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नक्सली एनकाउंटर पर सवाल उठाने के मायने

  • रमेश शर्मा
    सुरक्षा बलों ने एनकाउंटर करके छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय माने जाने वाले 29 नक्सलियों को ढेर किया। कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताया है। उनके बयान से यह बहस तेज हो गई है कि क्या कांग्रेस इन लोकसभा चुनाव में नक्सलियों का सद्भाव लेना चाहती है ?
    छत्तीसगढ़ देश में सर्वाधिक नक्सल प्रभावित प्रांत है। नक्सलियों का मुख्य केन्द्र बस्तर है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल बस्तर से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। यह चर्चा सदैव रही है कि बस्तर के अधिकांश क्षेत्र पर नक्सलियों का प्रभाव है। वे इस पूरे परिक्षेत्र में तेंदूपत्ता संग्रहण का लाभांश भी बसूलते हैं और मतदान को भी प्रभावित करते हैं। इस लोकसभा चुनाव में नक्सली की कोई बड़ी वारदात करना चाहते थे। यह रणनीति बनाने के लिये नक्सली एकत्र हुये थे। पुलिस को सूचना मिली। सूचना इतनी सटीक थी कि नक्सली घिर गये। एनकाउंटर हुआ। यह सुरक्षा बल के जवानों की रणनीति और घेराबंदी थी कि पांच-पांच लाख के इनामी दो टाप कमांडर सहित 29 नक्सली ढेर हो गये।
    नक्सलियों के विरुद्ध यह कार्रवाई पहली या अचानक नहीं है। छत्तीसगढ़ की वर्तमान विष्णुदेव साय सरकार ने पद संभालते ही नक्सलियों के विरुद्ध अभियान छेड़ने की घोषणा की थी। उसी के अनुरूप इन चार महीने में छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों पर नक्सलियों को घेरा गया और एनकाउंटर हुये। इन एनकाउंटरों में अब तक कुल 79 नक्सली ढेर किये जा चुके हैं। एक ओर छत्तीसगढ़ सरकार नक्सलियों के विरुद्ध अभियान चला रही है तो दूसरी ओर नक्सली भी कम नहीं हैं। वे सरकार पर दबाव बनाने के लिये सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को निशाना बना रहे हैं। कांकेर और नारायणपुर सीमा पर हुये इस एनकाउंटर के दो दिन के भीतर ही नक्सलियों ने फरसगांव थाना क्षेत्र के दंडवन गांव में उपसरपंच पंचमदास की हत्या कर दी। पंचमदास भाजपा कार्यकर्ता थे और नक्सलियों को शक था कि पंचमदास की सूचना पर ही यह एनकाउंटर हुआ। नक्सलियों ने टारगेट किया और पुलिस की चौकसी के बीच भी उनकी हत्या कर दी। इससे पहले नक्सली छत्तीसगढ़ में भाजपा के आठ कार्यकर्ताओं की हत्या कर चुके हैं। पंचमदास की हत्या नौंवी है। भाजपा कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त नक्सली अन्य निर्दोष नागरिकों को भी निशाना बनाते रहे हैं। पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगाकर नक्सली पिछले तीन वर्षों में 40 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार चुके हैं। लेकिन इन निर्दोष नागरिकों के बलिदान की चर्चा नहीं होती। केवल श्रद्धांजलि सभा,पीड़ित परिवारों को कुछ आर्थिक सहायता और मीडिय
    इस एनकाउंटर में भी सुरक्षा बलों की सटीक रणनीति और जबानों के बलिदान पर विपक्ष की ओर से प्रशंसा का कोई शब्द सामने नहीं आया। उल्टे एनकाउंटर की वास्तविकता पर प्रश्न उठाकर सुरक्षाबलों की कार्यवाही पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा किया जा रहा है। कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस एनकाउंटर को फर्जी होने की आशंका व्यक्त करने तक ही न रुके। उन्होंने यहां तक कहा कि फर्जी एनकाउंटर करना भाजपा की आदत है। उन्होंने बहुत खुलकर कहा कि ‘भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में फर्जी एनकाउंटर होता रहा है, अब फिर से चार महीने में फर्जी एनकाउंटर बढ़े हैं और आदिवासियों को नक्सली बताकर गिरफ्तार किया जा
    उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस आदिवासियों को डरा धमका रही है कि किसी भी केस में फंसाकर गिरफ्तार कर लेंगे। ऐसे एनकाउंटरों और ऐसी बातों से आदिवासियों को डराया धमकाया जा रहा है।यद्यपि भूपेश बघेल ने नक्सलियों के समर्थन में दो टूक कोई बात न कही लेकिन जिस प्रकार से एनकाउंटरों को फर्जी बताकर सामान्य आदिवासी के मन में सुरक्षा बलों के प्रति दूरी बनाने का प्रयास किया इससे नक्सली तत्वों को ही बल मिलेगा।
    बस्तर क्षेत्र में सक्रिय ईसाई मिशनरीज का उन्हें समर्थन हैं। वे नक्सली समूहों की सहानुभूति भी लेना चाहते हैं। नक्सली गतिविधि केवल सघन वनक्षेत्र में ही नहीं है। नगरों में भी है। सघन वनक्षेत्र में तो वे सशस्त्र घूमते हैं और उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में कोई गतिविधि उनकी अनुकूलता के बिना संभव नहीं हो सकती। सुरक्षा बल की कार्रवाई को प्रश्नों के घेरे में खड़ा करके भूपेश बघेल अपनी राह आसान बनाना चाहते हैं। भारत में कुछ राजनैतिक दलों की राजनीति में राष्ट्र पीछे छूट गया और केवल सत्ता प्राप्ति उद्देश्य रह गया है। इसलिये वे स्वायत्त संस्थाओं और सुरक्षा बलों पर भी राजनैतिक हमला करते हैं और उनकी कार्रवाइयों को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करती हैं। इसलिये सीमा की सुरक्षा कर रहे सैनिकों से लेकर नक्सली एनकाउंटर में जान की बाजी लगाने बाले सुरक्षाबलों की कार्यवाई पर भी प्रश्न उठाते हैं।
    यह बात सर्वविदित है कि एनकाउंटर कोई राजनैतिक दल नहीं करते, सुरक्षा बल करते हैं। हां राजनैतिक दलों के नेतृत्व में काम करने वाली सरकारें सुरक्षा बलों को काम करने का वातावरण अवश्य देतीं हैं। जैसे एक समय कांग्रेस के नेतृत्व में काम करने वाली केन्द्र सरकार ने कश्मीर के सुरक्षा बलों को ‘संयम बरतने’ का आदेश दिया था। ठीक उसी प्रकार जैसे चार महीने पहले तक छत्तीसगढ़ के सुरक्षाबल नक्सलियों के विरुद्ध कार्यवाही तो करते थे किंतु इतनी आक्रामक नहीं जितनी अब हो रही है। मोदी सरकार ने जैसा ‘फ्री हैण्ड’ कश्मीर में सुरक्षाबलों को दिया, ठीक वैसा ही ‘फ्री हैण्ड’ विष्णुदेव साय सरकार ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों को दिया। इसकी झलक पिछले चार महीनों में नक्सलियों से हुये एनकाउंटरों में देखी जा सकती है। ताजा एनकाउंटर की विशेषता यह है कि इसमें सुरक्षा बलों को सबसे कम और नक्सलियों का नुकसान सबसे अधिक हुआ। इस एनकाउंटर में 29 नक्सली मारे गये हैं।
    इसके साथ बड़ी मात्रा में आधुनिक हथियार भी बरामद हुये । इतनी सटीक सूचना और रणनीति के लिये सुरक्षाबलों का अभिनंदन होना था, पुरस्कृत किया जाना था, विपक्ष को सराहना करनी थी इसके बजाये सुरक्षाबल की कार्रवाई को प्रश्नों के घेरे में खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है । काँग्रेस सहित कुछ राजनैतिक दलों का यह स्वभाव नया नहीं है । इससे पहले भी इनमें कुछ राजनैतिक आतंकवादियों के मानवीय अधिकारों की बहस छेड़कर सुरक्षा बलों की कार्रवाई को ईटघरे में खड़ा करते रहे हैं। और यदि आतंकवाद प्रमाणित हो गया तो उन्हें भटके हुये नौजवान बताकर सहानुभूति जताने का प्रयास हुआ । ऐसी घटनाओं से स्वतंत्र भारत का इतिहास भरा है। बटाला हाउस एनकाउंटर के बाद तो यह तक कहा गया था कि काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी को आँसू आ गये थे । कुख्यात आतंकवादी अफजल गुरु की फाँसी रुकवाने केलिये आधी रात को अदालत का दरवाजा खटखटाया गया । पुलवामा में हुई आतंकी कार्रवाई और बलिदान हुये सुरक्षा सैनिकों पर राजनीति की गई। बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक पर सबाल उठाये गये । कुख्यात माफिया डान मुख्तार अंसारी की मौत पर उसे महान बताने वाले कुछ राजनैतिक दलों की संख्या भी कम नहीं है । उनके ब्यान अभी ताजा हैं। उसी राजनैतिक चिंतन की धारा पर छत्तीसगढ़ के इस नक्सली एनकाउंटर पर श्री भूपेश बघेल का यह ब्यान आया है। जबकि छत्तीसगढ़ का सामान्य निवासी या वनवासी नक्सलियों से कोई सहानुभूति नहीं रखता । वह उनसे भयग्रस्त है । इसका लाभ नक्सली उठाते हैं। यदि वनवासी अपने मन से नक्सलियों के अनुकूल होते तो वनवासी क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का वोट प्रतिशत न बढ़ता। जबकि नक्सली तो भाजपा को अपना घोर शत्रु मानते हैं। फिर भी यदि आदिवासी क्षेत्र में भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ रहा है तो इसका सीधा संकेत यही है कि सामान्य वनवासी समाज नक्सली समूहों से मुक्ति चाहता है । इसलिये अपनी जान जोखिम में डालकर पुलिस को सूचना देते हैं। अब देखना यह है कि समाज की इस जमीनी सच्चाई से कांग्रेस सहित कुछ राजनैतिक दल कब समझते हैं।

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