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सुरों की मलिका लता मंगेशकर

हर्षवर्धन पाण्डे
लता की मखमली और जादुई आवाज की दुनिया दीवानी थी । उनकी आवाज़ दिल को छूती नहीं, बल्कि दिल में बस जाती थी। हर दिल अजीज लता मंगेशकर ने अपनी आवाज से हिंदी सिनेमा की गायकी में ऐसे चार चाँद लगाए कि हर कोई उनका मुरीद हुए बिना नहीं रह पाया । सही मायनों में हिंदी सिनेमा की गायकी की दुनिया को लता ने अपने मधुर स्वर से नई दिशा देने का काम किया। लता दीदी की वो आवाज हर किसी के दिल के तारों को आज भी झंकृत कर देती है। ह
िंदी सिनेमा के 100 बरस से अधिक के सफ़र में लता दीदी की गायकी सिल्वर स्क्रीन पर चार चाँद लगा देती है। एक ऐसी आवाज हिन्दी फ़िल्म संगीत में हमेशा के लिए अमर रहेगी। लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। लता पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। लता मंगेशकर का जन्म के वक्त नाम ‘हेमा’ रखा गया था लेकिन कुछ साल बाद अपने थिएटर के एक पात्र ‘लतिका’ के नाम पर, दीनानाथ जी ने उनका नाम ‘लता’ रखा। लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक क्लासिकल सिंगर और थिएटर आर्टिस्ट थे ।
लता की तीन बहनें मीना, आशा, उषा और एक भाई हृदयनाथ मंगेशकर थे। पांच साल की उम्र में ही लता जी ने अपने पिता से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी और थिएटर में एक्टिंग किया करती थी। जब वो स्कूल गयी तो वहां के बच्चों को संगीत सिखाने लगी लेकिन जब लता जी को अपनी बहन ‘आशा’ को स्कूल लाने से मना किया गया तो उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया।सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर का भी बॉलीवुड में सफर इतना आसान नहीं था। काफी समय तक उन्हें कोई प्रोजेक्ट नहीं मिला । प्रोजेक्ट नहीं मिलने की दो वजहें थीं। एक तो साल 1940 के दौर में जब उन्होंने फिल्मी दुनिया में एंट्री ली बॉलीवुड में नूर जहां और शमशाद का दबादबा था और दूसरा लता की आवाज़ की पिच काफी हाई थी और आवाज़ पतली, ऐसे में उस दौर के चलन में चल रहे गानों के मुताबिक आवाज भी फिट नहीं बैठती थी। प्रोड्यूसर सशधर मुखर्जी ने लता मंगेशकर की आवाज को ‘पतली आवाज’ कहकर अपनी फिल्म ‘शहीद’ में गाने से मना कर दिया था। फिर म्यूजिक डायरेक्टर गुलाम हैदर ने लता मंगेशकर को फिल्म ‘मजबूर’ में ‘दिल मेरा तोडा, कहीं का ना छोड़ा’ गीत गाने को कहा जो काफी सराहा गया ।
लता मंगेशकर के पिता नहीं चाहते थे कि वो फ़िल्मों के लिये गाने गाये लेकिन लता मंगेशकर बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं। लता ने वसंग जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये पहली बार गाना गाया था लेकिन उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया लेकिन वसंत जोगलेकर लता की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए । साल 1942 में उनके पिता इस दुनिया को छोड़ गए और लता मंगेशकर के कंधों पर परिवार को संभालने की सारी ज़िम्मेदारी आ गई । पिता की मौत के बाद लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। इसी वज़ह से लता मंगेशकर ने 1942 से लेकर 1948 तक करीब 8 हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया ।
40 के दशक में लता मंगेशकर जब फिल्मों में गाना शुरू किया तो वो लोकल पकड़कर अपने घर मलाड जाती थी। वहां से उतरकर पैदल स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज जाती। रास्ते में किशोर दा भी मिलते लेकिन वो एक दूसरे को नहीं पहचानते थे। किशोर कुमार लता मंगेशकर की ओर देखते रहते। कभी हंसते। कभी अपने हाथ में पकड़ी छड़ी घुमाते रहते। लता मंगेशकर को किशोर कुमार की ये हरकत अजीब लगती थी ।हिंदी सिनेमा में उन्होंने पहला गाना साल 1943 में गाया। ये गाना था फिल्म ‘गजाभाऊ’ का और इसके बोले थे माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू । हालांकि इस गाने से लता को कुछ खास पहचान नहीं मिल सकी।
लता मंगेशकर खेमचंद प्रकाश की एक फिल्म में गाना गा रही थी। एक दिन किशोर दा भी उनके पीछे-पीछे स्टूडियो पहुंच गए। लता मंगेशकर ने किशोर कुमार की खेमचंद से शिकायत की। तब खेमचंद ने लता को बताया कि किशोर कुमार अशोक कुमार के छोटे भाई हैं। 1948 में म्यूज़िक कंपोज़र गुलाम हैदर ने लता के बड़ा ब्रेक दिया, जिसके बाद उनका संघर्ष का दौर खत्म हुआ और फिल्मी दुनिया में ऐसा सिक्का चला कि लोग उनकी आवाज के दीवाने हो गए । आज भी लता की गायकी सिल्वर स्क्रीन में चार चाँद लगा देती है|
फिल्म ‘मजबूर’ में लता मंगेशकर ने ‘दिल मेरा तोड़ा मुझे कहीं का न छोड़ा’ गाना गया । 1949 में उन्होंने फिल्म ‘महल’ में गाया उनका गाना ‘आएगा आनेवाला’ बेहद पसंद किया गया। इसके बाद उन्होंने ‘दुलारी’, ‘बरसात’ और ‘अंदाज़’ में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा । चंद महीनों में ही लता के प्रति लोगों का नजरिया बदला और उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली और फिर इसके बाद उन्हें मुड़कर पीछे नहीं देखना पड़ा ।
लता मंगेशकर ने फिल्म इंडस्ट्री के सभी दिग्गज म्यूज़िक डायरेक्टर्स और सिंगर्स के साथ काम किया ।1942 से अब तक वो 1000 से भी ज्यादा हिंदी फिल्मों और 36 से भी ज्यादा भाषाओं में गाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया । लता मंगेशकर ने 1950 के दौर में कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी रूहानी आवाज़ का जादू बिखेरकर सुनने वालों को सुकून पहुंचाया।
लता मंगेशकर ने 1950 के दौर में कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी रूहानी आवाज़ का जादू बिखेरकर सुनने वालों को सुकून पहुंचाया। उस दौरान उन्होंने बैजू बावरा, मदर इंडिया, देवदास और मधुमति जैसी हिट फिल्मों में गाने गाए. फिल्म ‘मधुमति’ के गाने ‘आजा रे परदेसी’ के लिए 1958 में लता मंगेशकर को पहला फिल्मफेयर मिला ।

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