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- पी. सूर्य नारायण
भारत में धर्मांतरण से विकराल समस्याएं उत्पन्न हो रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति, जनजाति और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को ईसाई या मुस्लिम बनाने के व्यापक धार्मिक अभियानों पर चिंता जताई है। न्यायालय ने कहा है कि यदि इन अभियानों को रोका नहीं गया, तो देश की बहुसंख्यक आबादी शीघ्र ही अल्पसंख्यक हो जाएगी, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। अतः सरकार को कठोर कानून बनाकर इस अभियान पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसी ही चिंता जताई थी। हालांकि, दोनों ही न्यायालयों ने इसे ‘ईसाईकरण’ या ‘इस्लामीकरण’ की संज्ञा दी है। बहुसंख्यक समाज धर्मधारी है और ईसाई धर्म और इस्लाम मजहब हैं। दोनों में से कोई भी धर्म नहीं है, इसलिए धर्मधारी लोगों को रिलीजन या मजहब में बदल देना उनके धर्म का उन्मूलन है, ‘अंतरण’ नहीं। यह कन्वर्शन तब कहलाता जब एक धर्म से दूसरे धर्म में अंतरण होता, जैसे कि ईसाई धर्म और इस्लाम भी कोई धर्म होता।
बहरहाल, धर्मान्तरण को कन्वर्शन ही मानते हुए उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को जो निर्देश दिया है, वह त्वरित क्रियान्वयन के योग्य है। धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में बहुसंख्यक हिंदू समाज के ईसाईकरण या इस्लामीकरण का अभियान चलाने वाली संस्थाओं को परोक्ष रूप से करारा जवाब देते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि किसी धार्मिक व्यक्ति को धर्म से विमुख कर उसे रिलीजन या मजहब में बदल दिया जाए। न्यायालय के अनुसार, लोभ, लालच, या भय दिखा कर भोले-भाले (धार्मिक) लोगों का ईसाईकरण या इस्लामीकरण करना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है। सर्वोच्च न्यायालय का तो यह भी मानना है कि ऐसे अभियानों से भारत की एकता, अखंडता, और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। अतः इसे रोका जाना अनिवार्य है। धर्मांतरण एक तरह से भारत के विरुद्ध है क्योंकि धर्म भारत की आत्मा है, जबकि रिलीजन और मजहब अभारतीय अवधारणाएं हैं।”