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कलात्मकता की आड़ में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लीलता

  • सोनम लववंशी
    जब से टेलीविजन शो की जगह वेब सीरीज ने ले ली, ओटीटी प्लेटफॉर्म का बोलबाला बढ़ गया है। कोरोना महामारी के समय से ओटीटी प्लेटफॉर्म की मांग बहुत बढ़ गई। लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म हमारे समाज को निरंतर दूषित करने में लगे हुए हैं। कलात्मक स्वतंत्रता और मनोरंजन के नाम पर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर धड़ल्ले से अश्लील, हिंसक, विवादास्पद सामग्री परोसी जा रही है, जो कहीं न कहीं हमारे समाज की नैतिकता और मूल्यों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है।
    ओटीटी प्लेटफॉर्म के द्वारा इरॉटिक कंटेंट के नाम पर लगातार अश्लील सामग्री परोसी जा रही है, जिसमें गालियां एवं हिंसा की भी भरमार होती है, जिसका हमारे समाज पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ता है। मानवीय संवेदना को प्रस्तुत करने के बजाय पोर्न और इरॉटिक के बीच के बारीक से फर्क को मिटाकर कलात्मकता के नाम पर सिर्फ नग्नता और अश्लीलता को ओटीटी प्लेटफॉर्म के माध्यम से परोसा जा रहा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सजे इस अश्लीलता के बाजार पर सख्त अंकुश लगाने की जरूरत है।
    वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर सख्त टिप्पणी की थी। संसद में भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हिंसक, अश्लील एवं विवादास्पद सामग्री परोसे जाने का मामला कई बार उठा। इन सब विवादों के चलते कई बार सरकार से यह मांग की गई कि ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री के संदर्भ में विनियमन नीति लागू की जानी चाहिए। सरकार ने ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर दिशा-निर्देश भी जारी किया है।
    केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ओटीटी पर गैर-कानूनी सामग्री दिखाने की अनुमति नहीं होगी। हालांकि सरकार ने प्री सेंसरशिप का रास्ता अपनाने के बजाय ओटीटी प्लेटफॉर्म को स्वनियमन अपनाने के लिए कहा है। लेकिन स्वनियमन कैसे हो और इसका दायरा क्या होगा, इसके बारे में सरकार ने स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर दिया है। सरकार ने साफ कर दिया है कि कोई भी ओटीटी प्लेटफॉर्म देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को आघात पहुंचाने वाले दृश्य और संवाद नहीं दिखाएंगे। लेकिन इन दिशा-निर्देशों के बावजूद जब अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री परोसे जाने का सिलसिला नहीं रुका, तो मोदी सरकार ने अहम कदम उठाते हुए 18 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया, जो निश्चित रूप से स्वागत योग्य कदम है।
    द ग्लोबल स्टैटिक्स डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 45 करोड़ ओटीटी सब्सक्राइबर्स हैं। ओटीटी कंटेंट में अश्लीलता, नग्नता और नशीले पदार्थों को इस हद तक ग्लैमराइज किया जाता है कि बच्चे भी इसके मोहजाल से खुद को रोक नहीं पाते हैं। देखा जाए, तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली 10 में से आठ वेब-सीरीज या शो ऐसे होते हैं, जिन्हें परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता। यहां तक कि छात्र एवं शिक्षक तक के रिश्तों को भी अश्लील एवं असभ्य तरीके से दिखाया जाता है। यही नहीं, पारिवारिक रिश्तों की नींव भी कार्यक्रमों में प्रदर्शित अश्लील दृश्यों के माध्यम से नष्ट करने की साजिश चल रही है।
    एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से 2020 के दौरान भारत में ओटीटी पर अश्लील सामग्री 1,200 प्रतिशत से ज्यादा तेजी से बढ़ी है, जो बालमन से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक को प्रभावित कर रही है। ऐसे में सरकार द्वारा ओटीटी प्लेटफॉर्म को इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ऐक्ट के तहत सेक्शन 67 और 67 (ए) के भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 292 और महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 4 का उल्लंघन करने के आरोप में प्रतिबंधित किया गया है। निश्चित रूप से तकनीक के विकास ने हमारे जीवन को सुविधा संपन्न बनाया है, लेकिन इसी तकनीकी की मदद से बच्चों की मासूमियत छीनी जा रही है। बच्चे समय से पहले ही बड़े हो रहे हैं। यही नहीं, अब इसने मानवीय मूल्यों से भी खेलना शुरू कर दिया है, जो एक सभ्य समाज के लिए दुखद और त्रासदीपूर्ण है। इन्हीं हिंसक, अश्लील सामग्रियों की वजह से किशोर उम्र के बच्चे कमजोर और दूषित मानसिकता के शिकार हो रहे हैं।

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