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- योगेश कुमार गोयल
कोरोना महामारी के भयावह दौर में दुनियाभर में चिकित्सक अपनी जान की परवाह किए बिना करोड़ों लोगों के जीवन की रक्षा करते नजर आए थे। उस विकट दौर में देश में ड्यूटी के दौरान सैंकड़ों चिकित्सकों की मौत हुई थी लेकिन फिर भी चिकित्सक जी-जान से लोगों की जान बचाने में जुटे नजर आए थे। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान तो बहुत से चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ को अपनी छुट्टियां रद्द कर प्रतिदिन लंबे-लंबे समय तक कार्य करना पड़ा था और ऐसे बहुत से चिकित्साकर्मी महीनों-महीनों तक अपने परिवार और छोटे बच्चों से भी दूर रहे थे। समाज के प्रति चिकित्सकों के ऐसे ही समर्पण एवं प्रतिबद्धता के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करने तथा मेडिकल छात्रों को प्रेरित करने के लिए ही प्रतिवर्ष देश में एक जुलाई को ‘राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस’ मनाया जाता है। गंभीर से गंभीर बीमारियों से जूझते मरीजों की जान बचाने का हरसंभव प्रयास करने वाले चिकित्सक वाकई सम्मान के सबसे बड़े हकदार भी हैं। चिकित्सक दिवस मनाने का मूल उद्देश्य चिकित्सकों की बहुमूल्य सेवा, भूमिका और महत्व के संबंध में आमजन को जागरूक करना, चिकित्सकों का सम्मान करना और साथ ही चिकित्सकों को भी उनके पेशे के प्रति जागरूक करना है। दरअसल कुछ चिकित्सक ऐसे भी देखे जाते हैं, जो अपने इस सम्मानित पेशे के प्रति ईमानदार नहीं होते लेकिन ऐसे चिकित्सकों की भी कमी नहीं, जिनमें अपने पेशे के प्रति समर्पण की कोई कमी नहीं होती। बिना चिकित्सा व्यवस्था और बिना योग्य चिकित्सकों के इंसान की जिंदगी कैसी होती, इसकी कल्पना मात्र से ही रोम-रोम सिहर जाता है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चिकित्सकों का महत्व सदा से रहा है और हमेशा रहेगा।
चिकित्सक दिवस की स्थापना भारत में वर्ष 1991 में हुई थी। पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री और जाने-माने चिकित्सक डा. बिधान चंद्र रॉय के सम्मान में चिकित्सकों की उपलब्धियों तथा चिकित्सा क्षेत्र में नए आयाम हासिल करने वाले डॉक्टरों के सम्मान के लिए इसका आयोजन होता है। वे एक जाने-माने चिकित्सक, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और वर्ष 1948 से 1962 में जीवन के अंतिम क्षणों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर, बिधाननगर, अशोकनगर, कल्याणी तथा हबरा नामक पांच शहरों की स्थापना की थी। संभवतः इसीलिए उन्हें पश्चिम बंगाल का महान वास्तुकार भी कहा जाता है। कलकत्ता विश्वविद्यालय से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वर्ष 1911 में एमआरसीपी और एफआरसीएस की डिग्री लंदन से ली।
उन्होंने एक साथ फिजिशयन और सर्जन की रॉयल कॉलेज की सदस्यता हासिल कर हर किसी को अपनी प्रतिभा से हतप्रभ कर दिया था। वर्ष 1911 में एक चिकित्सक के रूप में उन्होंने अपने चिकित्सा कैरियर की शुरुआत की। वे कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में शिक्षक नियुक्त हुए। 1926 में उन्होंने अपना पहला राजनीतिक भाषण दिया और 1928 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य भी चुने गए। डा. बिधान चंद्र रॉय ने 1928 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के गठन और भारत की मेडिकल काउंसिल (एमसीआई) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।