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न्यायपालिका का बेजा राजनीतिक इस्तेमाल

  • अजय सेतिया
    जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि राहुल गांधी सूरत की कोर्ट के फैसले को सैशन कोर्ट में चुनौती देंगे| कांग्रेस इस पर कुछ नहीं बोल रही थी। राहुल गांधी को दो साल की सजा होने के अगले दिन जब उनकी लोकसभा सदस्यता चली गई थी तो उसी दिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई थी| उस बैठक में सूरत
    की कोर्ट के फैसले के खिलाफ राजनीतिक आन्दोलन का फैसला तो हुआ था, लेकिन जिला कोर्ट के फैसले को सैशन कोर्ट में चुनौती देने के बारे में कुछ नहीं कहा गया था| यूथ कांग्रेस के वर्करों ने देश भर में राहुल गांधी को सजा दिए जाने के खिलाफ प्रदर्शन किए, कांग्रेस के सांसद संसद में काले कपड़े पहन कर गए| राष्ट्रपति को ज्ञापन देने के लिए समय माँगा गया, लेकिन जिला सैशन कोर्ट में जाने के बारे में चुप्पी साधे हुए थे| आखिर जर्मन सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की बात ग्यारहवें दिन सही साबित हुई, जब राहुल गांधी ने सूरत की सैशन कोर्ट में जिला कोर्ट के फैसले को चुनौती दी| सैशन कोर्ट ने उन्हें स्थाई जमानत दे दी है, जो आमतौर पर तीन साल से कम की सजा पर मिल ही जाती है, लेकिन कन्विक्शन पर स्टे से इनकार कर दिया| राहुल गांधी चाहते थे कि कन्विक्शन पर तुरंत बहस हो. लेकिन कोर्ट ने उनकी नहीं मानी| वह संभव भी नहीं था, क्योंकि उसके लिए मानहानि का केस करने वाले पूर्नेश मोदी का पक्ष रखने वाला वकील भी होना चाहिए| पूर्नेश मोदी को भी तो समय दिया जाएगा कि उसका पक्ष क्या है| राहुल गांधी की मनमर्जी से तो अदालती कार्यवाही नहीं चल सकती| अदालत ने पूर्नेश मोदी को अपना पक्ष रखने के लिए 10 अप्रैल तक का समय दिया है और राहुल गांधी के कन्विक्शन पर स्टे की याचिका पर 13 अप्रैल को सुनवाई होगी| वैसे सैशन कोर्ट से उन के कन्विकशन पर स्टे हो जाने की पूरी उम्मीद है, लेकिन वहां नहीं भी हुआ, तो हाईकोर्ट से हो जाएगा और जैसे लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता बहाल हुई है, वैसे ही राहुल गांधी की भी हो जाएगी|
    इन 11 दिनों में जिला जज के खिलाफ खूब अभियान चलाया गया| सोशल मीडिया से ले कर रेगुलर मीडिया तक में जिला जज की मंशा पर सवाल उठाए गए| राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उनके सारथी बन कर चलने वाले योगेन्द्र यादव ने एक लेख में जिला जज को मिली पदोन्नति पर सवाल उठाया| इस लेख में लोकसभा स्पीकर की ओर से जारी नोटिफिकेशन पर भी सवाल उठाया गया, जबकि जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 8 (3) के मुताबिक़ राहुल गांधी की सदस्यता अपने आप ही खत्म हो गई थी, लोकसभा सचिवालय का सर्कुलर सिर्फ संबंधित विभागों को सूचित करने के लिए था|
    कपिल सिब्बल ने भी यही बात कही, लेकिन योगेन्द्र यादव ने लिखा कि अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति से मंजूरी नहीं ली गई, जबकि इस मामले में राष्ट्रपति की भूमिका ही नहीं होती| यहाँ तक की मोहम्मद फैजल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस के.एम जोसफ ने भी कहा कि जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 8 (3) के मुताबिक़ सदस्यता का खुद-ब-खुद खत्म हो जाना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि जजों को फैसला देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके फैसले से सांसद या विधायक की सदस्यता जा सकती है| जस्टिस के. एम. जोसफ की यह टिप्पणी न्यायपालिका के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि उन्होंने निचली अदालतों को यह कहने की कोशिश की है कि उप चुनाव रोकने के लिए सांसदों और विधायकों को या तो बरी कर दिया करें या दो साल से कम सजा दिया करें| यह एक ख़ास वर्ग के लिए अलग न्याय व्यवस्था करने जैसा होगा|
    वैसे जस्टिस के.एम. जोसफ की इस टिप्पणी से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि अपने आप सदस्यता खत्म होने का फैसला पांच जजों की संवैधानिक पीठ का फैसला था, जिसे सात जजों की पीठ ही बदल सकती है| राहुल गांधी ने योगेन्द्र यादव जैसे लोगों से लोकसभा स्पीकर को बदनाम करने के लिए यह लेख लिखवाया| उन्हें कोर्ट में जाना ही था, यह बात राहुल गांधी ने जर्मनी और अमेरिका को पहले ही बता दी थी, जिनके इशारों पर वह भारत में लोकतंत्र को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं| क्योंकि यूक्रेन रूस युद्ध के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार ने रूस से कच्चा तेल आयात कर के पश्चिमी देशों को नाराज कर लिया था|
    जब किसी निचली अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाती है तो मुजरिम के खुद हाजिर होने की जरूरत नहीं होती, वकील वकालतनामा पेश करता है और निचली अदालत के फैसले को चुनौती की याचिका लगा देता है| राहुल गांधी जुलुस निकाल कर कोर्ट पहुंचे, बहन प्रियंका गांधी, कांग्रेस के तीनों मुख्यमंत्री और गुजरात के सारे कांग्रेसी विधायक इस जुलूस में शामिल थे| एक आपराधिक मामले में सजा हुई है, उसे ऊपरी अदालत में चुनौती देने गए थे, लेकिन लाव-लश्कर लेकर ऐसे गए, जैसे न्यायपालिका पर हमला करने जा रहे हों| यह न्यायपालिका का अपमान नहीं तो क्या है| राहुल गांधी कोर्ट से मिली सजा का भी राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं, यह बिलकुल वैसे ही होता दिख रहा है, जैसे एक विफल लोकतंत्र वाले देश पाकिस्तान में होता है| राहुल गांधी चाहते हैं कि उन पर हर रोज मानहानि का केस हो, क्योंकि एक मानहानि के केस ने समूचे विपक्ष को उनके पीछे लामबंद कर दिया है, इसलिए वह रोज ऐसी बातें कहते हैं कि उनके खिलाफ मानहानि का केस दायर हो| सूरत जाने से पहले उन्होंने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में फिर से नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि अडानी की कंपनियों में उनका 20 हजार करोड़ रुपया लगा हुआ है| इससे पहले अपनी भारत जोड़ो यात्रा के समय कुरुक्षेत्र में उन्होंने आरएसएस को कौरवों की सेना बता दिया था, हरिद्वार में इस पर भी उनके खिलाफ मानहानि का एक केस दाखिल हुआ है|

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