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शहरी नक्सली माओवादियों पर अब कठोर क़ानूनी फंदा

  • आलोक मेहता
    भारत में बुजुर्ग कहा करते थे -‘पता नहीं किस भेस में मिल जाएं भगवान’। फिर कुछ वर्षों से परिजन, मित्र या सरकारी अधिकारी सलाह देने लगे – ‘सावधान पता नहीं किस भेस में मिल जाए माओवादी नक्सल। सचमुच सत्तर के दशक से तीस वर्षों के दौरान विभिन्न प्रदेशों में हिंसक गतिविधियां कर रहे बड़ी संख्या में नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया या उनका आत्म समर्पण हुआ या मुठभेड़ में मारे गए। लेकिन अब भी देश के बीस तीस जिलों खासकर बीहड़ जंगल और आदिवासी क्षेत्रों में बंदूक, गोला बारूद लगाते कुछ नक्सली गुट सक्रिय हैं। प्रदेशों की पुलिस और अर्ध सैनिक बल उनको नियंत्रित करने के लिए काम कर रही है , लेकिन उनसे अधिक खतरनाक वे अर्बन ( शहरी ) नक्सली या हथियारबंद हिंसक नक्सलियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीकों से समर्थन सहायता करने वाले सफेदपोश शिक्षित लोग हैं। उनकी इस गतिविधि से राज्य और केंद्र की सरकारें परेशान रही हैं, क्योंकि ऐसे लोगों पर हिंसा प्रोत्साहन के सबूत और क़ानूनी कार्रवाई में कठिनाई आ रही थी।
    इस समस्या से निदान के लिए महाराष्ट्र सरकार ने इस सप्ताह विधानसभा में एक विधेयक पेश किया जिसका उद्देश्य व्यक्तियों और संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों को रोकना है। महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा अधिनियम 2024 नाम से इस विधेयक के क़ानूनी प्रावधान शहरी क्षेत्रों में नक्सलवाद और उसके समर्थकों के खतरे को रोकने के लिए किया गया है। छत्तीसगढ़ , तेलंगाना , आंध्र प्रदेश और ओडिशा ने गैरकानूनी गतिविधियों की प्रभावी रोकथाम के लिए जन सुरक्षा अधिनियम बनाए हैं।इस कानून में हिंसा, बर्बरता या जनता में भय और आशंका पैदा करने वाले अन्य कार्यों में शामिल होना या उनका प्रचार करना गैरकानूनी गतिविधियों के रूप में माना गया है। इसमें कहा गया है कि आग्नेयास्त्रों, विस्फोटकों या अन्य उपकरणों के उपयोग में शामिल होना या उन्हें प्रोत्साहित करना, स्थापित कानून और उसकी संस्थाओं की अवज्ञा को प्रोत्साहित करना या उनका प्रचार करना भी एक गैरकानूनी गतिविधि है।गैरकानूनी संगठन वह है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त होता है, दांव लगाता है, सहायता करता है, सहायता देता है, प्रोत्साहित करता है।किसी गैरकानूनी संगठन से जुड़ने पर तीन से सात साल की जेल और 3 से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना होगा। सलाहकार बोर्ड यह तय करेगा कि किसी संगठन को गैरकानूनी घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं। यह तीन महीने में सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा।
    इस अधिनियम के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे। उपमुख्यमंत्री फडणवीस, जो गृह विभाग भी संभाल रहे हैं, ने कहा है कि नक्सलवाद का खतरा केवल सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि नक्सली संगठनों के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में भी इसकी उपस्थिति बढ़ रही है |उन्होंने कहा, ‘नक्सल समूहों के सक्रिय फ्रंटल संगठनों के प्रसार से उनके सशस्त्र कैडर को रसद और सुरक्षित शरण के मामले में निरंतर और प्रभावी सहायता मिलती है। नक्सलियों के जब्त साहित्य से महाराष्ट्र के शहरों में माओवादी नेटवर्क के सुरक्षित ठिकानों और शहरी ठिकानों का पता चलता है।’उन्होंने कहा कि ऐसे अग्रणी संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों को प्रभावी कानूनी तरीकों से नियंत्रित करने की आवश्यकता है।यह कानून लागू होने के बाद से नक्सलियों के इकोसिस्टम में शामिल ऐसे लोगों पर कार्रवाई होगी जो ‘बुद्धिजीवी’ कहलाने की आड़ में बचते फिरते हैं। इसमें बताया गया है कि मुखौटा संगठनों के जरिए शहरी क्षेत्रों में नक्सली अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं। ये सशस्त्र नक्सलियों को शरण देते हैं, उन्हें संसाधन मुहैया कराते हैं।
    नक्सलियों के पास से जब्त किए गए साहित्य और अन्य सामग्री से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में उनके कई गुप्त ठिकाने हैं। जो लोग अपना घर इन नक्सलियों को रहने के लिए देते हैं, वो सोशल मीडिया और आमजनों के बीच नक्सली विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं, यानी सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की आग जला रहे हैं और ये देश के खिलाफ है। छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा ऐसे 48 संगठनों को पहले ही प्रतिबंधित कर चुके हैं। सरकार द्वारा रखे गए विधेयक में स्पष्ट कहा गया है कि ऐसे किसी भी संगठन की बैठकों या सभाओं में प्रतिबंधित संगठन का कोई सदस्य किसी भी माध्यम से भाग लेता है या मदद करता है, तो उसे 3 साल तक की जेल की सज़ा के साथ-साथ 3 लाख रुपए तक का जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। राज्य सरकार ऐसे संगठनों को चिह्नित करने के लिए एक सलाहकार समिति का गठन करेगी। इसके कानून बनने के बाद पुलिस शक के आधार पर किसी भी परिसर में घुस कर नक्सली विचारधारा वाले साहित्य को जब्त कर सकती है।साथ ही अर्बन नक्सलियों की संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान है। ऐसे संगठनों को प्रतिबंधित किए जाने का आदेश उसके अधिकारियों को दिया जाएगा वरना दफ्तर के बाहर चस्पाया जाएगा, दफ्तर न होने की स्थिति में अख़बारों में ये नोटिस छपेगा। सरकार द्वारा गठित एडवाइजरी बोर्ड में एक हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज भी होंगे। किसी प्रतिबंधित संगठन या उसके सदस्य की वित्तीय मदद करने पर भी जेल होगी। कोई संगठन नाम बदल कर भी नहीं बच सकता, क्योंकि जब तक वो ऐसी गतिविधियों में शामिल रहेगा वो प्रतिबंधित रहेगा।
    भारत में नक्सल हिंसा की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुई। इसके नेतृत्वकर्त्ता चारू मजूमदार तथा कानू सान्याल को थे । पश्चिम बंगाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने बहुत कड़ी पुलिस कार्रवाई से एक हद तक उन्हें कुचला | फिर शहरी नक्सलवाद की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी जब नक्सलवाद ने शिक्षा के केंद्रों में अपनी जड़ें जमानी शुरू की और 2004 के आते-आते अपनी गतिविधियों को बदलकर बौद्धिक स्तर पर जंग छेड़ी। 2004 में सीपीआई (माओवादी) का गठन सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्स वॉर ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) तथा माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के विलय के साथ हुआ था। इसने तीन अलग-अलग रणनीतियों के माध्यम से भारत में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित संसदीय स्वरुप को उखाड़ फेंकने के लिये एक हिंसक विचारधारा का समर्थन किया जिसमें शामिल हैं:अपने लोगों को पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) में भर्ती करना। माओवादियों का लक्ष्य देश के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्ज़ा करना है और धीरे-धीरे शहरी केंद्र को घेरना है। शहरी आबादी के कुछ लक्षित वर्गों को संगठित करने, पेशेवर लोगों की भर्ती, विद्रोह के लिये धन जुटाने, भूमिगत कार्यकर्त्ताओं के लिये शहरी आश्रय बनाने हेतु मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में यह ‘फ्रंट संगठन’ के रूप में भी जाना जाता है।

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