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जीत की जिद ने भारत को बनाया विश्व विजेता

  • पंकज जैन
    भारत की टी20 जीत सही मायनों में हमें कई संदेश देती है। खिलाडिय़ों का संघर्ष करना और अंत समय तक हार नहीं मानने की जिद ने टीम को विश्व विजेता बना ही दिया। ऐसा पहली बार नहीं, बल्कि चौथी बार हुआ। इसके अलावा भी कई पहलू इस जीत की बुनियाद में छिपे हुए हैं। मसलन, कोच राहुल द्रविड़ का एक खिलाड़ी के रूप में अनुभव और प्रशिक्षण की बारीकियां।
    अमेरिका और वेस्ट इंडीज की संयुक्त मेजबानी में यह विश्व कप खेला गया। अमेरिका का अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में यह आगाज था। अमेरिकी टीम ने घरेलू मैदान पर शानदार प्रदर्शन किया और सारे समीकरण ही बदल दिए। सुपर-8 में अमेरिका का पहुंचना कई मायनों में चौंकाने वाला भी रहा। लेकिन, पिच को लेकर आलोचना भी अमेरिका के खाते में रही। जैसे ही अमेरिका को सुपर-8 के मैच खेलने वेस्ट इंडीज जाना पड़ा। टीम का प्रदर्शन बिखर गया और टीम बाहर हो गई। हालांकि, अमेरिका में अब इस खेल की प्रतिष्ठा बढऩा तय है। अमेरिका में काफी भारतीय है और टीम में भी बड़ा योगदान भारतीय मूल के खिलाडिय़ों का रहा।
    बात भारतीय टीम की करें तो टीम को पहले मैच से काफी संघर्ष करना पड़ा। ग्रुप के शुरुआती मैचों में भारत को अमेरिकी पिचें रास नहीं आई। सभी मैच कम स्कोर वाले रहे। इन मैचों में भारतीय टीम को संघर्ष करते देखा गया। हालांकि, सभी खिलाडिय़ों ने जीत के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। देखा जाए तो भारतीय टीम की शुरुआत को लेकर सभी चिंतित थे, क्योंकि आशाओं के एक बड़े केंद्र में विराट कोहली का बल्ला था, जो रन नहीं उगल पा रहा था। कोहली अक्सर इंडियन प्रीमियर लीग में ही सलामी बल्लेबाजी की बागडोर संभालते रहे हैं। विश्व कप में भी यह जि मेदारी कप्तान रोहित शर्मा और कोहली ने संभाली। शुरुआती मैचों से सुपर-8 तक के मैचों में कोहली संघर्ष ही करते नजर आए। फिर भी कोहली जैसे बड़े खिलाड़ी से इतने जल्दी उ मीद नहीं छोड़ी जा सकती थी। हुआ भी यही। उन्होंने फाइनल में दिखा ही दिया कि उनका कोई सानी नहीं। टूर्नामेंट के सभी नौ मैचों (एक रद्द मैच को छोडक़र) को देखा जाए तो कोहली की सलामी बल्लेबाजी पर सवाल ही उठे। यशस्वी जायसवाल को लेने की चर्चा आम रही, लेकिन कप्तान, कोच और प्रबंधन ने जोखिम उठाना उचित नहीं समझा। खैर, टीम को अंतत: जीत मिल ही गई। बात बल्लेबाजी को तो हो ही गई। गेंदबाजों के प्रदर्शन को हाशिये पर नहीं लाया जा सकता। छोटे स्कोर वाले मैचों में भी हमारे गेंदबाजों ने कमाल दिखाया है। वास्तव में जसप्रीत बुमराह, अर्शदीप सिंह ने शुरुआती ओवरों में हर टीम के खिलाफ विकेट लेकर विरोधी टीम पर दबाव बनाया। टीम के कप्तान भी यही चाहते हैं कि शुरुआती गेंदबाज पहले पांच ओवर में 1-2 विकेट ले लें तो आगे की राह आसान हो जाती है। इसके बाद का काम तो हमारे फिरकी गेंदबाज बखूबी निभा लेते हैं।
    भारत का सबसे मजबूत पक्ष आज भी बलखाती गेंदबाजी ही है। अक्षर पटेल, कुलदीप यादव और रविंद्र जडेजा की तिकड़ी ने हम मौके पर टीम को विकेट दिलाकर विरोधियों की कमर तोड़ दी। सेमीफाइनल मुकाबले को देखें तो गत चैंपियन इंग्लैंड की टीम इन्हीं स्पिनर के सामने नतमस्तक हो गई थी।
    खेल का तीसरा पक्ष भी हमारी मजबूती रही है। क्रिकेट में कहा जाता है कि यदि कैच टपकाए तो मैच नहीं जीते जा सकते। यह खेल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू भी है। इसके लिए टीम के चयनकर्ता और कोच तथा कप्तान के फैसले कसौटी पर खरे उतरे। भारतीय टीम में देखा जाए तो सभी खिलाड़ी युवा ही है। इनमें रोहित शर्मा, विराट कोहली और रविंद्र जडेजा को छोड़ दिया जाए तो सभी की उम्र का औसत महज 25 के अंदर ही है। टीम चयन में यह एक महत्वपूर्ण कारक रहा। फटाफट क्रिकेट के इस प्रारूप में चुस्त-दुरूस्त खिलाडिय़ों का होना ही जरूरी माना जाता है। क्योंकि, बल्ले और गेंद के अलावा मैदान के चारो ओर क्षेत्ररक्षण भी महत्वपूर्ण है। फाइनल मैच का वह कैच सभी की स्मृतियों में बरसो रहेगा, जब हार्दिक पंड्या की गेंद पर सीमा रेखा के पास सूर्यकुमार यादव ने कैच लपका। यह मैच का पासा पलटने वाला कैच था। इसीलिए क्रिकेट में कैच पकडऩा और मैच जीतना कहा जाता है।
    एक और बात यह भी की टीम इंडिया के कोच राहुल द्रविड़ को इस जीत का सूत्रधार माना जाना चाहिए। अपने समय में विश्व क्रिकेट की द वाल के नाम से मशहूर खिलाड़ी ने अपना सारा अनुभव इस जीत के लिए झोंक दिया। कोहली के प्रदर्शन को लेकर जब सवाल उठे तो उन्होंने पूरी उ मीद बनाए रखी। टीम के मनोबल को बढ़ाना भी उनके पैंतरों में शामिल रहा। द्रविड़ एक खिलाड़ी के रूप में कोई बड़ा खिताब नहीं जीत पाए, लेकिन कोच के रूप में उनसे सफल कोई दूजा नहीं है। उन्होंने टीम को पिछले 12 माह में फाइनल तक का सफर कराया। यही नहीं, जूनियर टीम को भी विश्व विजेता बनाया और फाइनल तक भी पहुंचाया। अब चूंकि, उनका कार्यकाल पूरा हो गया है, इससे सफल विदाई उन्हें टीम नहीं दे सकती थी। साथ ही विराट कोहली और कप्तान रोहित शर्मा ने खिताबी जीत के साथ ही टी20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। यह दोनों ही खिलाडिय़ों की उदारता है कि उनके हटने से नवोदित खिलाडिय़ों को मौका मिलेगा और एक नई टीम का निर्माण होगा। अंत में यही कि इस जीत में सबसे बड़ी भूमिका आपके संघर्ष करने और जीत की जिद को सिद्ध करती है।

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