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वैश्विक जनसंख्या में भारत का प्रथम होना चिंताजनक

  • डॉ. अजय कुमार मिश्रा
    किसी भी देश के लिए वहां की जनसँख्या आशीर्वाद है जब उनकी क्षमता का दोहन सही तरीके से किया जाय, इसके ठीक विपरीत वही जनसँख्या उनके लिए किसी बड़े अभिशाप से कम नहीं है यदि उपलब्ध संसाधनों के अनुपात में जनसँख्या अत्यधिक हो | हाल ही में यूनाइटेड नेशंस द्वारा जारी किये गए आकड़ों के अनुसार भारत की जनसँख्या 142.86 करोड़ हो गयी है | हमारी आबादी दुनियां में किसी भी देश की आबादी से सर्वाधिक है | हमारे पश्चात् चीन दुसरें क्रम पर है जिसकी आबादी 142.57 करोड़ है | हमसे पहले चीन की आबादी दुनियां में सर्वाधिक थी | यूनाइटेड नेशंस के आकड़े यह भी कहतें है की दुनियां में पांच ऐसे देश है जिनकी जनसँख्या घटते क्रम में है यानि की वृद्धि की रप्तार घटते क्रम में है ये देश है भारत, चीन, अमेरिका, इंडोनेशिया और पाकिस्तान | पर यह भारत के लिए राहत नहीं प्रदान करता | भारत की 25 प्रतिशत जनसँख्या 0-14 उम्र में है और 18 प्रतिशत जनसँख्या 10-19 प्रतिशत में है | 26 प्रतिशत जनसँख्या 10 से 24 उम्र की है यानि की सर्वाधिक युवा आबादी है | 68 प्रतिशत 15-64 उम्र में है | महज सात प्रतिशत आबादी 65 उम्र से अधिक है | यदि 25 वर्ष उम्र से कम की आबादी को देखा जाये तो इनकी संख्या 40 प्रतिशत है | विशेषज्ञों का कहना है की जहाँ एक तरफ केरल और पंजाब की आबादी बढ़ती उम्र की आबादी है वही उत्तर प्रदेश और बिहार की आबादी युवा है | कई अध्ययनों से यह भी पता चला है की जनसँख्या 165 करोड़ के चरम पर पहुचने से पहले भारत की आबादी लगभग तीन दशकों तक बढ़ने की उम्मीद है इसके पश्चात् जनसँख्या में गिरावट शुरू हो जाएगी | तो क्या भारत की जनसँख्या चिंता जनक है? भारत की आबादी अधिक होने के पीछे हमें कारणों और उससे नुकशान को जानना जरुरी है – भारत की आबादी ऐतिहासिक रूप से अधिक रही है | हमारे यहाँ उच्च जन्म दर और प्रजनन दर है| हमारे यहाँ कम उम्र में विवाह होना और सार्वभौमिक विवाह प्रणाली का होना भी हमारी जनसँख्या में वृद्धि करता है| गरीबी और अशिक्षा भी जनसँख्या वृद्धि में अहम् भूमिका निभाते है| सदियों पुराना सांस्कृतिक आदर्श जहाँ सभी को बेटा ही चाहिए से भी जनसँख्या में वृद्धि हो रही है | अवैध प्रवास भी जनसँख्या वृद्धि में अहम् रोल अदा कर रहा है | इसके अतिरिक्त जागरूकता की कमी भी इसमें अहम् भूमिका निभा रही है | सर्वाधिक आबादी होने के कारण हम जन्म और प्रजनन दर के आदर्श मानक को प्राप्त नहीं कर पा रहे है| बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हो रही है | हमारे विभिन्न इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी दबाव पड़ना शुरू हो गया है | हम उपलब्ध जनशक्ति का सही उपयोग देश के विकास में नहीं कर पा रहें है | जमीन और पानी की कमी की समस्या के अतिरक्त हम जंगलों का खात्मा करते चले जा रहे है | उत्पादों के उत्पादन में कमी आ रही है जबकि लागत में वृद्धि होती जा रही है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ रही है | लोगों की आय में भारी असमानता है और भारत की संसद में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व में भिन्नता भी बढ़ रही है | भारत के परिप्रेक्ष में बढ़ती जनसँख्या पर सभी के अलग – अलग मत है परन्तु जब वैश्विक और भारत में उपलब्ध संसाधनों से तुलना करेगे तो बढ़ती जनसँख्या विनाश की तरफ तेजी से जा रही है।

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