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- मेधावी महेन्द्र
प्राण तो सबको प्रिय हैं। परंतु पृथ्वी के झुझारू रूप से चलने हेतु, हर कल्प में प्राण रूपीशक्ति को खुद से पृथक करने के लिए रुद्र होना पड़ता है। निःस्वार्थ भक्ति से तो कोई भी आकर्षित हो जाता है। परंतु प्रेम वश असुरों के भी हो जाने के लिए भोलेनाथ होना पड़ता है। कमल तो किसी को भी मोह ले। परंतु कंटीले फल बेल पत्र से ही खुश हो जाने के लिए शंभु होना पड़ता है। शीतलता सबको प्रिय है। परंतु किसी की शीतलता बनी रहे, इसके लिए उसे सर पर धारण करने के लिए चंद्रशेखर होना पड़ता है। गंगा की चंचलता सबको भाती है। परंतु उसके धरती पर अवतरण हेतु ,उसके वेग को जटाओं में धारण करने के लिए गंगाधर होना पड़ता है! सुंदर पशु-पक्षी सबको प्रिय हैं।
परंतु हेय और भय के भाव से देखे जाने वाले सर्प को भी अपने कंठ में स्थान देने के लिए पशुपतिनाथ होना पड़ता है।
पुष्प के आभूषण तो कोई भी ग्रहण कर सकता है,परंतु मनुष्य के जीवन पश्चात भी उसको राख के रूप में अपने पास रखने के लिए महादेव होना पड़ता है। अमृत तो सब चाहते हैं। परंतु दूसरों के अमृत हेतु, खुद विषपान करने के लिए नीलकंठ होना पड़ता है।
मित्रों की रक्षा तो हर कोई करता है,परंतु वचनानुसार अधर्मी बाणासुर की रक्षा में कृष्ण से युद्ध करने के लिए शंकर होना पड़ता है।
भविष्य को जानकर भला कौन अनहोनी होने देता है? परंतु त्रिकालदर्शी होते हुए भी दक्ष के यज्ञ में जाने की सती की इच्छा का सम्मान रखने के लिए शिवाप्रिय होना पड़ता है। काल से भला कौन जीत सका है?
परंतु भक्त मार्कण्डेय के प्राणों हेतु यम तक को समाप्त करने के लिए महाकाल होना पड़ता है। मनुष्यों के देव तो बहुत मिलेंगे,
परंतु निशाचरों तक को अपनाने के लिए महेश होना होता है। शव तो एक दिन सब ही होते हैं। परंतु काली को शांत करने हेतु शव बनने के लिए शिव होना होता है। जो सर्प और कार्तिकेय के मोर को मित्रता सीखा दें, वो शिव हैं जो नंदी और गिरिजा के शेर की शत्रुता भुला दें वो महादेव हैं। जो भांग से भी प्रेम करें, दूध से भी, विष भी जिसका हो, अमृत भी वो शिव ही हो सकते हैं। नृत्य भी जिसका हो, संगीत भी, राग भी जिनका है, वैराग्य भी, वो महादेव ही हो सकते हैं।
आसान नहीं है शिव होना। हर पल त्याग, और बलिदान करना पड़ता है। मात्र भांग और धतूरे से नहीं। प्रकृति के हर कण से प्रेम करना होता है।