम्मानित किया गया है।

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