23
- डाॅ. विनोद मिश्रा
6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस। इस दिन भारतीय जनसंघ, जो 1977 के पूर्व राष्ट्रीय कारणों एवं आवश्यकताओं के कारण जनता पार्टी में विलय हो गया। पुनः अपने नये राजनैतिक क्लेवर मुम्बई राष्ट्रीय अधिवेशन में नये राजनैतिक दल के रूप बना और इसके साथ ‘‘दिये की ज्योति’’ ‘‘कमल’’ के रूप में राष्ट्रीय राजनीति में प्रगटित हुई। किसी भी दल, संस्था का स्थापना दिवस न केवल महत्वपूर्ण होता है, बल्कि वह प्रत्येक स्थापना दिवस पर संदेश देता है, सोचने को बाध्य करता है। ये सोचें कि इन पूर्व के वर्षों में हमने स्थापित मूल्यों, सिद्धांतों, दृष्टिकोण एवं विचारों से कितना प्राप्त किया एवं उन्हें बनाये रखा। अतः हम आज 6 अप्रैल 2023 अर्थात 43 वर्षों के राजनैतिक सफर पर देखें कि डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय के जनसंघ से प्रारंभ राजनैतिक सफर पं. अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी एवं नितिन गडकरी, श्री नरेन्द्र मोदी, श्री अमित शाह, श्री जगत प्रकाश नड्डा जी के नेतृत्व में कहाॅं तक पहुॅंचा।
पं. दीनदयाल जी ने कहा ‘‘जनसंघ’’ क्यों, किसलिए ?
25 जनवरी 1960 को पान्चजन्य में पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने अपने आलेख में जनसंघ क्यों किसलिये ? पर टिप्पणी करते हुये कहा कि हमारा कार्य व्यक्तिगत हो अथवा सामाजिक उसका आधार जब तक ‘‘धर्म’’ नहीं बन जाता, मनुष्य की मूल प्रकृति में न तो परिवर्तन होगा, न ही समाज की आवश्यकताआंे एवं व्यक्ति की आकांक्षाओं में सामंजस्य होगा। भारतीय सत्तारूढ़ दल हो अथवा विपक्ष दोनों ने आधारभूत सिद्धांतों की उपेक्षा की। अतः भारतीय जनसंघ को इस कारण से जन्म लेना पड़ा। ‘‘स्वधर्म’’ एवं ’’स्वराज’’ एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते हैं यहाॅं धर्म का अर्थ ’’उपासना‘‘ या ‘‘पंथ’’ नहीं है। समाज की धारणा करने वाला दर्शन ही उसका धर्म है। इसीलिये जनसंघ तात्कालीन सत्ता नीति के लिए नहीं बल्कि भारत के प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों का आधार लेकर युग के अनुकूल परिवर्तन चाहता है। भारतीय जनसंघ के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 29 अक्टूबर 1951 को अपने प्रथम अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा महान ध्येय तथा स्पष्ट उद्देश्यों के प्रति, जिनको समक्ष रखकर जनसंघ देश की सेवा करना चाहता है, हमारी दृढ़ निष्ठा ही एक तत्व है जो हम सबको एक सूत्र में बांध रही है। मुझे विश्वास है कि यदि संगठित रूप में अदम्य साहस और उत्साह के साथ कार्य और सत्यता से विचलित न होते हुए जनता जनार्दन की सेवा तथा मातृभूमि के मान एवं गौरव की वृद्धि के प्रमुख लक्ष्य को सदा अपने सन्मुख रखेंगे, तो निश्चय ही अंत में विजय हमारी होगी।’’
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने काश्मीर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘‘आजादी के बाद से ही नेहरू जी की गलत नीतियों के चलते काश्मीर राष्ट्रदोही ताकतों के शिकंजे में फंसता जा रहा था। भारतीयों के खून से सींचे काश्मीर में प्रवेश के लिए भारतीयों को ही परमिट लेना पड़ता था। ऐसी विभाजक नीतियों के विरूद्ध जनसंघ ने राष्ट्रव्यापी संघर्ष किया डाॅ. मुखर्जी ने आव्हान किया कि ‘‘इस दीपक की लौ को जलाए रखने के लिए इसे सामान्य तेल से नहीं बल्कि असंख्य नामी और अनामी सेवाव्रतियों ने अपने तप और बलिदान से जलाए रखा।’’
जनसंघ के मूल सिद्धांत ही भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांत – बंधुओं, 1947 को भारत के स्वतंत्रता के पश्चात सत्ताधारी दल की तानाशाही, एकता-अखंडता के विपरीत आचरण, गाॅंधी जी की हत्या एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आरोप एवं प्रतिबंध ने 21 अक्टूबर 1951 को डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय की सोच के साथ ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई। 1977 में जनता पार्टी में विलय तथा पुनः 6 अप्रैल 1980 को दीपक का पुनर्जन्म ‘‘कमल’’ के रूप में हुआ एवं भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, एकात्मवादी दृष्टिकोण, व्यक्ति एवं समाज में एकरूपता, परम पुरूषार्थ, धर्म-राज्य अर्थात् विधान के राज्य की स्थापना, जनतंत्र में श्रद्धा समेत स्वातंत्र्य सूत्र जैसे 8 सूत्रों के आधार पर अपना राष्ट्रीय दर्शन प्रस्तुत किया। जो भारतीय जनसंघ के प्रमुख सूत्र थे। भारतीय जनता पार्टी के इन सूत्रों के अतिरिक्त एकात्म-मानव के दर्शन, गाॅंधीवादी समाजवाद, स्वदेशी एवं स्वावलंबन जैसी मूल धारणाओं को शामिल किया तथा पार्टी का मूल ध्येय ‘पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुॅंचना प्रमुख ध्येय है।’ भारतीय जनता पार्टी के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन, जो बम्बई में (अब मुम्बई) में हुआ इस महाधिवेशन को भारतीय जनता पार्टी के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष पं. अटल बिहारी बाजपेयी जी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘‘मैं जानता हूॅं कि इस नाजुक घड़ी में किसी राजनीतिक दल का नेतृत्व ग्रहण करना कितना टेढ़ा काम है। मैं यह भी जानता हूॅं कि भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष पद, अलंकार की वस्तु नहीं, अवसर है, सत्कार नहीं चुनौती है। परमेश्वर से प्रार्थना है कि वह मुझे शक्ति व विवेक दे, जिससे मैं इस दायित्व को ठीक तरह से निभा सकूॅं।’’ भारतीय जनसंघ की स्थापना पर जिन सिद्धांतों एवं मूल्यों को हमने स्वीकार किया था, वे लगभग भारतीय जनता पार्टी के गठन के दौरान भी जस के तस स्वीकार किए गए। हमने जिन पंच निष्ठाओं को स्वीकार किया, वे हमारी पथ प्रदर्शक एवं सतत मार्गदर्शन करती रही हैं।
राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय एकात्मता लोकतंत्र-l सामाजिक-आर्थिक विषयों पर गांधीवादी दृष्टिकोण (जिससे शोषण मुक्त एवं समतायुक्त समाज की स्थापना हो सके।) सकारात्मक पंथ- निरपेक्षता अर्थात् सर्वधर्म-समभाव मूल्यों पर आधारित राजनैतिक प्रतिबद्धता के साथ आर्थिक राजनैतिक विकेन्द्रीकरण में पार्टी विश्वास करती है। भारतीय जनता पार्टी की अटल जी सरकार की उपलब्धियाॅं – भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी ने मूल्यों, सिद्धांतों, व्यवहार एवं कार्यकर्ताओं के संगठन के आधार पर 1998 फिर 1999 में 2004 तक दिल्ली की गद्दी को प्राप्त किया तथा 2004 तक देश ने जो कुछ हासिल किया ‘न भूतों न भविष्यति’ था।