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पीड़ितों को नागरिकता देने का बना कानून

आखिरकार लंबी चली जद्दोजहद के बाद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के नियम अधिसूचित कर दिए हैं। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इस कानून को अमल में लाना भाजपा की चुनावी रणनीति का हिस्सा भी माना जा सकता है। हालांकि इसे लागू करने में देरी हुई है। क्योंकि ये विधेयक दोनों सदनों से पांच साल पहले ही पारित हो चुका है। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल इस कानून का इसलिए दुष्प्रचार करते रहे हैं कि इससे मुसलमानों की नागरिकता संकट में पड़ जाएगी। जबकि इसमें देश के किसी भी धर्म से जुड़े नागरिक की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है, हां घुसपैठियों को जरूर नागरिकता सिद्ध नहीं होने पर बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
संसद और उसके बाहर ऐसे अनेक बौद्धिक आलोचक थे, जो यह प्रमाणित करने में लगे थे कि यह कानून ‘आइडिया आॅफ इंडिया’ अर्थात संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। लेकिन यह संदेह जम्मू-कश्मीर से हटाई गई धारा-370 और 35-ए की तरह ही संवैधानिक है। इस कानून का मुख्य लक्ष्य धार्मिक आधार पर प्रतािड़त वह हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं, जिन्हें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से पलायन को मजबूर होना पड़ा है। भारत में आकर शरणार्थी जीवन जी रहे इन समुदायों के लोगों को अब देश की नागरिकता मिलना आसान हो जाएगी। नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन भी आॅनलाइन जारी कर दिया है। इसे शरणार्थी जरूरी दस्तावेजों के साथ भरकर नागरिकता की मांग कर सकते है। आवेदन करने वालों को 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश का वीजा और अप्रवासी होने के प्रमाण देने होंगे। धारा 5 के अंतर्गत अप्रवासी मुस्लिम या कोई भी विदेशी नागरिक आवेदन कर सकते हैं। पहले भी इन तीनों देशों के मुसलमानों को भारतीय नागरिकता दी जा चुकी है। यह व्यवस्था आगे भी जारी रहेगी। जाहिर है, यह कानून किसी धर्म या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव से नहीं जुड़ा है। साफ है, यह कानून किसी की नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून हैं।
यह विधेयक मूल रूप में 1955 के नागरिकता विधेयक में ही कुछ परिवर्तन करके अस्तित्व में लाया गया है। 1955 में यह कानून देश में दुखद विभाजन के कारण बनाया गया था। इस समय बड़ी संख्या में अलग-अलग धर्मों के लोग पाकिस्तान से भारत आए थे। इनमें हिंदू, सिख. जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई थे। कुछ लोग भारत से पाकिस्तान भी गए थे। इस आवागमन में सांप्रदायिक दंगे भी हुए, जिनमें ज्यादातर सहिष्णु हिंदू मारे गए थे। बावजूद भारत ने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश बनाने का निर्णय लिया। लेकिन पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया। पाक के संस्थापक और बंटवारे के दोषी मोहम्मद अली जिन्ना के प्रजातांत्रिक सिद्धांत तत्काल नेस्तनाबूद कर दिए गए। 1948 में जिन्ना की मौत के बाद पाकिस्तान पूरी तरह कट्टर मुस्लिम राश्ट्र में बदलता चला गया। नतीजतन जो भी गैर-मुस्लिम समुदाय थे, उन्हें प्रताड़ित करने के साथ उनकी स्त्रियों के साथ दुराचार व धर्म परिवर्तन का सिलसिला तेज हो गया। ऐसे में ये पलायन कर भारत आने लगे। दरअसल इन गैर-मुस्लिमों का भारत के अलावा कोई दूसरा ठिकाना इसलिए नहीं था, क्योंकि पड़ोसी अफगानिस्तान भी कट्टर इस्लामिक देश बन गया था।

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