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राहुल, हिन्दू हिंसक नहीं, आपकी धारणा नफरती है

  • डॉ. मयंक चतुर्वेदी
    राहुल गांधी संसद के माध्यम से देश को ज्ञान दे रहे हैं, वह हिन्दू धर्म पर अपना व्याख्यान कर रहे हैं और संपूर्ण हिन्दू समाज को हिंसक बता रहे हैं । कह रहे हैं, “…जो लोग खुद को हिन्दू कहते हैं वो 24 घंटे हिंसा-हिंसा-हिंसा, नफरत-नफरत-नफरत, असत्य-असत्य-असत्य करते हैं।” बाद में जब उनकी बातों पर भारतीय जनता पार्टी घोर विरोध करती है, तब फिर वे अपने हिन्दू विरोधी नैरेटिव को भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर मोड़ देते हैं। संसद में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भगवान शिव का इस्तेमाल करते हुए जो हिन्दू धर्म पर बोला है, वह वास्तव में उनके अंदर भरे हिंदू घृणा के भाव को दर्शाता है।
    क्या इस तरह का दृश्य पहली बार सामने आया है? क्या किसी कांग्रेसी या राहुल गांधी के परिवार या उनकी सत्ता, जहां भी है या रही वहां हिन्दू घृणा नहीं प्रदर्शित की जाती? आप हिन्दू घृणा का प्रदर्शन तो छोड़िए कांग्रेस ने तो हिन्दू विरोध में इतने अधिक अपराध किए हैं कि कभी उससे वह मुक्त भी होना चाहे और उसके लिए वह कितना भी बड़ा प्रायश्चित कर ले तब भी कांग्रेस उन सभी से कभी मुक्त नहीं हो सकती है।
    हिन्दू नफरती होता तो फिर ये होता ! : सोचने वाली बात यह है कि यदि हिन्दू हिंसक होता तो क्या किसी कांग्रेसी सरकार या नेता की हिम्मत होती कि वह उसके विरोध में तमाम नियम एवं कानून बना पाता? यदि हिन्दू हिंसक होता तो क्या उसके आराध्य देव के होने और उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह कांग्रेस के नेता कभी खड़ा कर पाते? और यदि हिन्दू हिंसक होता तो कभी भारत की सीमाएं सिकुड़ती? दुनिया के नक्शे में कभी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, मालदीव, मलेशिया, फिजी, म्यांमार, भूटान समेत क्या आज इन देशों का यही अस्तित्व होता जो वर्तमान में है? आज ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिनके उत्तर इन्हीं प्रश्नों में छिपे हैं।
    कांग्रेस सत्ता के लिए हिन्दुओं को शुरू से आपस
    में बांटने-लड़ाने का काम कर रही : देखा जाए तो ऐसे अनेक तर्क हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दू कभी हिंसक नहीं रहा है, स्वाभिमानी जरूर रहता रहा है। लेकिन आधुनिक भारत में एक नैरेटिव एक लम्बे समय से सेट करने का प्रयास हो रहा है कि जो कुछ गलत हो रहा है वह भारत में बहुसंख्यक हिन्दू जनता के होने के कारण से हो रहा है। वस्तुत: संसद में राहुल गांधी ने जो किया और जिस तरह से पहले भी करते रहे हैं उस सब का एक ही निहितार्थ है कि हिन्दुओं को बांटों, विभिन्न हिन्दू जातियों के बीच आपसी खाई पैदा करो, आपस में लड़ाओं, उनके विश्वास को तोड़ों, परस्पर अविश्वास पैदा करो और उन्हें इतना अधिक भ्रमित कर दो कि वह अपना आत्मविश्वास ही खो बैठें।
    बहुत हैं राहुल गांधी के हिन्दू विरोधी बयान : यह सार्वजनिक रिकॉर्ड में मौजूद है, जिसमें राहुल गांधी ये कहते नजर आते हैं कि ‘मंदिर जानेवाले ही लड़की छेड़ते हैं’। ‘भारत को आतंकवादियो से ज्यादा हिन्दुओं से खतरा है’। जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में जब ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं!’, ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह..इंशाअल्लाह..’ जैसे देश विरोधी नारे उस अफजल के समर्थन में लग रहे थे जोकि भारत का गुनहगार और संसद पर अटैक का मास्टर माइण्ड था, उस वक्त भी हमने देखा कि राहुल गांधी उनके साथ हाथों में हाथ लिखे खड़े नजर आ रहे थे। यह गंभीर और गहराई से सोचनेवाली बात है कि जो लोग देश के टुकड़े करने की मंशा रखते हैं, राहुल उनके साथ खड़े नजर आते हैं। यानी अप्रत्यक्ष रूप में यही माना जाएगा कि राहुल भी देश के टुकड़े-टुकड़े हों, इसके लिए उनका मौन समर्थन है! ये नारे जिनके लिए लग रहे थे, वे लोग कौन है? विचार करेंगे तो ध्यान में आएगा कि देश का शासन, प्रशासन और संविधानिक व्यवस्था जिसकी कि ये सिर्फ वोट की राजनीति और लाभ के लिए हाथ में संविधान की किताब लेकर उसकी रक्षा की दुहाई देते नहीं थकते हैं!
    देश को तोड़ने वाली और आतंकी शक्तियों के साथ खड़े दिखते हैं राहुल : कोई यह कैसे भूल सकता है कि अफजल पार्लियामेंट पर अटैक करनेवाला एक आतंकवादी था। सुप्रीम कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई थी और उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणम मुखर्जी ने उसे माफी नहीं दी थी। जो नारे जेएनयू में लगे उसके अनुसार तो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, जिन्होंने अफजल को सजा सुनाई और वह तत्कालीन राष्ट्रपति जिन्होनें फांसी की सजा में कोई राहत अफजल को नहीं दी थी, वह उसके कातिल हो गए, तब फिर उनके जिंदा रहने पर यदि नारों के जरिए जेएनयू में शर्मिंदगी व्यक्त की जा रही थी और राहुल गांधी का उनको समर्थन मिलता यहां दिखा, अब हम उसके क्या मायने निकालें? जबकि तमाम फोटो एवं वीडियो मौजूद हैं जो साफ गवाही दे रहे हैं कि कैसे उस समय राहुल गांधी इन जेएनयू के टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ हाथ में हाथ डाले खड़े रहे थे। सच पूछिए तो फिलहाल जिस भाषा को संसद में राहुल गांधी गढ़ते हुए दिखाई देते हैं, उसे देखकर और समझ कर लगता यही है कि आज से कई साल पूर्व जेएनयू में घटी टुकड़े गैंग की घटना का खुमार उनके सिर से उतरा नहीं है।
    राहुल गांधी से पूछे जाने वाले प्रश्न : वस्तुत: इसीलिए आज वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव और लोकेंद्र पाराशर हिन्दुओं के हिंसक होने की बात पर यह जरूर पूछ रहे हैं कि ”हिंदू हिंसक होता तो भारत का विभाजन न होता, हिंदू हिंसक होता तो कश्मीर घाटी हिंदुओं से खाली न हो गई होती। हिंदू हिंसक होता तो आतंकी आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े गए अपने देवताओं के मंदिरों की वापसी के लिए अदालतों में कानूनी लड़ाई न लड़ता।”
    अथवा यह कि ”क्या कन्हैयालाल का सर काटने वाले अहिंसक थे क्या गोधरा में राम भक्तों को जिंदा जलाने वाले अहिंसक थे, क्या 1984 में हजारों सिखों को मौत के घाट उतारने वाले अहिंसक थे, क्या कश्मीर घाटी में लाखों हिंदुओं का कत्लेआम करके उनकी बेटियों से बलात्कार करने वाले अहिंसक थे, क्या नैना साहनी को तंदूर में जिंदा जलाने वाले अहिंसक थे, सूची बहुत लंबी है राहुल गांधी ….! जवाब देते देते तुम्हारी अकल ठिकाने आ जाएगी। जनेऊ पहनने से कोई हिंदू नहीं हो जाता ,, उसे हिंदू संस्कृति सीखने के लिए हिंदू सा खून अपनी रगों में प्रवाहित करना होता है।”
    भारत के अधिकांश लोगों का समर्थन भाजपा एवं उनके सहयोगी दलों को जोकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे रख संसदीय चुनाव में उतरे थे, के साथ है। फिर आंकड़ा भी यही कहता है कि देश भर से कांग्रेस को वोट मिले कुल 13 करोड़ 67 लाख, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को 23 करोड़ 59 लाख वोट मिले हैं। गठबंधन मे अन्य दलों का वोट प्रतिशत अलग है, वे भी मोदी के चेहरे पर चुनाव जीते हैं। ऐसे में तो राहुल की हिन्दू हिंसक होने की परिभाषा से जिस किसी ने भी अपने सांसद का चुनाव किया है और उसके आधार पर जिन करोड़ों देशवासियों ने प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को तीसरी बार केंद्र की सत्ता में बैठाया है, वे सभी देश में हिंसा फैला रहे हैं !

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