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मोबाइल छीन रहा है बचपन

  • मोनिका डागा ‘आनंद’
    मोबाइल एक ऐसा आविष्कार जिसने दुनिया को सुविधाएं तो बहुत दी हैं,लेकिन इसके अनुचित व अधिक उपयोग से परिवार में अकेलेपन की समस्याएं बढ़ती जा रहीं हैं, सभी सदस्य एक दूसरे से दूर है। किसी को किसी की नहीं पड़ी है, सब अपने मोबाइल में मस्त रहते है। बच्चे हों, बूढ़े हों, बड़े हों, छोटे हों सभी के पास अपना-अपना मोबाइल होता है और सब इस दुनिया में खोए रहते हैं। ऐसे ही एक परिवार में नीतू और उसके बच्चे रहते थे। आजकल विद्यालयों में कोरोना काल के बाद अध्ययन का डिजिटल युग आ गया है। उससे सबकी परेशानी बहुत बढ़ गयी है। ज्यादातर विद्यालयों में गृहकार्य या कोई भी सूचना विद्यालय के अपने ऐप पर ही दी जाती है जिस कारण बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप, टैब इनमें से कुछ भी उपयोग करना जरूरी हो गया है।‌ जिसका असर दैनिक दिनचर्या और बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। जब बच्चे विद्यालय का कार्य पूरा कर रहे होते हैं तो बीच में ही कभी गेम्स खेलने लग जाते हैं तो कभी वीडियो देखने लग जाते हैं। यह समस्या घर-घर आम हो गई है जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई के प्रति रुचि कम हो गई है। उनका ध्यान पढ़ाई से विमुख हो दूसरी अतिरिक्त बेवजह के कार्यों में मुड़ गया है। आंखों पर आज छोटे-छोटे बच्चों को चश्मा लग गया है।‌ समस्या गंभीर होती जा रही है।
    नीतू की कॉलोनी में इस समस्या के समाधान करने के लिए एक विशेष सभी अभिभावकों की मीटिंग बुलाई गई। सबके विचारों को सुनकर पक्ष और विपक्ष की बातों को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया गया कि सभी अभिभावक अपने बच्चों पर थोड़ा ज्यादा ध्यान देंगे, उन्हें थोड़ा समय भी देंगे और मोबाइल, लैपटॉप में एक निर्धारित समय नियंत्रित करने का विशेष फीचर इंस्टाल कर देंगे। साथ ही बच्चों को अनावश्यक मोबाइल के अधिक प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों से अवगत भी कराएंगे। साथ ही खुद भी बच्चों के सामने जितना हो सके, मोबाइल और लैपटॉप का कम उपयोग करेंगे। इसका सही समय संतुलित उपयोग बच्चों को सिखाएंगे जिससे समय से हर काम पूरा भी हो और बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य भी बरकरार रहे। और तो और घर में कुछ विशेष नियम भी लागू किए जाएंगे व हर सदस्य उन नियमों का पालन करेगा जिससे, बच्चों का मोबाइल लैपटॉप डिजिटल दुनिया से थोड़ा संपर्क कम हो और बच्चे खेले-कूदे सबसे घुले-मिले। परिवार में प्यार बना रहे। मोबाइल की लत से छुटकारा पाया जा सके।
    अविष्कारों का विवेकपूर्ण उपयोग ही लाभदायक होता है, वरना ये अाविष्कार मानव के जीवन आनंद को समाप्त कर उसे अपनी कठपुतली बना नचाते हैं और अंत में उपयोगिता दुष्परिणामों में परिवर्तित हो, दु:खदाई हो जाती है। खुद भी इन दुष्प्रभावों से बचिए और सबको भी बचाइए। वरना एक दिन भावनाओं का अंत हो जाएगा और मनुष्य अपना अस्तित्व भी नहीं बचा पाएगा। डिजिटल दुनिया से जुड़ना आवश्यक है, पर सही तरीका और किस तरह से हम जुड़ें, यह ही महत्वपूर्ण प्रश्न है और इसका उत्तर सिर्फ और सिर्फ हमारे पास ही है। स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन बसता है और मन स्वस्थ हैं तभी जीवन में आनंद और प्रगति हैं ।

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