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- प्रमोद भार्गव
वर्तमान सदी में अब तक का यह शायद सबसे बड़ा रेल हादसा हैं। ओडिशा के बालासोर में दो सवारी गािड़यों और एक मालगाड़ी की टक्कर में 290 लोगों की मौत हो चुकी है। आंकड़े बताते हैं कि यह हादसा आजादी के बाद हुई सबसे भीषण रेल दुर्घटनाओं में से एक है। हादसे के भीषण होने का पता इस बात से चलता है कि 2000 से ज्यादा बचावकर्मी, एनडीआरएफ के 9 दल, 200 एंबुलेंस, 500 चलित स्वास्थ्य केंद्र और दो एमआई हेलिकाॅप्टर घायलों को निकालने में लगे रहे। एक तरफ भारत ने मोदी युग में रेल में इतना विकास कर लिया है कि वंदे-भारत एक्सप्रेस रेल यूरोपीय, अमेरिकी और एशियाई देशों में निर्यात होने लग जाएगी। लेकिन रेल सुरक्षा से जुड़े तकनीकी विकास में हम अभी भी पिछड़े हुए हैं। फिलहाल रेलवे नेटवर्क में केवल 1455 किमी रेल लाइनों पर ही यह सुविधा काम कर रही है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि रेलवे में सुरक्षा वर्ग से जुड़े करीब 40 हजार पद रिक्त पड़े हुए हैं। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह हादसा किन कारणों से हुआ? रेल राज्य मंत्री राव साहिब पाटिल का कहना है कि यह हादसा मानवीय गलती से हुआ या तकनीकी कारण से, इसके लिए उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की जाएगी।
ज्यादातर रेल हादसे ठीक से इंटरलाॅकिंग नहीं किए जाने और मानवरहित रेलवे पार-पथ पर होते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के केंद्रीय सत्ता पर आसीन होने के बाद ये दावे बहुत किए गए हैं कि डिजीटल इंडिया और स्टार्टअप के चलते रेलवे के हादसों में कमी आएगी। इसरो ने अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ते समय ऐसे बहुत दावे किए हैं कि रेलवे को ऐसी सतर्कता प्रणाली से जोड़ दिया गया है, जिससे मानव रहित फाटक से रेल के गुजरते समय या ठीक से इंटरलाॅकिंग नहीं होने के संकेत मिल जाएंगे। नतीजतन रेल चालक और फाटक पार करने वाले यात्री सतर्क हो जाएंगे। लेकिन इसी प्रकृति के एक के बाद एक रेल हादसों के सामने आने से यह साफ हो गया है कि आधुनिक कही जाने वाली डिजीटल तकनीक से दुर्घटना के क्षेत्र में रेलवे को कोई खास लाभ नहीं हुआ है। बावजूद रेलवे के आला अफसर दावा कर रहे थे कि पिछले तीन साल में छोटे-मोटे हादसों को छोड़ दिया जाए तो कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ, जो अब हो बालासोर में हो गया है।
भारतीय रेल विश्व का सबसे बड़ा व्यावसायिक प्रतिष्ठान है, लेकिन इस ढांचे को फिलहाल विश्वस्तरीय नहीं माना जाता। गोया इसकी सरंचना को विश्वस्तरीय बनाने की दृश्टि से कोशिशें तेज होने के साथ अंजाम तक भी पहुंच रही हैं। इसी का परिणाम है कि वंदे भारत रेल इसी साल जून के अंत तक देश के सभी राज्यों में दौड़ने लगेगी। इससे 225 नगर और महानगर जुड़ जाएंगे। वर्तमान में चार दिन में एक वंदे भारत रेल का निर्माण हो रहा है। अगले एक महीने के भीतर हर 15 दिन में लगभग 10 वंदे भारत रेलें निर्मित होने लगेंगी। इसके बाद इस रेल का यूरोपीय, अमेरिकी और एषियाई देषों में निर्यात भी होने लग जाएगा।
फिलहाल देश में रेलवे विकास एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) और भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की मदद से अनेक तकनीकी सुरक्षा प्रणालियां अस्तित्व में लाई गई हैं। इसरो के साथ शुरू की गई परियोजना के अंतर्गत एक ऐसी सतर्क सेवा शुरु की गई है, जिसके तहत चैकीदार रहित क्राॅसिंग के चार किमी के दायरे में आने वाले सभी वाहन-चालकों और यात्रियों को हूटर के जरिए सतर्क रहने की चेतावनी दी जाने लगी है। इसमें इसरो को उपग्रह की सहायता से रेलों के वास्तविक समय के आधार पर ट्रेक करने के इंतजाम किए गए हैं।