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नौ साल के प्रतिष्ठित नेतृत्व ने भारत को प्रेरित किया

  • सैयद अता हसनैन
    एक राष्ट्र के पास प्रगति करने के लिए सभी सकारात्मक गुण हो सकते हैं और इसके लोगों के पास महानता की आकांक्षा के लिए सारी ऊर्जा हो सकती है। हालांकि, जब तक राष्ट्र मौलिक रूप से सुरक्षित नहीं है और पड़ोसियों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अन्य लोगों के साथ इसके संबंध भी संतुलित नहीं हैं, तब तक प्रगति मृग-मरीचिका ही हो सकती है। पिछले नौ वर्षों में राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति डोमेन के संदर्भ में भारत के स्टॉक में उतनी अधिक वृद्धि हुई है, जितनी पहले कभी नहीं हुई। इससे यह सुनिश्चित होता है कि राष्ट्रीय विकास के अन्य सभी पहलू संसाधनों या रास्ते में बाधाओं की चिंता किए बिना निरंतर प्रगति हो रही है। विदेश नीति के संदर्भ में एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण द्वारा समर्थित तटस्थता के एक तत्व ने भारत को हितों पर आधारित नीति का पालन करने का मार्ग दिया है, जहां आपसी हितों की पूर्ति होती है। उच्च स्तर के वैश्विक नेताओं के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत पहुंच ने सुनिश्चित किया है कि हमारे स्टॉक में केवल वृद्धि हुई है। सबसे अच्छा उदाहरण वह संबंध है जो उन्होंने सभी काफी विविध दृष्टिकोणों के साथ तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ स्थापित किया था। इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि 2+2 अवधारणा के माध्यम से लगातार परामर्श को शामिल करते हुए भारत-अमेरिका संबंध लगातार आगे बढ़े हैं। अमेरिका ने यह सुनिश्चित किया है कि उसके प्रतिबंधों के तहत देशों से अधिग्रहण के क्षेत्र में भारत के हितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यह यूक्रेन युद्ध पर भी भारत के रुख का निरंतर सम्मान करता है।
    मध्य-पूर्व में भी, भारत द्वारा अपनाई गई एक स्वतंत्र नीति ने खाड़ी देशों के साथ फलते-फूलते संबंधों को सुनिश्चित किया है, जहां 8 मिलियन प्रवासी रहते है और काफी धन स्वदेश भेज रहे हैं। इसके अलावा, भारत अब वेस्टर्न क्वाड का सदस्य बन गया है जो इजरायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) (आईआईयूयू) के साथ साझेदारी को दर्शाता है।
    भारत के भू-राजनीतिक कद में वृद्धि का कारण महामारी का प्रभावी आंतरिक प्रबंधन, इसके बाद होने वाली वैक्सीन कूटनीति और दुनिया की फार्मा राजधानी के रूप में स्थापित होना है। यूक्रेन युद्ध छिड़ते ही कूटनीतिक तौर पर ब्राउनी पॉइंट काम आए। भारत द्वारा अपनाई गई तटस्थता के सही रुख के साथ यह अपने लिए एक ऊर्जा संबंधी लाभ प्राप्ति का माध्यम बना, जो अर्थव्यवस्था के आकांक्षात्मक उछाल के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि पिछले दो वर्षों के दौरान इस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। दो साल से भी कम समय में अर्थव्यवस्था के -24 प्रतिशत मूल्यह्रास से 6.25 प्रतिशत सकारात्मक विकास दर तक पहुंचना सचमुच विवेकपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति का परिणाम था। वर्तमान सरकार के काल में भारत के बढ़ते सामरिक आत्मविश्वास के कारण चीन द्वारा वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी के प्रयास देखे गए। एक मजबूत और समुचित रुख ने यह सुनिश्चित किया कि चीन उस सैन्य स्थिति से कोई फायदा नहीं उठा सकता, जिसे उसने बनाने की कोशिश की थी। एक बड़ा खतरा बने बिना बातचीत की प्रक्रिया जारी है। शायद सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि अनुच्छेद 370 में संशोधन करने और जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह से एकीकृत क्षेत्र का दर्जा देने का साहसिक निर्णय था। प्रशासनिक क्रियाकलाप और सुविधा के लिए, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था। नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष विराम फरवरी 2021 से बना हुआ है, जो सुरक्षा के वातावरण को अधिक स्थिर बना रहा है। इसने जम्मू-कश्मीर में स्थिति को सकारात्मक अंतिम रूप देने के लिए कई विकल्प तैयार किए हैं।
    क्षमता और क्षमता विकास के क्षेत्र में यह एहसास हुआ है कि भारत सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए महत्वपूर्ण हार्डवेयर की खरीद पर अरबों रुपये मूल्य के विदेशी मुद्रा भंडार को बर्बाद नहीं कर सकता। इससे हितधारकों के मन में दृढ़ता आई है। अनिश्चितता से जुड़े जोखिम वाले क्षेत्रों के डोमेन में अपने बढ़ते कद के कारण इंडो पैसिफिक क्षेत्र ने बहुत ध्यान आकर्षित किया है। आसियान तक पहुंच के माध्यम से, गणतंत्र दिवस 2018 के लिए शासनाध्यक्षों/ देशों के प्रमुखों को निमंत्रण, राष्ट्रों के समूह (क्वाड) के सदस्यों के साथ सक्रिय भागीदारी, राजनीतिक और सैन्य कूटनीति का प्रभावी उपयोग और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की हाल की दक्षिण प्रशांत क्षेत्र की यात्रा में इस क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है, जो आवश्यकता होने पर, भविष्य के समूहों और साझेदारी के लिए एक शुभ संकेत है।
    पड़ोसी देश कभी भी सरकार के फोकस से दूर नहीं रहे है। भारत ने अभूतपूर्व आर्थिक संकट से निपटने के लिए श्रीलंका को 3.8 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की। बांग्लादेश, मालदीव और नेपाल के साथ संबंध सामान्य रहे हैं, और विशेष रूप से भारतीय सॉफ्ट पावर के संबंध में अफगानिस्तान के साथ यह अप्रत्याशित रूप से सकारात्मक दिशा में विकसित हो रहा है।
    नौ वर्षों के सशक्त और तेजी से बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में भारत ने तेजी से वृद्धि की है और निस्संदेह स्थिर राष्ट्रों की श्रेणी में एक उच्च पायदान की आकांक्षा कर सकता है। जी20 की अध्यक्षता मिलना भारत से अपेक्षाओं का प्रमाण है और जी7 में आमंत्रित होने से भारत को जो स्थान मिला है वह निश्चित रूप से गौरवपूर्ण है।

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