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तीस्ता नदी पर चीन को भारत का करारा जवाब

  • प्रमोद भार्गव
    अर्से से चीन बांग्लादेश की तीस्ता नदी के कायाकल्प के बहाने नदी के जल प्रबंधन का दायित्व हथियाने के प्रयास में लगा था। लेकिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में चीन की कोशिशों पर विराम लग गया है। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच हुई बैठक में यह सहमति बनी है कि तीस्ता नदी जल प्रबंधन पर निर्णायक वार्ता के लिए जल्दी ही भारत का एक तकनीकी दल ढाका का दौरा करेगा, जो नदी में जमीं गाद को साफ करने के साथ नदी के पुराने स्वरूप को लौटाने के लिए रोडमैप तैयार करेगा। इसके साथ ही दोनों देशों ने गंगा जल बंटवारे समझौते को नए सिरे से अमल में लाने और एक समग्र कारोबारी समझौते पर भी बातचीत करने का फैसला लिया है। बैठक में दस महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। ये घोषणाएं दोनों प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त पत्रकार वार्ता के दौरान कहीं हैं।
    चीन का हस्तक्षेप भारत और बांग्लादेश में से बहने वाली नदी तीस्ता पर दिखाई नहीं देता था। किंतु कुछ समय पहले इस नदी पर एक विशाल जलाशय बनाने के बहाने चीन ने बांग्लादेश की जमीन पर बहने वाली तीस्ता नदी पर विकास कार्यों में सहयोग बढ़ाने की इच्छा शेख हसीना को जताई थी। यह जानकारी बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने दी थी। किंतु भारत द्वारा आपत्ति उठाए जाने पर बांग्लादेश ने जवाब दिया था कि ‘चीनी राजदूत याओ वेन ने बीजिंग से ढाका को तीस्ता जल भराव क्षेत्र के विकास हेतु कई प्रस्ताव दिए हैं। इनमें तीस्ता नदी में वृहद स्तर पर सफाई करने, जलाशय और तटबंध बनाने के प्रस्ताव शामिल हैं।‘ दरअसल तीस्ता नदी भारतीय राज्य सिक्किम व पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है। इसे सिलिगुड़ी गलियारा या चिकन नेक कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में स्थित 28 किमी की भूमि का यह संकीर्ण क्षेत्र है। यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ता हैं। इसके इर्द-गिद नेपाल और बांग्लादेश हैं। भूटान का साम्राज्य इस गलियारे के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है। इस लिहाज से यह भारत के लिए अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। अतएवं भारत इस क्षेत्र में किसी भी बहाने चीन का हस्तक्षेप नहीं चाहता है। इस परियोजना पर करीब 8 हजार 300 करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना है। चीन ने इस कार्य को शत-प्रतिशत अपनी पूंजी से पूरा करने की इच्छा शेख हसीना को जताई थी। चीन को इस काम का ठेका मिलने का मतलब, इस क्षेत्र में दखल के साथ नदी के जल प्रवाह का डाटा भी हासिल हो जाता। चीन के साथ भारत के रिश्ते कटुता एवं विश्वास के बने होने के कारण भारत चीन की उपस्थिति अपनी सीमाओं के ईद-गिर्द नहीं चाहता है।
    विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी भागीदारी से इस नदी पर भारत और बांग्लादेश के बीच जल-बंटवारे को लेकर चल रहा लंबा विवाद और गहरा सकता है? हालांकि 2009 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही जल-बंटवारे पर सहमति से समझौते की बात चल रही है। दोनों पड़ोसी देश तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 2011 में की गई बांग्लादेश की यात्रा के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर के लिए लगभग तैयार थे, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अंतिम समय पर समझौते के विरुद्ध खड़ी हो गईं, नतीजतन तय प्रस्ताव को निलंबित कर दिया गया।
    भारत एवं बांग्लादेश के बीच 25 वर्षों से दोनों देशों के बीच बहने वाली नदियों के जल बंटवारे को लेकर समझौते की बातचीत चल रही है। शेख हसीना और नरेंद्र मोदी की 2022 में परस्पर हुई बातचीत के बाद कुशियारा नदी के संदर्भ में अंतरिम जल बंटवारा समझौते पर हस्ताक्षर भी हो गए हैं। 1996 में गंगा नदी जल-संधि के बाद इस तरह का यह पहला समझौता है। इसे अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता माना गया है। यह भारत के असम और बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र को लाभान्वित करेगा। 54 नदियां भारत और बांग्लादेश की सीमाओं के आरपार जाती हैं और सदियों से दोनों देशों के करोड़ों लोगों की आजीविका का मुख्य साधन बनी हुई हैं। इन नदियों के किनारों पर मानव सभ्यता के विकास के साथ सृजित हुए लोक गीत और लोक कथाएं, धर्म एवं संस्कृति की ऐसी धरोहर हैं ,जो मानव समुदायों को लोक कल्याण का पाठ पढ़ाने के साथ नैतिक बल मजबूत बनायें रखने का काम करती हैं। बावजूद दोनों देशों के बीच बहने वाली तीस्ता नदी के जल बंटवारे को अंतिम रूप अब तक नहीं दिया जा सका है।
    नदियों के जल-बंटवारे का विवाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी विवाद का विषय बना रहा है। ब्रह्मपुत्र को लेकर चीन से, तीस्ता का बांग्लादेश से, झेलम, सतलुज तथा सिंधु का पाकिस्तान से और कोसी को लेकर नेपाल से विरोधाभास कायम है । भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में खटास सीमाई क्षेत्र में कुछ भूखंडों, मानव-बस्तियों और तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर पैदा होता रही है। हालांकि दोनों देशों के बीच संपन्न हुए भू-सीमा समझौते के जरिए इस विवाद पर तो कमोबेस विराम लग गया, लेकिन तीस्ता की उलझन बरकरार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2015 में बांग्लादेश यात्रा पर गए थे, तब ढाका में द्विपक्षीय वार्ता भी हुई थी, लेकिन तीस्ता की उलझन, सुलझ नहीं पाई थी।
    विदेश नीति में अपना लोहा मनवाने में लगे नरेंद्र मोदी से यह उम्मीद इसलिए ज्यादा है, क्योंकि शेख हसीना दोनों देशों में परस्पर दोस्ती की मजबूत गांठ बांधने के उद्देश्य से भारत आती रही हैं । यह उम्मीद इसलिए भी है, क्योंकि 2016 में मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने बांग्लादेश के साथ कुछ बस्तियों और भूक्षेत्रों की अदला-बदली में सफलता प्राप्त की थी। इसलिए उम्मीद की जा रही है, कि तीस्ता नदी से जुड़े जल बंटवारे का मसला भी हल हो जाएगा। ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के बीच राजनैतिक दूरियों के चलते इस मुद्दे का हल नहीं निकल पा रहा है। यह विवाद 2011 में ही हल हो गया होता, यदि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अड़ंगा नहीं लगाया होता ?
    तीस्ता के उद्गम स्रोत पूर्वी हिमालय में स्थित सिक्किम राज्य के झरने हैं। ये झरने एकत्रित होकर नदी के रूप में बदल जाते हैं। नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। इसलिए सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पानी से जुड़े हित इस नदी से गहरा संबंध रखते हैं। तीस्ता नदी सिक्किम राज्य के लगभग समूचे मैदानी क्षेत्रों में बहती हुई बंग्लादेश की सीमा में करीब 2800 वर्ग किमी क्षेत्र मे बहती है। नतीजतन इन क्षेत्रों के रहवासियों के लिए तीस्ता का जल आजीविका के लिए वरदान बना हुआ है। इसी तरह पश्चिम बंगाल के लिए भी यह नदी बांग्लादेश के बराबर ही महत्व रखती है। बंगाल के छह जिलों में तो इस नदी की जलधारा को जीवन-रेखा माना जाता है। भारत और बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की शुरुआत इस देश के अस्तित्व में आने के वर्ष 1971 में ही हो गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से अलग होने वाले स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश का समर्थन करते हुए अपनी शांति सेना भेजी और इस देश को पाक की गुलामी से मुक्त कराया। इस कारण दोनों देशों के बीच भावनात्मक संबंध हिंदुओं पर अत्याचार के बावजूद कायम हैं। 1983 में दोनों देशों के बीच एक तदर्थ जल हिस्सेदारी पर संधि हुई थी, जिसके तहत 39 एवं 36 प्रतिशत जल बंटवारा तय हुआ। इस समझौते द्वारा तीस्ता नदी के जल वितरण का समान आवंटन का प्रस्ताव ही नई द्विपक्षीय संधियों का अब तक आधार बना हुआ है।
    इसी कड़ी में वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे से पहले इस नदी जल के बंटवारे पर प्रस्तावित अनुबंध की सभी शर्तें सुनिश्चित हो गई थीं,लेकिन पानी की मात्रा के प्रश्न पर ममता ने आपत्ति जताकर ऐन वक्त पर डाॅ सिंह के साथ ढाका जाने से इनकार कर दिया था। हालांकि तब की शर्तें सार्वजनिक नहीं हुई हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु के दौरान तीस्ता का पश्चिम बंगाल को 50 प्रतिशत पानी मिलेगा और अन्य ऋतुओं में 60 फीसदी पानी दिया जाएगा।

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