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पाकिस्तान बारूद के ढेर पर!

  • रघु ठाकुर
    पिछले कुछ समय से पाकिस्तान देश और दुनिया की खबरों में प्रमुखता से छाया हुआ है। इसके अनेक कारण हैं, जिनकी चर्चा में आगे करूंगा। जो खबरें प्रमुखता से आ रही हैं वह यह है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पतन की ओर अग्रसर है और एक अर्थ में डूबती अर्थव्यवस्था कही जा सकती है। पिछले दशकों में पाकिस्तान ने दुनिया से, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारी कर्ज लिया है, उस कर्ज को चुकाना संभव नहीं हो रहा है। हाल ही में ऐसी खबरें आईं हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की टीम पाकिस्तान को इस कर्ज के भुगतान की स्थिति से बचाने के लिये और एक नया कर्ज जो उसे बेल आउट करने के लिये है, उसे किन शर्तों पर दिया जाय, इसकी चर्चा करने पाकिस्तान पहुंची है।
    अफगानिस्तान के जिन तालिबानियों को पाकिस्तान ने अपने यहां रखा था वे और उनका कट्टर पंथ पाकिस्तान के लिये खतरा बन गया है। उन तालिबानियों को पाकिस्तान अपने देश से निकाल कर अफगानिस्तान भेजना चाहता है। क्योंकि वे अनियंत्रित हो चुके हैं और पाकिस्तान की स्थितरता को खतरा बन चुके हैं। दूसरी ओर अफगानिस्तान की तालिबान हुकूमत उन्हें संरक्षण दे रही है और कुछ अर्थों में पीठ सहला रही है। अफगान और पाक सीमा के दोनों ओर भारी तनाव है और हालात एक छोटे-मोटे मुठभेड़ के रूप में उभर रहे हैं।
    पाकिस्तान के तीन हिस्सों में भयावह बैचेनी है। और वहां का जनमत पाकिस्तान और सेना के दबाव से मुक्ति चाहता है। बलूचिस्तान जहां के खान अब्दुल गफ्फार खान थे। वह गांधी के अनुयायी और भारत विभाजन के खिलाफ थे। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक जो आजादी के पहले महात्मा गांधी की मांग पर बुलाई गई थी उस बैठक में महात्मा गांधी के भारत विभाजन के विरोध के प्रस्ताव का समर्थन करने वाले जो मात्र तीन लोग थे उनमें से एक सीमांत गांधी थे। उन्हें अपने भारत विभाजन के विरोध की भारी कीमत भी चुकानी पड़ी तथा पाकिस्तान बनने के बाद उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय पाक हुकूमत की जेलों में काटा या नजरबंद रहे।
    पख्तून लोगों ने कभी भी पाकिस्तान को इस रूप में स्वीकार नहीं किया और वे एकधर्म का देश बनाने के पक्षधर भी नहीं थे। किंतु मुस्लिम लोग और उसके मुखिया जिन्ना जो ब्रिटिश हुकूमत के हाथों खेल रहे थे और अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते भारत को बांटने के आपराधिक खेल में लगे थे। उन्होंने अंग्रेजों के साथ सांठ-गांठ कर पख्तूनों की आवाज को दबा दिया। कांग्रेस का उस समय का शीर्ष नेतृत्व केवल महात्मा गांधी को छोड़कर जो कांग्रेस के संगठनात्मक नेता भी नहीं थे वह न सदस्य और न पदाधिकारी थे, वह केवल नैतिक नेता थे। गांधी को कांग्रेस संगठन के नेतृत्व ने धोखा दिया। बापू की उस राष्ट्रीय कार्यकारिणी में घोर अवमानना की गई, जिसका शब्दसरू वर्णन डॉ. राममनोहर ल
    नेहरू और पटेल जैसे गांधी के शिष्यों ने न केवल धोखा दिया बल्कि उन्हें अपमानित भी किया। गांधी के भारत विभाजन के विरोध को नकार दिया और उनके इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को भी महत्व नहीं दिया कि अगर भारत का विभाजन करना ही है तो वह अंग्रेज न करे। वे भारत छोड़कर चले जायें, बाद में हम भारतवासी आपस में मिलकर तय कर लेंगे। किंतु इसको भी कांग्रेस नेतृत्व ने स्वीकार नहीं किया। इस प्रस्ताव के बारे में डॉ. लोहिया ने लिखा कि मैंने अपने जीवन में कूटनीतिक प्रस्ताव कोई और नहीं देखा है। अगर इतना भी कांग्रेस नेतृत्व ने स्वीकार कर लिया होता तो भारत का विभाजन भी टल सकता था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तथ्य के बाद भी कुछ लोग एक योजना के तहत महात्मा गांधी को भारत विभाजन का अपराधी मानते हैं। सीमांत गांधी इस बंटवारे से इतने क्षुब्ध हुये थे कि उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व को सार्वजनिक रूप से इंगित कर कहा था कि आपने मुझे भेड़ियों के सहारे छोड़ दिया, वे सिंध और पंजाब के मुस्लिम नेताओं की कट्टरता और सत्ता की हवस को समझते थे, जो उस समय मुस्लिम लीग के और जिन्ना की टोली के सबसे बड़े भार बन चुके थे।
    बलूचिस्तान भी कभी बंटवारे के पक्ष में नहीं था। और बलूचिस्तान के लोगों का पंजाब और सिंध के कट्टरपंथ तथा मुस्लिम लीग के साथ मतभेद थे। पाकिस्तान बनने के बाद पंजाब और सिंध के कट्टरपंथी सत्ताधीशों ने कभी भी बलूचिस्तान नागरिकों को बराबरी का दर्जा नहीं दिया और न न्याय संगत भागीदारी दी। आज स्थिति यह है कि बलूचिस्तान का जनमत उसी प्रकार पाकिस्तान से अलग होना चाहता है जिस तरह से पख्तूनिस्तान का।

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