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- शोभित सुमन
विश्व की सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में हिंदी का एक प्रमुख स्थान है। हिंदी भाषा का एक गौरवमयी इतिहास रहा है। इस भाषा का उद्भव मूल रूप से संस्कृत से हुआ है। संस्कृत चिरकाल से ही हमारे मनीषियों, ऋ षियों, विद्वानों की भाषा रही है जिन्होंने संस्कृत भाषा में अनेक वेद, पुराण, काव्य ग्रंथ आदि लिखें हैं। उन्होंने अपने संपर्क की भाषा में हिंदी को विकसित और सुदृढ़ किया है। हिंदी ब्रज की भाषा थी। अकबर से लेकर औरंगजेब तक ने इस भाषा का सम्मान किया है। कालांतर काल से ही हिंदी ने अपनी व्यापकता को साबित करने का काम किया है।
हिंदी भाषा का गौरवमयी इतिहास : ऐसे में जिस हिंदी भाषा का इतिहास इतना गौरवशाली रहा हो उस हिंदी की अस्मिता आज खतरे में नजर आ रही है। इसका मूल कारण हमारी हिंदी भाषा पर अंग्रेजियत का हावी होना है। आज समाज के हर क्षेत्र में जैसे हिंदी को हीन भाव से देखा जा रहा है। हिंदी मूल रूप से हमारे स्वाभिमान और स्वावलंबन की भाषा है। इसका विशालकाय क्षितिज मानों अन्य सभी भाषाओं को अपने आप में समेटा हुआ है।
आज हम आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं जिसमें हमारे हिंदी भाषा को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाने की कई संभावनाएं समय-समय पर तलाशें जा रहे है लेकिन आज भी हिंदी अपने अस्तित्व के साथ जैसे समझौता करता नजर आ रहा है। हम सही मायनों में अंग्रेजियत के गुलाम होते जा रहे हैं। हम आज हिंदी भाषा के बजाय अंग्रेजी में ज्यादा संवाद कर रहे है। कोई हिंदी में आज अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करता है तो उसे असहज भाव से देखा जाता है। आखिर क्या कारण है कि हिंदी को आज भी लोग उस भाव से नहीं देखते? जिसमें हम भावी पीढ़ी को यह गर्व से बता सकें कि हिंदी हमारे भारत की भाषा है। हिंदी का राष्ट्रीय फलक पर आज तेजी से विस्तार भी हो रहा है इसका मूल कारण वर्तमान में जो सरकार हमारे केंद्र में है वह हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए रोजगार संबंधित नए-नए मार्ग प्रशस्त कर रही है। यह हिंदी भाषा के लिए गौरवान्वित करने वाला विषय है। जिसमें हिंदी के उत्थान के लिए सरकार के ये सभी प्रयास सराहनीय है।
संप्रेषण में सर्वाधिक हिंदी का प्रयोग : आज सूचना संप्रेषण के इस स्वर्णिम काल में हिंदी का भविष्य बहुत ही सुनहरा नजर आ रहा है। मीडिया के क्षेत्र की अगर बात की जाए तो आज भी सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र हिंदी माध्यम का ही है वहीं टेलीविजन चैनलों में भी हिंदी चैनलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है क्योंकि हिंदी का पाठक एवं दर्शक वर्ग हिंदी को स्वीकार कर रहा है। वह इस भाषा में सहज रूप से संवाद कर पाता है। विज्ञापनों पर भी अगर ध्यान दिया जाए तो हिंदी माध्यम इस क्षेत्र में भी अग्रणी रूप में कार्य कर रहे हैं। इन सब के बावजूद आज हम अपनी घरेलू भाषा में इसके प्रयोग से दूर होते जा रहे हैं। आज हम अपने परिवार, बच्चों से संवाद स्थापित करने के लिए भी हिंदी को दरकिनार कर रहे हैं।
अपनी मातृभाषा पर गर्व की जरूरत : हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होने की बजाय अंग्रेजी भाषा में संवाद की जरूरतों पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ रहा है। यह मूल रूप से पाश्चात्य संस्कृति की ही देन है। जिसमें यह मानसिकता बना दी जाती है कि अगर हम हिंदी भाषा में अपने बच्चों से संवाद स्थापित करते हैं, अपने बच्चों को हिंदी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं तो हम पिछड़ेपन का शिकार हो रहे हैं। यही कारण है आज हर मां-बाप अपने बच्चों को अंग्रेजी कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। अंग्रेज़ी भाषा में शिक्षा देना कहीं से गलत नहीं है लेकिन इसके वजह से हिंदी भाषा को कमतर आंकना गलत है। अगर कौशल क्षमता को देखा जाए तो इन हिंदी माध्यम के स्कूलों के बच्चे भी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रह रहे है। किसी भी भाषा का अपना एक अलग महत्त्व है उसकी एक अलग प्रकृति होती है। इसका कहीं से भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। निश्चित रूप से अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान होना आवश्यक है लेकिन इसकी अज्ञानता को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।
हिंदी भाषा ने नए मार्ग प्रशस्त किए : हिंदी ने संभावनाओं के कई नए द्वार खोले है। आज विज्ञान, अनुसंधान सभी क्षेत्रों में हिंदी अपने नए मार्ग को तटस्थ कर रही है। हमारे यहां उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा की पढ़ाई को भी हिंदी भाषा सुदृढ़ किया जा रहा है। हिंदी भाषा मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की जा चुकी हैं तो वही न्यायपालिका में भी हिंदी भाषा का प्रयोग शुरू किया जा चुका है। ये सभी प्रयास हिंदी भाषा को बचाने में एक मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। अंग्रेजियत का हावी होना हमारे लिए बहुत विचारणीय है। आज अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। समाज के हर क्षेत्र में इस भाषा से रोजगार और प्रतिष्ठित नौकरियां मिल रही है। देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरियों में शुमार आईएएस, पीसीएस की परीक्षा में आज अंग्रेजी माध्यम एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी सबसे ज्यादा सफल हो रहे हैं। हाल के कुछ सालों में हिंदी माध्यम में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी कमतर हुई है। कमोबेश अन्य हर क्षेत्र का भी यही हाल है। इसका एक मूल कारण आईएएस कोचिंग संचालक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति यह बताते हैं कि लगभग 60 से 80 फ़ीसदी तक के बच्चों की यह एक मूल समस्या है कि उनकी ना तो हिंदी अच्छी होती है ना ही अंग्रेजी भाषा अच्छी होती है।
नई शिक्षा नीति में हिंदी का योगदान : नई शिक्षा नीति 2020 में हिंदी के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोले गए हैं। हमारी क्षेत्रीय और हिंदी भाषाओं में शिक्षा देने की व्यवस्था की जा रही है। जिसमें हम सहज रूप से अपनी स्वभाषा में संवाद स्थापित कर पाएंगे। विश्वविद्यालयों, स्कूलों में भी परंपरागत विषयों के साथ तकनीकी शिक्षा को भी हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में कोर्स की शुरुआत की जा रही है जिनमें शिक्षा मंत्रालय के ‘स्वयं’ शिक्षा पोर्टल हिंदी आदि भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण सामग्री उपलब्ध करा रहे है तो वही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन द्वारा भी हिंदी भाषा में शिक्षा को विकसित किया जा रहा है। आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को हम साकार कर पाएंगे जिसमें हमारी परंपरागत और चिंतन की भाषा ही हमारी शिक्षा की भाषा भी होगी। समाज के सर्वांगीण विकास के लिए इन भाषाओं का विशेष योगदान होगा।