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- गोपाल कृष्ण छिब्बर
भारत में श्रम सुधारों पर चर्चा तो अनेक वर्षों से हो रही थी परंतु उनके सरलीकरण करने पर कोई सार्थक प्रयास नही हुए। मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई तो श्रम कानूनों की समीक्षा की गई।
2019 में दुबारा मोदी सरकार सत्ता में आई तो 29 श्रम कानूनों में बदलाव किए और उन्हें संशोधित कर उन्हें चार श्रम संहिताएं बना दी गईं जो कि सराहनीय कदम है। केंद्र सरकार इन चार कानूनों को एक अप्रैल 2021 से प्रभावशील करने वाली थी परंतु राज्य सरकारों ने समय पर नियमों की रचना नहीं की, इसलिए लागू नहीं किए जा सके। अब समस्त प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
नई वेतन संहिता के अनुसार सीटीसी का 50 प्रतिशत मूल वेतन, शेष भत्ते रखे जाने का प्रावधान है, परंतु इसमें और बदलाव की संभावना है। अब नियुक्ति के 3 वर्ष तक 30 प्रतिशत मूल वेतन एवं तथा शेष 70 प्रतिशत व अन्य भत्ते मिल सकेंगे। तीन वर्ष पश्चात मूल वेतन 50 प्रतिशत रहेगा शेष 50 प्रतिशत अन्य भत्ते हो सकेंगे। मूल वेतन में महंगाई भत्ता एवं रिटेनिंग एलाउन्स शामिल रहेगा, परंतु मकान भाड़ा एवं ओव्हर टाईम शामिल नहीं होगा। इससे कर्मचारियों की भविष्य निधि में फायदा होगा तथा सेवा समाप्ति अथवा रिटायरमेंट के समय ग्रेच्युटी भी ज्यादा मिलेगी।
कर्मचारियों की छंटनी के लिए सरकार से अनुमति का प्रावधान भी अब 300 कर्मचारियों के संस्थान में नियोजन की सीमा किए जाने का विचार किया जा रहा है। विधिक छंटनी पर 15 दिन का अतिरिक्त वेतन भी देना होगा। इसी तरह बंदीकरण या कारोबार के बंद करने मैं भी 300 से ज्यादा कामगार नियोजित होने पर शासन से अनुमति लेना आवश्यक होगी। पूर्व में 100 कामगारों के नियोजन का प्रावधान था। यह प्रावधान श्रमिकों की सेवा सुरक्षा के लिए लाभकारी है।
चार नई श्रम संहिताएं व उनके प्रावधान
जो चार नवीन श्रम संहिताएं बनाए गई हैं वो इस प्रकार हैं:-(1) मजदूरी संहिता 2019 (2) औद्योगिक संबंध 2020 (3) उप जिविकाजन्य सुरक्षा स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020 (4) सामाजिक सुरक्षा सेवा शर्तें एवं संहिता 2020। अब इन चारों संहिताओ में वेतन की एक ही परिभाषा होगी। औद्योगिक प्रतिष्ठानों को अब केवल 2 पंजीकाएं ही रखना होंगी। पूर्व में 37 पंजीकाएं रखना होती थीं। अब निरीक्षक भी एक ही होगा।
कर्मचारियों को भी अपने विवादों को सीधे न्यायालय में दायर करने का प्रावधान किया गया है। पूर्व में शासन के श्रम विभाग संदर्भ करते थे। श्रम न्यायालय समाप्त कर औद्योगिक न्यायाधीकरण गठित किए जाएंगे जिसमें जिला न्यायाधीश के समकक्ष पीठासीन अधिकारी एवं एक प्रशासनिक सदस्य रहेगा ।
वेतन भुगतान एवं श्रमिक क्षतिपूर्ति के विवाद सहायक श्रमायुक्त को सुनवाई के लिए अधिकृत किए जा रहे हैं । केंद्र सरकार इन श्रम सुधारों को शीघ्र लागू करना चाहती है। परंतु अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ये चारों कानून कब से लागू होंगे क्योंकि अभी तक कोई आधारभूत ढांचा औद्योगिक न्यायाधिकरण का नहीं बना है। केंद्र सरकार कृषि कानूनों को लागू करने में किसान आंदोलनों के कारण सफल नही रही। इस कारण भी जल्दबाजी नही कर रही है। कहा जा रहा कि सभी कानून संतुलित हैं जिसमें श्रमिकों एवम नियोक्ताओं के हितों को समान संरक्षण दिया गया है।
‘सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के नए आर्थिक लाभ ‘
मोदी सरकार न सामाजिक सुरक्षा के महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ कामगारों को दिए हैं जो इस प्रकार है-
बोनस भुगतान अधिनियम 1965 में बोनस की वेतन सीमा 21000 कर दी है तथा न्यूनतम गणना 7000 रुपए से होगी। उपादान भुगतान अधिनियम 1972 में ग्रेच्युटी की अधिकतम सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दी है। वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की परिधी में आने वाले कामगारों की वेतन सीमा 18 हजार से बड़ाकर 24 हजार कर दी है।
कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 में मुआवजा राशि की गणना 10 प्रतिशत बढ़ा दी है तथा क्षतिपूर्ति की गणना के लिए वेतन की सीमा 8 हजार से बढ़ाकर 15 हजार में अब 21 हजार वेतन पाने वाले बीमित लाभ ले सकेंगे। कर्मचारी भविष्य निधि अंशदान अधिनियम 1952 में 15 हजार वेतन पाने वाले कामगार परिधि में लाए गए हैं।
सबसे बड़ा लाभ महिला कर्मचारियों को दिया गया है। अब उन्हें 12 सप्ताह की जगह 26 सप्ताह का सवेतन प्रसूति लाभ मिल रहा है। अब सामाजिक सुरक्षा के लाभ असंगठित क्षेत्र में नियोजित कामगारों को दिए जाने के प्रावधान किए गए हैं। भारत में लगभग 50 करोड़ की श्रमशक्ति है इसलिए इन पर प्राथमिकता से ध्यान देना आवश्यक है। श्रम और पूंजी का समन्वय ही देश की अर्थव्यवस्था को ओर मजबूत करेगा, ऐसी आशा की जा सकती है।