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मध्यप्रदेश में युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की पहल

  • लोकेन्द्र सिंह
    मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहलकदमी पर सरकार ने ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ की नींव रखी है। सरकार का उद्देश्य है कि इस योजना के आधार पर ‘आत्मनिर्भर युवा-आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश’ की सुंदर इमारत खड़ी हो। नि:संदेह, युवाओं के हाथ में हुनर होगा, तो वे राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में आगे बढ़कर आहुति देंगे। आज प्रदेश ही नहीं, अपितु देश की सबसे बड़ी ताकत हमारी युवा जनसंख्या है। भारत दुनिया का सबसे अधिक युवा जनसंख्या का देश है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट-2023’ के अनुसार, भारत में 26 प्रतिशत जनसंख्या का आयुवर्ग 10 से 24 साल है। वहीं, सबसे ज्यादा 68 प्रतिशत आबादी 15 से 64 वर्ष के आयुवर्ग में है। एक ओर यह सुखद तथ्य है, तो दूसरी ओर इस युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग करने की कठिन चुनौती भी हमारे सामने है। कोई युवाओं को ‘बेरोजगारी भत्ता’ देने की बात कह रहा है, तो कोई अन्य प्रकार से बहलाने की कोशिश कर रहा है, ऐसे सभी प्रकार के विमर्शों के बीच मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ के रूप में सराहनीय एवं अनुकरणीय पहल की है। यह मानने के अनेक कारण उपलब्ध हैं कि ‘बेरोजगारी भत्ता’ युवा शक्ति की धार को कुंद कर सकता था। युवाओं के हाथ में केवल चार-पाँच हजार रुपये देने से स्थायी समाधान नहीं निकल सकता था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार ने अच्छा निर्णय लिया कि युवाओं को उनकी रुचि का काम सिखाकर, उनके हाथों को सदा के लिए सशक्त कर दिया जाए। युवाओं को प्रशिक्षण के दौरान उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर 8 हजार से 10 हजार रुपये तक का आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जाएगा। अर्थात् युवा हुनर सीखने के साथ भी कमाएगा और सीखने के बाद तो उसकी कमाई के अनेक रास्ते खुल ही जाने हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह कहना उचित ही है- “बेरोजगारी भत्ता बेमानी है। नई योजना, युवाओं में क्षमता संवर्धन कर उन्हें पंख देने की योजना है, जिससे वे खुले आसमान में ऊँची उड़ान भर सकें और उन्हें रोजगार, प्रगति और विकास के नित नए अवसर मिलें”।
    युवाओं को हुनरमंद बनाना और उन्हें स्वरोजगार के लिए तैयार करना, आज के समय की आवश्यकता है। देश-प्रदेश में युवाओं की ऐसी बड़ी संख्या है, जिनके पास कोई रोजगार नहीं है। रोजगार के अभाव में युवाओं में असंतोष की भावना भी है। सरकार ने अनेक प्रकार से युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयत्न किए हैं, इनमें शासकीय एवं निजी क्षेत्र की नौकरियों से लेकर युवा उद्यमियों के स्टार्टअप को ऋण देने तक की व्यवस्थाएं हैं। देश-प्रदेश के युवाओं की सराहना करना होगी कि उन्हें भी बिना परिश्रम की कमाई का लोभ नहीं है। याद हो, पिछले लोकसभा चुनाव के पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को ‘बेसिक इनकम’ देने का सपना दिखाया गया था। परंतु युवाओं ने इस विचार को नकार दिया क्योंकि वह हुनर सीखना चाहता है, अपने कौशल से आजीविका कमाना चाहता है। युवाओं को यह समझ है कि मुफ्त की कमाई के लिए देश और समाज को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हमें याद रखना चाहिए कि स्विट्जरलैंड ने नागरिकों ने भी ‘बिना काम किए घर बैठकर वेतन प्राप्त करने के विचार’ को नकार कर दुनिया के सामने श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है।
    मध्यप्रदेश के संदर्भ में एक आंकड़े के अनुसार, लगभग 37 लाख शिक्षित बेरोजगार हैं। हालाँकि सबको बेरोजगार कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इनमें से बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है, जो अभी भी उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और ऐसे भी युवा इसमें शामिल हो सकते हैं, जो अपने वर्तमान काम से संतुष्ट नहीं होंगे। कुल मिलाकर कहना होगा कि प्रदेश सरकार के सामने बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार दिलाने या उन्हें रोजगार का सृजन करने के लिए दक्ष करने की महती जिम्मेदारी है। संतोषजनक बात यह है कि अपनी जिम्मेदारी को भली प्रकार समझकर, युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, सरकार ने ठीक दिशा में ठोस कदम उठाना शुरू कर दिया है। जो युवा सरकार सेवा में जाना चाहते हैं, उनके लिए भी यह सरकार अवसर उपलब्ध करा रही है। सरकार की ओर से एक लाख पदों पर भर्ती की प्रकिया संचालित की जा रहा है।

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