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- इंजी. राजेश पाठक
किसी देश का मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का बड़ा रौचक इतिहास रहा है । एशिया में सबसे पहले जापान के अन्दर दुनिया भर के इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण आकर असेम्बल हुआ करते थे । लोगों को काम मिला, जीवन स्तर सुधरा तो उनकी कंपनीयों से अपेक्षा बढ़ने लगी । अब उन्हें कार चाहिए थी, घर चाहिए था और भी सुविधाएँ चाहिए थीं। परिणाम स्वरूप श्रम-लागत महंगी हो चली। इसका तोड़ सोनी जैसी कंपनीयों ने साउथ कोरिया में ढून्ढ निकला , और इस देश ने अब मैन्युफैक्चरिंग हब का स्थान ले लिया । और वो दुनिया का निर्यातक बन गया।
और जब यहाँ भी माध्यम वर्गीय लोग समृद्ध हुए तो जापान की तरह स्थित बदली और उसके स्थान पर अब चीन आ खड़ा हुआ। एक समय ऐसा आया, दुनिया भर की कंपनियां चीन में मौजूद थी। उनके संपर्क में आने से चीन की अपनी कंपनियां विकसित होने लगी। लेकिन यहाँ भी सख्ती से लागू ‘वन चाइल्ड नॉर्म’ के चलते धीरे –धीरे श्रम शक्ति महँगी होने लगी, और जब बुजर्ग हो चले कुशल श्रमिकों ने पेंशन आदि सामाजिक-सुरक्षा की मांग करना शुरू करी तो कंपनीयां धीरे-धीरे इस निष्कर्ष पर पहुंची की अब यहाँ से भी धंधा समेट लेने का वक्त आ गया है । और अब नए ठिकाने के रूप में भारत सहित वियतनाम आदि देश उनकी नज़रों में आ बसे हैं । फिर मोदी सरकार ने पहले से ही उनके लिए तमाम सुविधायों से युक्त इज़ ऑफ़ डूइंग बिसिनेस के अंतर्गत असेम्बल –इंडिया, मेक इन -इंडिया और 14 पीएलआई स्कीम शुरू कर रखीं है। इसी का ही परिणाम है कि डेल, एचपी, आईफ़ोन, माइक्रोन और हाल ही में वेदांता से बात न बनने के बाद ताइवान के फोक्सकॉन ने अकेले अपने ही स्तर पर भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण को लेकर 1।6 बिलियन डॉलर निवेश करने का फैसला किया है ।
चीन की कीमत पर होने वाले अर्थ-जगत में ये परिवर्तन स्वयं चीन, और देश के अंदर और बाहर सक्रीय उसके हित-पोषक तत्वों को कैसे चैन से रहने दे सकता है। इसलिए अब भारत उनके निशाने पर है, और अडानी भी। विश्व-व्यापार को सुगम बनाने वाले आयामों में शिपिंग की अहम् भूमिका होती है। श्रीलंका में चीन के ऋण पर निर्मित हमबनतोता बंदरगाह अब 90 वर्ष के लिए लीज़ पर चीन के ही पास आ चुका है, क्यूंकि श्रीलंका ऋण चुका पाने की स्थिति में नहीं था। इस पूरे घटनाक्रम का असर तमाम देशों पर हुआ, और भारत पर ज्यादा । इसलिए अडानी ने एक पोर्ट श्रीलंका में निर्माण करना शुरू किया । जिसमें अमेरिका भी 4600 रूपए निवेश करेगा। इस पूरे परिदृश्य ने अडानी को इस उप महाद्वीप का सबसे बड़ा निवेशक बना दिया है। अडानी भारत के लिए इजराइल के हायफा तट पर पोर्ट तैयार कर रहे हैं । शिपिंग में अभी चीन का इस क्षेत्र में दबदबा है। इजराइल में भी उसका अपना पोर्ट है। देश में अब अडानी की कंपनी ने तिरुवंतपूरम के निकट विनझिनझाम इलाके में अति आधुनिक सुविधाओं से युक्त एक बंदरगाह हाल ही में निर्मित किया है। इसके बन जाने से अब हमारे समुद्र तट पर ज्यादा बज़न के सामान से लदे जहाज आ सकेँगे। क्यूँ कि देश के बाकी तटों की तुलना में तिरुवंतपूरम के इस तट की गहरायी 20 मीटर से अधिक है( जिसे ड्राफ्ट भी कहते हैं),जो कि सर्वाधिक है। इंटरनेशनल शिपिंग लाइन से मात्र 10 मील स्थित देश के इस पहले ट्रांसशिपमेंट पोर्ट से सीधे सूदूर पूर्व और पश्चिम में स्थित सिंगापूर,श्रीलंका और दुबई में भारी सामान( मेगा गुड्स) भेजना आसान हो गया है।