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लोस चुनाव के बीच भारत को कमजोर बताने का अंतरराष्‍ट्रीय षड्यंत्र

  • डॉ. मयंक चतुर्वेदी
    दुनिया में तमाम संगठन और एजेंसियां हैं जो कि समय-समय पर विभिन्‍न विषयों पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर उन्‍हें जारी करती हैं। इन एजेंसिंयों और संगठन की रिपोर्ट कितनी सही या गलत हैं, समय बीतने के साथ आखिरकार सामने आ ही जाता है। भारत के संदर्भ में भी कई रिपोर्ट जारी हुई हैं । अधिकांश में जो एक समानता दिखाई देती है, वह यही है कि भारत मोदी सरकार के रहते कमजोर हुआ है। किंतु क्‍या वाकई में यह सच है? इस संदर्भ में गहराई से अध्‍ययन करने के लिए लोकसभा, राज्‍यसभा में हुई तमाम बहसे हैं और उन बहसों के बीच सदन के पटल पर रखे गए वह आंकड़े हैं जो हमें सच्‍चाई से अवगत करा देते हैं। फिर सूचना के अधिकार के तहत विभिन्‍न मंत्रालयों, विभागों से प्राप्‍त की गई जानकारियां हैं और राज्‍य एवं केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई वार्षिक रपटें तथा उनके सभी विभागों की प्रोग्रेस रिपोर्ट आज मौजूद हैं । वस्‍तुत: यह सभी साक्ष्‍य हमें यह बताने के लिए पर्याप्‍त हैं कि भारत किस तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है, लेकिन भारत के विरोधी हैं कि इसे हर हाल मे नीचा दिखाना ही चाहते हैं।
    यही कारण है कि अधिकांश में जहां भी भारत का जिक्र है, वहां एक तरह की सामनता दिखती है। भारत भुखमरी में सबसे आगे पायदान पर खड़ा दिखाया जाएगा। कुपोषण में भारत को आगे दिखाएंगे। हिंसा, अपराध में भारत को रेड जोन में दिखाया जाता है । गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी जैसे आम जनता से सीधे जुड़े विषयों में भी सबसे दयनीय हालत में भारत को ही दिखाया जाता है। आश्‍चर्य तो यह है कि जब खुशी का वैिश्वक इंडेक्‍स यूएन के एक्‍पर्ट तैयार करते हैं तो उसमें भी भारत को उसके पड़ोसी मुल्‍क पाकिस्‍तान से भी निचले पायदान पर दर्शा दिया जाता है। फिर शुरू होता है झूठ का प्रचार करना। इसका एक परिणाम यह होता है कि सत्‍ता के विरोधियों को इसके बहाने सरकार को घेरने का अवसर मिल जाता है, पर सच तो सच ही रहता है। कई बार हो सकता है कि सच को सामने आने में वक्‍त लगे, लेकिन वह अपनी प्रखरता के साथ सामने जरूर आता है।
    अब इस संदर्भ में संयुक्‍त राष्‍ट्र की जारी की गई ‘हैप्‍पीनेस रिपोर्ट’ को ही ले लें। पाकिस्‍तान को जहां इस ‘हैप्‍पीनेस रिपोर्ट’ में 108वां स्‍थान दिया गया, वहीं भारत 126वें स्‍थान पर है। इसकी एक सूची और भी आई है, उसे यूएन ने हैप्‍पीनेस रिपोर्ट के तहत उम्र के आधार पर तैयार किया है। इसमें तो पाकिस्‍तान को 107वां और भारत को 127वां स्‍थान प्रदान किया गया है। यानी कि ऑवरऑल की तुलना में एक पायदान ओर नीचे पाकिस्‍तान के सामने यह रिपोर्ट भारत को खड़ा कर देती है। लेकिन क्‍या यह भारत की वास्‍तविकता है? आप हर स्‍तर पर तुलना करके देखें, आप पाएंगे कि भारत अपने मानव संसाधन का बेहतर उपयोग करते हुए दुनिया की शीर्ष देशों की सूची में सबसे आगे आने के लिए प्रयास कर रहा है। लेकिन यूएन है कि उसे यह सच नहीं दिख रहा। उसे तो यही दिखता है कि भारत में लोग दुखी हैं । इतने दुखी की दुनिया के 143 देशों की सूची मे वह भारत को 126वें स्‍थान पर रखता है। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि भारत की जनता से दुखी अफ्रीका एवं एशिया महाद्वीय के सिर्फ 17 देश ही ऐसे हैं जो अधिक दुखी हैं।
    यह भी किसी चमत्‍कार से कम नहीं है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र की इस ‘हैप्‍पीनेस रिपोर्ट’ को जारी हुए अभी कुछ ही दिन बीतें हैं कि यूएन का यह झूठ दिखाने वाला सच भी सामने आ गया है कि जिस पाकिस्‍तान को संयुक्‍त राष्‍ट्र खुशी के मामले में भारत से 18 देशों से भी आगे दिखा रहा है, उस पाकिस्‍तान की हालत इस वक्‍त दाने-दाने के लिए मोहताज होने जैसी है। लोग महंगाई से रो रहे हैं । भूख से तड़प रहे हैं, लेकिन यूएन को तो पाकिस्‍तानियों की इस भूख में और महंगाई में खुशी दिखाई दे रही है!
    एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सिर्फ 1.9 फीसदी की दर से बढ़ रही है। जो कि एशियाई विकास परिदृश्य ने अगले वित्त वर्ष के लिए एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती है। चालू वित्त वर्ष में पाकिस्तान में महंगाई की दर 25 प्रतिशत पूरे एशिया में सबसे अधिक है। इस तरह एशिया में सबसे अधिक महंगाई पाकिस्तान में है। पाकिस्तान लंबे समय से महंगाई जनित मंदी के दौर से गुजर रहा है और इसीलिए विश्व बैंक ने कहा भी कि महंगाई के कारण यहां एक करोड़ लोग गरीबी के जाल में फंस सकते हैं। आंकड़ा यह है कि पाकिस्तान में लगभग 9.8 करोड़ लोग पहले से ही गरीबी में जी रहे हैं। वस्‍तुत: यह आंकड़ा कोई एक दिन में नहीं आ गया है। विश्व बैंक की यह आशंका 1.8 प्रतिशत की सुस्त आर्थिक वृद्धि दर के साथ बढ़ती महंगाई पर आधारित है। पाकिस्तान में गरीबी की दर लगभग 40 प्रतिशत पर बनी हुई है।
    यह रिपोर्ट में गरीबी रेखा के ठीक ऊपर रह रहे लोगों के नीचे आने के जोखिम को बता रही है। पाकिस्तान में कर्ज-विकास दर अनुपात अभी 70 प्रतिशत से ज्यादा है। कर्ज-विकास दर का कम अनुपात स्वस्थ्य अर्थव्यवस्था का एक पैमाना माना जाता है, जो कि यहां यह बहुत अधिक है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बेहद निचले स्तर पर पहुंच गया है। जिसके परिणामस्‍वरूप आज कई बड़े बिजनेसमैन पलायन को मजबूर हो गए हैं। वह दूसरे मुल्कों में अपना बसेरा बना रहे हैं। अपने कारोबार भी स्‍थानांतरित कर रहे हैं। जिसका असर यह है कि पाकिस्तान में नौकरियां खत्म होती जा रही हैं। लोगों के पास खाने के लाले पड़ गए हैं। जिन बिजनेसमैन और अरबपतियों के पाकिस्तान छोड़ा है, आप यदि उनसे बात करते हैं तो प्राय: सभी का एक जैसा ही जवाब आता है, वह है कि पाकिस्तान में बिगड़ती कानून व्यवस्था के साथ राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितताओं ने आज उन्‍हें देश छोड़कर बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया है ।
    कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत के इस पड़ोसी मुल्क की स्िथति इतनी खराब है कि लोगों को दो वक्त की रोटी खाना भी मुश्किल हो गया है। रोजमर्रा के सामान के दाम आसमान छू रहे हैं। जनसंख्‍या की तुलना में काम धंधा है नहीं । अब आप स्‍वयं सोच सकते हैं कि उस देश की हालत कितनी खराब होगी, जिस देश के लोग भीख मांगने के लिए भी दूसरे देशों में जा रहे हैं । उसके बाद भी यूएन है कि उसे भारत से अधिक खुशी पाकिस्‍तान में नजर आ रही है।
    यदि आज सिर्फ इन दो देशों के बीच की आर्थिक ग्रोथ ही निकाल ली जाए तो भारत दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है और अर्थव्यवस्था 3.39 ट्रिलियन डॉलर की है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक आदि विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने भी आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक वृद्धि दर को 7.2 प्रतिशत रहने की प्रबल संभावनाएं जताईं हैं। महंगाई नियंत्रण में है। रोजगार के नए-नए अवसर लगातार बढ़ रहे हैं। लखपतियों और अरबपतियों की संख्‍या में निरंतर वृद्धि जारी है। जो बहुत गरीब हैं उनको मोदी की गारंटी है । केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन दे ही रही है। फिर भी संयुक्‍त राष्‍ट्र (यूएन) है कि भारत को पाकिस्‍तान से कमजोर स्िथति में बता रहा है।

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