Home » यूसीसी पर केंद्रीय कानून की जरूरत !

यूसीसी पर केंद्रीय कानून की जरूरत !

डॉ. अनिल कुमार निगम
समान नागरिक संहिता बनाने के मामले में उत्तराखंड सरकार ने जिस तरीके से पहल की है, उससे हम सब के जहन में एक अहम सवाल यह है कि क्या। केंद्र की एनडीए सरकार इस पर कानून बनाकर संपूर्ण देश में लागू कर सकती है? अब देश के अन्य राज्यों ने भी यूसीसी पर कानून बनाने की योजना बनानी शुरू कर दी है। लेकिन अगर हर राज्य यूसीसी पर अलग-अलग कानून बनाते हैं तो उससे जो संसद द्वारा तलाक, उत्ता‍राधिकार अधिनियम, विवाह जैसे अधिनियमों का क्या होगा? ऐसी स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों के कानूनों को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसलिए आवश्यक है कि केंद्र सरकार यूसीसी के मामले पर अपनी चुप्पी तोड़े।
उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है और जिस तरीके से भाजपा यूसीसी को लागू करने का मुद्दा 1989 से उसकी घोषणा पत्र का हिस्सा रहा है, उससे यह सवाल उठना भी लाजमी है कि क्या भाजपा लोकसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद यूसीसी पर कानून बनाकर इसे पूरे देश में लागू करेगी? सवाल यह भी है कि अगर केंद्र सरकार ने देश में अपराधों को रोकने के लिए आईपीसी और आरपीसी के कानून बनाए, तलाक के मामले में केंद्र ने कानून बनाया, नकल रोकने के लिए संसद कानून बना रही है तो फिर यूसीसी पर प्रदेश स्तर पर कानून बनाने का क्या औचित्य है?
उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने 4 फरवरी 2024 को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मसौदे को मंजूरी दे दी। उत्तराखंड मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के वहां की विधानसभा ने भी इसे पारित कर दिया। राज्यपाल की मंजूरी के बाद इस पर राष्ट्रपति की मंजूरी लेना आवश्यक होगा और उनकी मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा। इस बिल के कानून बनने के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा। उत्तराखंड में इस बिल के पेश होते ही देश में तुष्टीाकरण की नीति पर चलने वाले कुछ सियासी दलों ने बवाल मचाना शुरू कर दिया है।
यूसीसी के मामले में सियासी दल मुसलमानों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे यूसीसी मुसलमानों को टार्गेट करने के लिए बनाया जा रहा है, जबकि यह पूरी तरह से भ्रामक तथ्य है। इसका उद्देश्य सभी धर्म और जातियों के नागरिकों में लैंगिक असमानता को समाप्त करना है।
समान नागरिक संहिता अगर पूरे देश में लागू किया जाता है तो एक कानून सुनिश्चित करेगी, जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे संपत्ति, विवाह, विरासत और गोद लेने आदि में लागू होगा। इसका मतलब यह है कि हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा व्यक्तिगत कानून भंग हो जाएंगे।
उल्लेेखनीय है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, ‘राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।’ यानी संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनके संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित है।
दिलचस्प यह है कि भारतीय संविधान में हर धर्म की स्त्री और पुरुष दोनों को बराबरी से वोट डालने का अधिकार है। सभी के लिए आपराधिक कानून भी समान हैं। लेकिन शादी, तलाक, बच्चे और संपत्ति संबंधी मामलों में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है।
उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने के बाद सभी धर्मों की महिलाओं की विवाह की आयु एक हो जाएगी। महिलाओं को पुरुषों के बराबर संपत्ति पर अधिकार मिल सकेगा। महिलाओं के पुनर्विवाह के नियम एक जैसे होंगे। बहुविवाह पर प्रतिबंध लग सकेगा। लिव इन रिलेशंस से पैदा होने वाले बच्चों को कानूनी अधिकार मिल सकेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि अगर यूसीसी का कानून केंद्र सरकार बनाती है तो इससे जनसंख्या विस्फो ट पर प्रतिबंध लग सकेगा।
ध्यातव्यं है कि सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐतिहासिक निर्णयों में सरकार से यूसीसी को लागू करने का आह्वान किया है और समय-समय पर न्यायालय ने केंद्र सरकार से इस पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। मोहम्मद अहमद ख़ास बनाम शाह बानो बेगम के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया और समुदाय के व्यक्तिगत कानूनों की बजाय भारत के कानून सीआरपीसी को प्राथमिकता दी थी। इस फैसले में अदालत ने यह भी कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 44 एक बेकार पड़ा हुआ है वह महज एक शो पीस आर्टिकल बनकर रह गया है।
सवाल यह भी है कि अगर यूसीसी इंडोनेशिया, बहरीन, तुर्किए और लेबनान जैसे देशों में लागू हो सकता है तो भारत में क्यों नहीं? ऐसे में तुष्टीकरण की नीति करने वाले सियासी दलों या धर्म के ठेकेदारों की सरकार क्यों परवाह कर रही है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत करते रहे हैं। उनका मानना है कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? पीएम मोदी ने हाल ही में एक चुनावी रैली के दौरान कहा था कि भाजपा ने तय किया है कि वह तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के बजाय ‘संतुष्टिकरण’ के रास्ते पर चलेगी।
वास्तव में देखा जाए तो विपक्ष समान नागरिक संहिता के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और भड़काने के लिए कर रहा है। पीएम ने भी कहा था कि एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे के लिए दूसरा, तो क्या वह परिवार चल पाएगा। फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? सुप्रसिद्ध चिंतक एवं जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे। यह कोई हिंदुत्व वादियों का एजेंडा नहीं है। यह तो शाहबानों जैसी महिलाओं की जरूरत है। यही कारण है कि संविधान के पितामह डॉ. भीमराव अंबेडकर ने यूसीसी के पक्ष में ही अपनी राय रखी थी।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd