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- मोनिका डागा ‘आनंद’
शिक्षा और संस्कार मानव जाति के उत्थान के लिए सर्वोपरि है बिना उच्च शिक्षा और संस्कार के मानव जन्म ही बेकार हैं। अच्छे संस्कार और शिक्षा की बलबूते पर ही एक नारी दो घरों को सजाती व संवारती है और साथ ही परिवार में उच्च आदर्श स्थापित करती हैं। शिक्षा और संस्कार को एक दूसरे के पूरक है। बिना शिक्षा के संस्कार की पूर्ण उपयोगिता नहीं है और बिना संस्कार के शिक्षा भी अधूरी है इसलिए संस्कार के साथ शिक्षा का समावेश और शिक्षा के साथ संस्कार का मिलन होना बहुत ही आवश्यक है। संस्कार, शिक्षा को और भी मजबूत और सशक्त बना देते हैं व इसके समन्वय से बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण होता है जो राष्ट्र की प्रगति में सहायक है। बिना संस्कारों के शिक्षा का कोई मोल नहीं है।
सरल भाषा में यूं समझिए तो शिक्षा और संस्कार एक ही सिक्के के दो पहलू है, जितनी शिक्षा जरूरी है उतने ही संस्कार भी जरूरी है और इनका रिश्ता सुई धागे के जैसा है। जितना मजबूत यह रिश्ता होता है उतना ही दीपक का उजाला दूर-दूर तक फैलता है । संस्कार से ही सुखद जीवन की नींव पड़ती है और शिक्षा के सहयोग से जीवन में प्रगति व सम्मान प्राप्त होता है। जीवन की परिपक्वता शिक्षा और संस्कारों से निकलती है और सशक्त होती हैं।
हम बचपन से सुनते आ रहे हैं मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव: आचार्य देवो भव:, अतिथि देवो भव: यह हमारी महत्वपूर्ण संस्कृति की एक झलक है और हमारे कुछ अनमोल संस्कार भी, जो हम आगे ले जाते हैं, और हमारे व्यक्तित्व का सुंदर सृजन करते हैं । यही हम अपने बड़े बुजुर्गों से पाते हैं और इनको अपने बच्चों में ढालने की कोशिश करते हैं। संस्कार ही जीवन दर्शन है, शिक्षा और संस्कार से ही हमारा चहुंमुखी विकास होता है। शिक्षा और संस्कार के मेल से ही सुंदर और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
किसी भी समाज का उत्थान व देश की प्रगति की नींव शिक्षा और संस्कारों की सुंदर धरोहर पर निर्भर करती है, शिक्षा उच्च कोटि की होगी तो संस्कार भी मजबूत होंगे। हमें अपनी भारत भूमि पर और हमारे संस्कारों पर सदैव गर्व है।
जिनके जीवन में शिक्षा और संस्कार का बढ़िया तालमेल, है वह जीवन की परीक्षा में कभी फेल नहीं होते। जीवन में कोई भी परिस्थिति हो, कोई भी कठिनाई हो, कैसा भी दौर चल रहा हो, शिक्षित और संस्कारी व्यक्ति कोई न कोई हल ढूंढ़ ही लेता है और अपने हौसले और आत्मविश्वास के बल पर उन कठिनाइयों की परवाह किए बगैर साहस के साथ आगे बढ़ता है और अपने जीवन में सुखद परिवर्तन का सृजन करता है। गुरुजनों से शिक्षा प्राप्त कर हम मन मस्तिष्क में ज्ञान की ज्योति जगाते हैं और हमारी संस्कृति व संस्कारों को और भी बलशाली बनाते हैं। हमारी जीवन शैली और भी समृद्ध, सुदृढ़ बन जाती हैं। जीवन में कई सारे मानवीय गुणों का समावेश होता हैं और पशु के भाती जीवन नहीं व्यतीत करते हैं।
अशिक्षा जीवन में अनेक अनेक दुर्गुणों को जन्म देती है और संस्कारों से रहित व्यक्ति किस का भी प्रिय नहीं हो सकता। यह संस्कार हमारी आत्मा को पवित्र रखने में सहायक होते हैं। हम अपराध और गलत कर्मों को करने से बच जाते हैं हमारे जीवन में पुण्यों का संचय होना शुरू हो जाता है और हम अपना कर्म सोच समझकर करते हैं।
इसीलिए जीवन में शिक्षा और संस्कारों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। कोई भी व्यक्ति कितना बड़ा धनवान हो या गरीब हो इससे फर्क नहीं पड़ता, उसका व्यवहार सबके साथ कैसा है क्या वह संस्कारी है और शिक्षित है यह मायने रखता है। जीवन में शिक्षा और संस्कार बहुत ही आवश्यक है तभी मानव मानव है और वह अपने कर्मों से देवत्व की प्राप्ति भी कर सकता है।