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- सुरेश शर्मा
कर्नाटक विधानसभा परिणामों को लेकर कई तरीके की समीक्षा हो चुकी है। फिर भी अलग-अलग तरीके से समीक्षा करने का सिलसिला थमा नहीं है। सबसे पहली बात तो यह है कि कनार्टक में भाजपा की सरकार चली गई और कांग्रेस की सरकार बन गई। सिद्धारमैया एक बार फिर से सभी अडचनों को लांघते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने हैं। पिछली बार उनकी सरकार अल्पमत की थी जिसे जेडीएस का साथ लेकर बहुमत की बनाने का प्रयास किया गया था। वह कुछ समय बाद गिर गई थी। इस बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि कांग्रेस के पास अपना बहुमत है। कांग्रेस के पास अपने चिन्ह पर जीते हुए 135 विधायक हैं और इन विधायकों के दम पर पांच साल सरकार चलाई जा सकती है। लेकिन जनादेश कहा जाये या नहीं इस पर सवाल उठाये जा रहे हैं।
फिर भी इतने विधायकों को जनादेश न मानना भी लोकतंत्र का अपमान ही होगा। हां इसे भाजपा को हरा कर उसकी सरकार को छीनना नहीं कहा जा सकता यह तो जेडीएस के वोटों में सेंधमारी के बाद बनी सरकार है। इसके तीन कारण देखे जा रहे हैं। पहला जेडीएस अब खात्मे की ओर है क्योंकि एचडी देवेगौड़ा उम्रदराज हो गये और दो पुत्र विरासत के लिए लड़ रहे हैं आदि। इसलिए कांग्रेस के बढ़े वोट जेडीएस के खाते से ही गये हैं। भाजपा को वोटों का नहीं विधायकों का नुकसान हुआ है। विधायकों का कम होना एक ऐसा संदेश है जिससे भारतीय लोकतंत्र को कंपायमान होना लाजमी है। यह मतदान का तरीका पश्चिमी बंगाल से शुरू हुआ था कर्नाटक में भी सफलता पूर्वक आजमाया गया है।
अब 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका प्रयोग होगा। यदि लोकसभा के चुनाव में यह प्रयोग सफल हो गया तो भारत को एक और विभाजन के लिए जूझना पड़ सकता है। कर्नाटक विधासभा के चुनाव परिणाम पेंचीदगी भरे हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 36.2 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके 104 विधायक जीत कर आये थे। वह सदन में सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन बहुमत से 9 विधायक कम रह गये थे। भाजपा के वोटों में 16.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। वहीं कांग्रेस के वोटों में 1.4 प्रतिशत बढ़ोतरी होकर 38 प्रतिशत वोट मिला था लेकिन विधायकों के मान से उसकी संख्या 78 रही जो पिछली बार से 44 कम थी। भाजपा को दो प्रतिशत कम वोट मिलने के बाद भी 64 विधायक पिछली बार से अधिक मिले थे। पिछले चुनाव में जेडीएस के 1.9 प्रतिशत कम वोट के बाद 18.3 प्रतिशत वोट मिले 3 विधायकों की गिरावट के साथ 37 विधायक मिले। यह 2018 का विश्लेषण है। वर्ष 2023 के आम चुनाव में कांग्रेस 135 विधायक जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और सरकार बनाई है। उसे 42.88 प्रतिशत वोट मिले जो पिछली बार से 4.74 प्रतिशत अधिक हैं। भाजपा के 66 विधायक जीते और वोट 36 प्रतिशत मिले जो पिछले चुनाव से महज 0.35 प्रतिशत कम हैं। मतलब भाजपा के वोट प्रतिशत में कोई गिरावट नहीं आई। समझने वाली बात यह है कि जूडीएस को 19 विधायक मिले और 5.1 प्रतिशत की गिरावट के साथ 13.29 प्रतिशत वोट मिले। मतलब जेडीएस के 5 प्रतिशत वोट कांग्रेस की ओर शिफ्ट हुए और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में मतों के शिफ्ट होने के कारण वह 135 विधायकों वाली पार्टी बन गई। सवाल यह है कि ये पांच प्रतिशत वोट किस समुदाय के हैं और कांग्रेस के पाले में क्यों गये? यही सवाल देश की राजनीति और लोकतंत्र के लिए हलचल पैदा करने वाला है। इसका उत्तर भारत के लोकतंत्र के लिए हिला देने वाली संभावनाओं को जन्म दे रहा है। यह मतदान का तरीका पश्चिमी बंगाल से प्रयोग में लाया गया था।
वहां यह संभावना जताई जाने लग गई थी कि तीन विधायकों वाली भाजपा जिस रणनीति से चुनाव लड़ रही है वह ममता को सत्ता से हटाकर अपनी सरकार बनाने की स्थिति तक आ गई है। ऐसा अनेक सर्वे और संभावना व्यक्त करने वाले का आब्जर्वेशन बनता जा रहा था। लेकिन जब चुनाव के परिणाम आये तब भाजपा 77 विधायकों तक ही ठहर गई और ममता खुद चुनाव हारने के बाद भी सरकार भारी बहुमत से बनाने में कामयाब हो गई। यूपी-बिहार के चुनाव परिणाम भाजपा को हराने में मुस्लिम मतदान की खबरे तो देते रहे थे लेकिन भाजपा की सरकार में आने की संभावना के लिए मुस्लिम मतदाताओं के नीचे तक के वोटों का समीकरण एक पार्टी के पक्ष में दिये जाने का प्रयोग बंगाल से ही शुरू हुआ था। उस समय यह बात दावे से कोई नहीं कह पा रहा था। लेकिन कर्नाटक चुनाव के बाद सामने आये मुस्लिम समुदाय के अनेक धर्मगुरूओं के वीडियों से यह बात सामने आ गई कि कर्नाटक में भाजपा की सरकार को रोकने के लिए समुदाय ने नीचे तक जाकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने का फतवा दिया था। इससे कर्नाटक में जेडीएस को मिलने वाला मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ गया और पार्टी वहां अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब हो गई। लेकिन भाजपा को अपने वोट उतने ही मिले लेकिन वोटों का धु्रवीकरण उसकी सीटों को कम करने में कामयाब हो गया।