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- डॉ. .मनमोहन प्रकाश
कितना विचित्र व्यवहार है भारत की जनता और जनता के रहनुमा बनते राजनीतिज्ञों का कि जब पानी की कमी होती है,मिलता नहीं है तो हाहाकार मचाते हैं, खाली मटके फोड़ते हैं,नारे लगाते हैं, अनशन पर बैठते हैं, पूर्ववर्ती सरकारों को कोसते हैं, व्यवस्था के लिए धन का रोना रोते हैं,दूसरे राज्यों पर दोषारोपण करते हैं और जब इन्द्रदेवता वर्षा के रूप में पर्याप्त शुद्ध जल भेजते हैं तो उसे सहजते नहीं,उसका मितव्ययिता से उपयोग नहीं करते हैं। उसके महत्व को समझते नहीं।
भारत में हर गर्मियों में कमोबेश सभी राज्यों और जिलों ने पानी की कमी और किल्लत को महसूस किया जाता है, टैंकरों से गली- मोहल्ले में पानी पहुंचाया जाता है। इस समय जहां एक ओर पानी को प्राप्त करने के लिए पड़ोसियों को आपस में लड़ते देखा जा सकता है वहीं दूसरी ओर रसूखदारों को पानी के टैंकरों द्वारा सप्लाई के माध्यम से पैसा बनाते हुए भी देखा जा सकता है। सरकारों ने भी पानी की समास्या का स्थाई समाधान खोजने के ईमानदारी से प्रयास किए हों. ऐसा जमीन पर दिखाई नहीं देता।
यह भी चिंता का विषय है कि सरकारों ने गंभीरता से कभी कारणों का पता लगाने का सही ढंग से प्रयास भी नहीं किया। तभी न तो शहर की जनसंख्या के अनुपात में जल संग्रहण संरचनाओं का विस्तार होता है और न ही जो है उनका ठीक से रखरखाव और प्रबंधन होता है। न ही जल स्रोतों को प्रदूषण मुक्त रखने के प्रयास होते हैं और न ही जलसंग्रहण रचनाओं को वर्षा जल पहुंचाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को हटाया जाता है।
अन्य शहरों और राज्यों की क्या बात करें, देश की राजधानी दिल्ली में हम सबने ग्रीष्म ऋतु में पानी की कमी और उसके द्वारा निर्मित अप्रिय, कष्टप्रद नजारा देखा है और 2024 की वर्षा ऋतु की शुरुआत में ही जगह-जगह पर घर और उसके आसपास जल भराव और उसमें रहवासियों(क्या खास और क्या आम) के महत्वपूर्ण समान के तैरने का नजारा भी देखा है। दोनों ही परिस्थितियों में राज्य सरकार ने अपनी गलती नहीं मानी।
पानी की कमी के लिए कु-जलप्रबंधन के स्थान पर जहां पड़ोसी राज्य द्वारा कम पानी छोड़ने/देने को जिम्मेदार ठहराया वहीं अतिवर्षा के लिए उसको सहजने के उपाय करने के स्थान पर इंद्र देवता को अतिवर्षा के लिए दोष दिया। ऐसी ही जल समस्या कमोबेश सभी राज्यों में है। वास्तव में ऐसा लगता है कि जिम्मेदारी से बचना, योजनाबद्ध तरीके से उचित प्रबंधन ना करना संबंधित अधिकारियों और राजनेताओं की फितरत रही है वहीं जल मिलने पर उसका अपव्यय करना, महत्व न समझना उपभोक्ता की नियति। यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब भारत के कुछ शहरों में जल समस्या दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन जैसा रूप ले ले।