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पांडुरंग मोघेः एक ध्येयनिष्ठ तपस्वी

  • अरविंद कुमार मिश्रा
    आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में जिस प्रकार घूलमिल चुका है, उसके पीछे 1925 से अब तक लक्ष्यावधि कार्यकर्ताओं की वह साधना है, जिससे संगठन और समाज सम्यक हो चुके हैं। संघ के ऐसे लाखों कार्यकर्ता हैं, जो बिना किसी अपेक्षा के अपना सर्वस्व मातृभूमि के श्रीचरणों में अर्पित करते रहे हैं। पूरे जीवनकाल में उन्हें स्वयं के लिए किसी चीज का आकर्षण नहीं, स्वयं के लिए कोई अपेक्षा नहीं और न ही श्रेय की आकांक्षा। छोटे कद के श्री पांडुरंग मोघे संघ के ऐसे ही विशाल ध्येयनिष्ठ तपस्वी थे। 1963 से संघ के प्रचारक निकलने के लिए उन्होंने अपनी एक अच्छी भली नौकरी छोड़ दी। इसके बाद संघ कार्य करते हुए सागर में आपातकाल के विरुद्ध सत्याग्रह में भाग लिया।
    आपातकाल विरोधी सत्याग्रह और जनजागरण गतिविधियों को भाग लेने के आरोप में उन्हें तत्कालिन प्रशासन ने दमोह की जेल में कैद कर दिया। अविभाजित मध्य प्रदेश में दमोह में जिला प्रचारक के दायित्व में रहे श्री मोघेजी का जन्म महाराष्ट्र के जलगांव जिले में 11 मई 1931 को हुआ था। सुदूर महाराष्ट्र से आकर छत्तीसगढ़ में रचबस कर उन्होंने जिस तरह उन्होंने समाज का कार्य खड़ा किया, यह राष्ट्रकार्य के प्रति उनकी एकात्मता का प्रेरक उदाहरण है। छत्तीसगढ़ में संघ का शायद ही कोई कार्यकर्ता हो जिसके व्यक्तित्व को गढ़ने में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मोघे जी योगदान न रहा हो। धमतरी में जिला प्रचारक रहते हुए उन्होंने संघकार्य की जो नींव रखी उसने कई सेवा भावी कार्यकता गढ़े।
    समाज के प्रत्येक वर्ग तक सर्वस्पर्शी व सर्वव्यापी रूप में समाज कार्य को खड़ा किया। उनके देवलोकगमन पर धमतरी के स्वयंसेवकों ने जहां उनका पितृतुल्य गरिमा के साथ अंतिम संस्कार किया वहीं समाज का प्रत्येक वर्ग उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचा। रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ प्रांत के संघ कार्यालय जागृति मंडल में वह लगभग 20 वर्ष तक कार्यालय प्रमुख के दायित्व पर रहे। ऐसे में प्रांत भर के कार्यकर्ताओं से उनका अपनत्व था। स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी राष्ट्र कार्य के प्रति उनकी गतिशीलता में कोई कमी नहीं थी। मध्य क्षेत्र के माननीय संघचालक डॉ श्री पुर्णेंदू सक्सेना उन्हें पितातुल्य मानते थे। वह जब भी अस्पताल में उन्हें देखने जाते मोघेजी उन्हें समाचार पत्रों से संकलित राष्ट्र जीवन से जुड़ी बातें बताए बिना नहीं रह पाते। कई बार वह अस्पताल के सेवादारों को राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत गीत भी सुनाते थे। उन्होंने स्वास्थ्य अत्यंत विषम होने पर भी 7 मई व्हीलचेयर पर बैठकर मतदान करने पहुंचे। राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति उनमें ऐसा प्रेरणादायी आग्रह था।
    समाज जीवन में कार्य करते हुए कितनी छोटी-छोटी बातें ध्यान में रखनी होती हैं। आदरणीय मोघे जी संयमित आचरण की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। उनके साथ कार्य कर चुके स्वयंसेवक बताते हैं, मोघेजी से मिलने का अर्थ होता था दस-पांच लोगों के विषय में वह कुशलक्षेम पूछते थे, और उनसे मिलने के प्रति प्रेरित करते। उन्होंने स्वस्थ रहने के लिए जीवन को कैसे अनुशासन में रखना, यह अपनी कठोर जीवन शैली से करके दिखाया। एक बार भोजन, पूरी मितव्ययता और जब तक स्वस्थ रहे साइकिल से प्रवास करते रहे । संघ के गृहस्थ कार्यकर्ताओं के बीच उनका यह वाक्य अत्यंत प्रेरणादायी है कि समाज का कार्य परिवार के साथ संतुलन बनाकर ही किया जाना चाहिए, किन्तु ध्यान रहे परिवार की ओर पीठ और समाज की ओर मुंह हो। संसाधनों का समुचित और संतुलित उपयोग उनकी जीवनशैली में था। पांडुरंग मोघेजी कार्यालय से बचे भोजन, सब्जी के छिलके इत्यादि को नियमित रूप से एकत्र करते और पास में विचरण करने वाले मवेशियों को स्वयं खिलाने जाते। उनके हाथ में पक्षियों को बैठकर दान चुगते देखना किसी को जीव जंतु प्रेमी के लिए प्रेरणास्पद है। एक बार सांड ने उन्हें बुरी तरह चोटिल कर दिया, लेकिन मोघेजी अगले दिन भी उसे भगाने के बजाय पहले की तरह चारा और पानी देते नजर आए। मितव्ययिता ऐसी कि स्वयं के लिए कभी उन्होंने कुछ व्यय किया हो ऐसा उदाहरण ही सामने नहीं आता। उनके साथ कार्य कर चुके एक कार्यकर्ता कहते हैं, कार्यालय फोन करने पर भी वह मिनट नहीं सेकेंड में बात करते थे।

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