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नये भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को बल मिले

  • ललित गर्ग
    विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की 3 मई, 2023 को 30वीं वर्षगांठ है। 1993 में इसकी घोषणा किए हुए तीन दशक बीत चुके हैं, जिसमें हमने दुनिया भर में स्वतंत्र प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त करने की दिशा में पर्याप्त प्रगति देखी है। कई देशों में स्वतंत्र मीडिया के प्रसार और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उदय ने सूचना के मुक्त प्रवाह को सक्षम बनाया है। हालाँकि, मीडिया की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार हमले हो रहे हैं, जो अन्य मानवाधिकारों की पूर्ति को प्रभावित करता है। अनेक देशों में प्रेस की स्वतंत्रता पर सख्त पहरे भी लगे हैं। इन महत्वपूर्ण स्थितियों और खतरों का मुकाबला करने के लिए ही प्रेस की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और सूचनाओं तक पहुंच को केंद्र में रख कर विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि किसी भी देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है।
    विश्व समुदाय कई संकटों का सामना कर रहा है- संघर्ष और हिंसा, आतंक एवं अलगाव, युद्ध एवं राजनीतिक वर्चस्व, गरीबी एवं बेरोजगारी, लगातार सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ, पर्यावरणीय संकट और दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य और भलाई के लिए चुनौतियाँ आदि जटिलतर स्थितियों के बीच प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका है। लोकतंत्र, कानून के शासन और मानवाधिकारों को आधार देने वाली संस्थाओं पर गंभीर प्रभाव के साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन गलत सूचना और गलत सूचना का प्रसार ने स्वतंत्र प्रेस एवं मीडिया पर अनेक सवाल खड़े किये हैं। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रेस की स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांतों का जश्न मनाने के साथ-साथ दुनिया भर में प्रेस की आजादी का मूल्यांकन करने का अवसर है। यह दिवस मीडिया की आजादी पर हमलों से मीडिया की रक्षा करने तथा मरने वाले पत्रकारों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का कार्य करता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमागर्म खबरें परोसती हैं। प्रेस केवल खबरे पहुंचाने का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह नये युग के निर्माण और जन चेतना के उद्बोधन एवं शासन-प्रशासन के प्रति जागरूक करने का भी सशक्त माध्यम है। प्रेस देश एवं दुनिया की राजनीति और उसके लिए आवश्यक सदाचार का माध्यम रही है। हिंसा, विपत्तियां और भ्रष्टाचार को लेकर भी अनेक पक्ष उसने समय-समय पर प्रस्तुत किये हैं। ”आज हर हाथ में पत्थर है। आज समाज में नायक कम खलनायक ज्यादा हैं।
    प्रसिद्ध शायर नज़मी ने कहा है कि अपनी खिड़कियों के कांच न बदलो नज़मी, अभी लोगों ने अपने हाथों से पत्थर नहीं फंेके हैं।“ प्रेस ने समय-समय पर ऐसी स्थितियों के प्रति सावधान किया गया है, ‘डर पत्थर से नहीं, डर उस हाथ से है जिसने पत्थर पकड़ रखा है।’ महावीर, बुद्ध एवं गांधी का उदाहरण देते हुए बहुत सफाई के साथ प्रेस ने समाज को सजग किया है। प्रेस की आजादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आजादी की रक्षा जरूरी है। यह दिवस प्रेस के सम्मुख उपस्थित विभिन्न झंझावातों एवं संकटों के बीच अपने प्रयासों के दीप जलाये रखने का आह्वान हैं। आज समाज एवं राष्ट्र एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा, अशिक्षित और अनभिज्ञ है, इसलिये यह और भी जरूरी है कि आधुनिक विचार उन तक पहुंचाए जाएं और उनका पिछड़ापन दूर किया जाए, ताकि वे सजग भारत का हिस्सा बन सकें। न केवल भारत में बल्कि दुनिया में प्रेस की स्वतंत्रता को लहूलुहान और जंजीरों में जकड़ने की कोशिशें हो रही हैं। इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थितियों में कैसे भरेगी कलम उड़ान! यही विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर यह एक चिन्तनीय विषय है। भारत में पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। अकबर इलाहाबादी ने इसकी ताकत एवं महत्व को इन शब्दों में अभिव्यक्ति दी है कि ‘न खींचो कमान, न तलवार निकालो, जब तोप हो मुकाबिल तब अखबार निकालो।’ उन्होंने इन पंक्तियों के जरिए प्रेस को तोप और तलवार से भी शक्तिशाली बता कर इनके इस्तेमाल की बात कह गए हैं। अर्थात कलम को हथियार से भी ताकतवर बताया गया है। पर खबरनवीसों की कलम को तोड़ने, उन्हें कमजोर करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निस्तेज करने के लिए बुरी एवं स्वार्थी ताकतें तलवार और तोप का इस्तेमाल कर रही हैं। पिछले दिनों बांग्लादेश में ब्लॉगर्स और बुद्धिजीवियों की हत्या की जो घटनाएं सामने आई हैं, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां पत्रकार कितने सुरक्षित हैं। यह कहानी सिर्फ बांग्लादेश की नहीं, कमोबेश संपूर्ण विश्व की है, जहां कलम के सिपाही जान जोखिम में डालकर लगातार अपना काम कर रहे हैं। हमारे देश में पंजाब एवं कश्मीर में इसी तरह पत्रकारों को अपना बलिदान देना पड़ा है।हिंसा और आतंकवाद से उबरने का रास्ता न तो हिंसक तरीके हैं और न जेल की सलाखें। विकृत मानसिक चरित्र के लिए ये सारे उपादान व्यर्थ हैं। उन्हें रास्ते पर लाकर मनुष्यता की धर्मरेखा को समझाने के लिए एक लक्ष्मण रेखा जरूर खींचनी होगी। यह कार्य प्रेस एवं पत्रकार ही कर सकते हैं। पुरानी कहावत गलत नहीं है कि तलवार से कलम में अधिक शक्ति होती है। तलवार से भी धारदार कलम इतनी प्रभावी है कि इसकी वजह से बड़े-बड़े राजनेता, उद्योगपतियों और सितारों को अर्श से फर्श पर आना पड़ा। इसी कलम की धार ने 70 के दशक में अमेरिका के मशहूर वाटरगेट कांड का फंडाफोड़ कर राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को व्हाइट हाउस से बाहर का रास्ता दिखाया था। इस तरह मशहूर पत्रकार एन. राम और चित्रा सुब्रमण्यम की पत्रकारिता ने जब बोफोर्स तोपों की आड़ में हुए घोटाले को जनता के समक्ष पेश किया तो भारतीय राजनीति में हंगामा मच गया। इसीलिये प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा भी है कि ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस एक आजाद एवं जीवंत प्रेस के प्रति हमारे अविश्वसनीय समर्थन को दोहराने का दिन है जो लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है। आजकल के दौर में सोशल मीडिया संपर्क के एक सक्रिय माध्यम के रूप में उभरी है और इससे प्रेस की आजादी को और बल मिला है।’ यह दिवस पत्रकारों के लिये भी आत्म-मंथन का दिवस है। आज हमारा मीडिया अपना दायित्व ठीक तरीके से नहीं निभा रहा है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया टी आर पी बढ़ाने के लिये खबरों में तड़का लगाने से परहेज नहीं करता। प्रेस के जिन माध्यमों से नैतिकता मुखर हो रही है, वे बहुत सीमित हैं या दायित्वविमुख हैं। प्रभावक्षीण तथा चेतना पैदा करने में काफी असमर्थ हैं।

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