Home » भीषण गर्मी में स्वास्थ्य नीतियों में सुधार की दरकार

भीषण गर्मी में स्वास्थ्य नीतियों में सुधार की दरकार

  • अनिल गुप्ता
    देश के कई राज्य इन दिनों हीट स्ट्रोक यानी लू की चपेट में हैं। राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में पारा 48 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है। मौसम विभाग ने बुधवार तक यहां लू को लेकर ‘रेड अलर्ट’ जारी किया है। लू लगने से संबंधित समस्याओं वाले रोगियों में 30 से 40 प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है, इनमें से अधिकांश मरीज बुजुर्ग या फिर वे लोग हैं जिन्हें क्रोनिक श्वसन, हृदय और वृक्क (किडनी) की बीमारियां हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के अनुसार एक मार्च से अबतक देश में हीटस्ट्रोक के 16 हजार से अधिक मामले सामने आये हैं। 60 से अधिक लोगों की मौत हुई है। बढ़ता तापमान जानलेवा हो सकता है। इसलिये सभी लोगों को लू से बचाव को लेकर सावधान और सतर्क रहना चाहिये। लू तब लगती है जब शरीरअपने तापमान को नियंत्रित नहीं कर पाता जिससे तापमान तेजी से बढ़ता है, पसीना तंत्र निष्क्रिय हो जाता है, और शरीर की प्रणालियां अपेक्षित तापमान बनाए रखने में विफल हो जाती हैं। जब लू लगती है तो शरीर का तापमान 10 से 15 मिनट के भीतर 106 डिग्री फॉरेनहाइट या इससे अधिक तक बढ़ सकता है।
    यदि सम्पूर्ण विश्व की बात करें तो एक नया अध्ययन इस चुनौती पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। इस अध्ययन में पाया गया है कि अकेले 2019 में ही उच्च और निम्न तापमान से जुड़े स्ट्रोक के कारण पाँच लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई। मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के गर्म होने के साथ, यह संख्या बढ़ने की आशंका है। मेडिकल जर्नल न्यूरोलॉजी में बुधवार को प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि 1990 के बाद से, उच्च और निम्न तापमान के कारण होने वाले स्ट्रोक की संख्या दुनिया भर में बढ़ रही है। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में अत्यधिक तापमान से संबंधित स्ट्रोक अधिक थे, लेकिन इसने सभी आयु समूहों के लोगों को प्रभावित किया।अध्ययन के लिये शोधकर्ताओं ने 204 देशों और क्षेत्रों में तापमान और स्ट्रोक को देखा। चीन में ज़ियांग्या अस्पताल सेंट्रल साउथ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बीमारी, मृत्यु और विकलांगता और जलवायु डेटा पर वैश्विक डेटा का उपयोग करके एक मॉडल बनाया, जो तापमान, बादल कवर और मौसम को कैप्चर करता है।अध्ययन के अनुसार उम्र बढ़ने और आबादी बढ़ने के साथ स्ट्रोक से पीड़ित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन यह सब कुछ नहीं बताता है। ‘गैर-इष्टतम तापमान’ ने एक अंतर पैदा किया: गर्म और ठंडे तापमान के कारण स्ट्रोक से पीड़ित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई और 2019 में यह 1990 की तुलना में काफी अधिक थी।2019 में, कम तापमान के कारण स्ट्रोक की संख्या अधिक थी। हालाँकि यह ग्लोबल वार्मिंग के लिये विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन ठंडे तापमान भी जलवायु परिवर्तन के साथ आते हैं। भूमि पर गर्म तापमान ध्रुवीय भंवर-ध्रुवों के चारों ओर घने ठंडे वायु द्रव्यमान – में हस्तक्षेप करता है और जब यह कमजोर होता है, तो यह ठंडे तापमान को जन्म दे सकता है। अभी, अत्यधिक तापमान से जुड़ी स्ट्रोक से होने वाली मौतें दुनिया के उन हिस्सों में असमान रूप से केंद्रित हैं, जहाँ गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या अधिक है और जहाँ स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली कमज़ोर है, जैसे कि अफ्रीका। अध्ययन में कहा गया है कि मध्य एशिया में उच्च तापमान के कारण स्ट्रोक के बोझ में तेज़ी से वृद्धि पर भी “विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।”
    अध्ययन में कहा गया है कि जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होती जा रही है, उच्च तापमान के कारण स्ट्रोक का बोझ “तेजी से बढ़ा है” और भविष्य में यह संख्या “तेजी से” बढ़ेगी। वैज्ञानिकों द्वारा 1850 में वैश्विक तापमान रिकॉर्ड करना शुरू करने के बाद से पिछला साल सबसे ज्यादा गर्म रहा था और निकट भविष्य में तापमान के और भी रिकॉर्ड तोड़ने की आशंका है। गत मार्च भी सर्वाधिक गर्म रहा। एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन एलर्जी, अस्थमा, ऑटोइम्यून बीमारियों और कैंसर जैसी प्रतिरक्षा-मध्यस्थ बीमारियों की बढ़ती संख्या को भी बढ़ावा दे रहा है। इस अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु संकट को संबोधित करते हुए उत्सर्जन को कम करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने के लिये बहुस्तरीय शमन कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है। यदि तत्काल वैश्विक कार्रवाई नहीं की गयी तो विश्व पर बीमारी का बोझ और अधिक बढ़ जायेगा।पहले के अध्ययनों से पता चला है कि यह दुनिया भर में विकलांगता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है और मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है।भारत सरकार को लू से मौतों के समाचारों को गंभीरता से लेना चाहिये और देश की स्वास्थ्य संबंधी नीतियों में सामयिक बदलाव करने के लिये तत्काल प्रभावी-पग उठाने चाहिये। इस बात की समीक्षा भी आवश्यक है कि हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं और गरीबी की स्थिति अफ्रीका से कितनी भिन्न है? राष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल फोनों, समाचार-पत्रों और अन्य संचार माध्यमों पर मौसम संबंधी अलर्ट के साथ सावधानियां व सामान्य चिकित्सीय परामर्श तत्काल जारी करना प्रारम्भ किया जाना चाहिये।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd