Home » केजरीवाल को जमानत

केजरीवाल को जमानत

  • डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
    दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल शराब घोटाले में जेल में थे । वे इधर उधर सभी प्रकार के न्यायालयों में ज़मानत के लिए अर्ज़ी लगा रहे थे । जब जेल में दिल का दौरा पड़ने से मुख़्तार अंसारी की मौत हुई और उसके रिश्तेदारों ने कहना शुरू कर दिया कि जेल में उन्हें ज़हर दिया गया था , तो केजरीवाल ने भी कहना शुरु कर दिया था कि उन्हें भी जेल में ज़हर ही दिया जा रहा है । लेकिन उन्हें कचहरी से राहत नहीं मिली । उनके दो और साथी इसी शराब घोटाला मामले में साल भर से भी ज्यादा समय से जेल में हैं । लाख अर्ज़ियाँ लगाने के वाबजूद उन्हें ज़मानत नहीं मिली ।केजरीवाल की इस मामले में संलिप्तता को लेकर अभी प्रवर्तन निदेशालय जाँच कर ही रहा था कि केजरीवाल ने देश की सबसे बडी कचहरी में यही अर्ज़ी लगा दी कि उनका तो शराब घोटाले वाले मामले से कोई सम्बध नहीं है । उनको बिना किसी कारण से पकड़ लिया गया है । इसलिए उनके खिलाफ की जा रही जाँच को बन्द करके उन्हें रिहा कर दिया जाए । बाक़ी उनके वकील इस मामले में ज्यादा तर्क यह भी दे रहे थे कि चुनाव का मौसम है और केजरीवाल दिल्ली के निर्वाचित मुख्यमंत्री भी हैं , इसलिए और नहीं तो उनके मुवक्किल को चुनाव में प्रचार करने के लिए ही छोड़ दिया जाए । सबसे बडी कचहरी को उनके वकीलों का यह तर्क मज़ेदार लगा । इसलिए कचहरी ने स्वयं ही सुझाव दिया कि इसके लिए अंतरिम ज़मानत के लिए अर्ज़ी लगाओ तो देखते हैं । अब अर्ज़ी लगाने में भला कितनी देर लगती । तब अर्ज़ी पर बहस शुरु हुई । दोनों ओर से वकील कचहरी में डट गए । केजरीवाल के वकीलों का तो तर्क वही था कि ‘लोगों के चुने हुए मुख्यमंत्री’ जेल में हैं और चुनाव का मौसम है । केजरीवाल जेल से बाहर न निकाले गए तो देश में लोकतंत्र और संविधान दोनों ख़तरे में पड जायेंगे । यहाँ तक कहा गया कि केजरीवाल को तो पकड़ा ही इसलिए गया है ताकि वे प्रचार न कर सकें । बाक़ी शराब घोटाला तो बहाना है । इतना ही नहीं , प्रवर्तन निदेशालय की हिमाक़त तो देखें कि केजरीवाल को तब पकड़ा गया जब देश में आदर्श चुनाव संहिता लागू हो चुकी थी । वैसे ये तर्क सुन कर देश का आम आदमी तो सिर पीट रहा था । अभी तक तो यही माना जा सकता था कि चुनाव संहिता के दिनों में सरकार कोई ऐसा काम नहीं कर सकती , जिस से मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके । लेकिन अब यह भी कहा जा रहा था चुनाव संहिता के दिनों में किसी तथाकथित अपराधी को भी गिरफ्तार भी नहीं किया जा सकता । बस एक ही रट थी कि देश में लोकतंत्र की प्राण प्रतिष्ठा केजरीवाल के बाहर आने से ही हो सकती है ।
    सरकारी वकील यह सब सुन सुन कर दाँतों तले उँगलियाँ चबा रहे होंगे । सरकारी वकील गा कहना था कि केस सुनते समय और न्याय करते समय तथाकथित अपराधियों में भेदभाव नहीं करना चाहिए । इस प्रकार तो जेल में बन्द हर विचाराधीन व्यक्ति को कोई न काम लगा ही रहेगा । उदाहरण के लिए किसान कहेगा , हजूर बिठाई गा समय आ गया है । महीना भर में चला जाएगा । इसलिए दस दिन के लिए ज़मानत दे दें , गेहूँ बीज कर वापिस आ जाऊँगा । जितना जरुरी चुनाव में प्रचार करना है , शायद उससे भी ज्यादा जरुरी खेत में गेहूँ बोना है । वैसे भी राजनीतिज्ञों के तो मज़े लग जाँएगे । चुनाव तो पाँच साल चला ही रहता है । जैसे केजरीवाल साल भर से ईडी को कह ही रहे थे ,सअपने समन सम्भाल कर रखो , मुझे पाँच राज्यों के चुनाव में प्रचार करना है । चुनाव निकल गया तो ईडी ने फिर समन भेजने शुरू कर दिए तो केजरीवाल ने फिर झिड़क दिया कि आपको शराब घोटाला की पड़ी है , इधर राज्य सभा के चुनाव सिर पर मँडरा रहे हैं । ईडी फिर हाथ मलती रही । ईडी ने कहा भी कि भाई , आपको अपराधी कौन कह रहा है , आप आ कर जाँच में शामिल हो जाएँ , ताकि पता तो चले कि शराब घोटाला का मामला कैसे हुआ । लेकिन केजरीवाल तो पैरों पर पानी नहीं पड़ने दे रहे थे । कभी कहने लगे सवाल लिख कर भेज दो ,सिफ़र देख लेंगे । कभी कहने लगे वर्चुअल पूछ लो । ईडी परेशान कि यदि हर व्यक्ति ईडी को ही बताने लगे कि जाँच कैसे करनी है तब तो किसी केस की जाँच हो ही नहीं सकती । केजरीवाल की इसी ड्रामेबाज़ी के चलते लोक सभा के चुनाव आ गए । तब ईडी को लगा कि कोई न कोई चुनाव तो होते रहेंगे और केजरीवाल उसी की आड लेकर जाँच का सामना करने से बचते रहेंगे । पानी सिर के ऊपर तक ही आ गया था । तब ईडी ने केजरीवाल को एक और समन भेजा और इस बार उसने और रास्ता निकाला कि इस बात का इंतज़ार न किया जाए कि वे जाँच में शामिल होने के लिए आते हैं या नहीं । इसलिए उनके घर जाकर ही पूछताछ कर ली जाए । जब ईडी के अधिकारी उनके घर पूछताछ करने पहुँचे तो उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ईडी अधिकारियों कोघर के अन्दर जाने से रोकने की कोशिश भी की । लेकिन अन्तत: पिछले कई महीनों के संघर्ष के बाद केजरीवाल ईडी के सामने थे । लेकिन कहा जाता है ज्यादा प्रश्नों के ‘उत्तर याद नहीं’ वाला सूत्र ही प्रयोग में किया गया । कुछ टैलीफोन भी ‘पता नहीं कहाँ रख दिए’ वाले सूत्र से टाल दिए गए । जाहिर है ऐसी स्थिति में ईडी के पास उन्हें गिरफ्तार करने के सिवा कोई चारा नहीं था । वे 21 मार्च को गिरफ्तार कर लिए गए । तब एक से दूसरी अदालत में ज़मानत की अर्ज़ियाँ चलीं । लेकिन मामला गम्भीर था , इसलिए जेल से बाहर का रास्ता नहीं मिल रहा था । तब अन्त में यह तर्क चला कर देख लिया गया कि हजूर मैं कोई साधारण क़ैदी नहीं हूँ । मैं तो राजनीतिज्ञ हूँ । मुझे तो चुनाव प्रचार बगैरह भी करना है । इसलिए मुझे रिहा कर दिया जाए ।
    लगता है कचहरी को यह तर्क ठीक लगा । उन्होंने कहा भी शराब घोटाले का मामला तो अगस्त 2022 से चल रहा है । अब केजरीवाल को गिरफ्तार भी तो इतने समय बाद मार्च 2024 में किया गया था । वैसे भी वे कोई आदतन अपराधी तो हैं नहीं । इसलिए कुछ दिन बाहर रह जाने से कोई पहाड तो नहीं टूट पड़ेगा । हम उन्हें कोई पक्की ज़मानत दो दे नहीं रहे । दो जून को उन्हें खुद चल कर वापिस तिहाड़ जेल जाना ही है । ख़ैर हुज़ूर की बात को कौन टाल सकता है । लेकिन जैसा ईडी के वकील ने कहा कि इससे विचाराधीन क़ैदियों के दो वर्ग मान लिए गए हैं । पहला वर्ग राजनीतिज्ञ क़ैदियों का और दूसरा सामान्य क़ैदियों का । ज़मानत चाहे वह पक्की हो चाहे अंतरिम , उसके लिए मानक भी अलग अलग ही मान लिए गए हैं । जैसा भारत में स्थिति बनती जा रही है , राजनीतिज्ञ क़ैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है । वैसे भी राजनीतिज्ञ बनने के लिए कोई परीक्षा तो पास नहीं करनी पड़ती । किसी प्रकार के चुनाव में , चाहे वह पंचायत का हो , नगरपालिका का हो , विधान सभा का हो , विधान परिषद का हो , लोक सभा का हो या राज्य सभा का हो , में केवल चुनाव लडने के लिए काग़ज़ भर कर स्वयं को प्रत्याशी घोषित करना होगा।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd