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उनके मंदिर बनने की तो बहुत खुशी है पर मेरा जीर्णोद्धार कब होगा

  • प्रभात झा
    भारत में सामान्य तौर पर किसी से भी पूछा जाए कि भगवान श्रीराम लला का जन्म कहां हुआ, तो सभी तपाक से उत्तर देंगे अयोध्या। हर भारतीय के जुवां पर यह नाम है। इसी तरह यदि आप पूछें की मां जानकी का जन्म कहां हुआ तो लोग उत्तर देते हैं ‘जनकपुर’। जो सरासर गलत है। जनकपुर तो मैं जानकी/सीता जी का ननिहाल और विवाह स्थल है। सत्य यह है कि मां जानकी जहां प्रकट हुई थीं उस स्थान का नाम ‘पुनौराधाम’ है। यह स्थान बिहार के सीतामढ़ी जिले में सीतामढ़ी शहर से साढ़े तीन किलोमीटर दूर स्थित है। यह वही स्थान है, जहां एक बार अकाल पड़ने पर राजा जनकजी को कहा गया कि आप यदि स्वयं खेत में हल जोतेंगे तो अकाल समाप्त हो जायेगी और वरुण देवता प्रसन्न हो जाएंगे। उस समय जनकपुर भारत का हिस्सा हुआ करता था, पर आज जनकपुर नेपाल में है। पर मां सीताजी का प्राकट्यस्थल पुनौराधाम आज भी भारत में है। इसके शास्त्रों में प्रमाण भी उपलब्ध हैं।
    वृहद विष्णुपुराण के मिथिला खंड में वर्णित है कि हम संसार में प्राणियों की सारी मनोकामनाएं पूरी करने वाली विशेष फलदायक यज्ञ स्थली पुण्योर्वरा (पुनौराधाम) की यात्रा और दर्शन विशेषकर चैत्र श्री रामनवमी और वैशाख श्री जानकी नवमी में मोक्ष की अभिलाषी को करने चाहिए, क्योंकि दोनों तिथि क्रमशः श्रीराम जी का जन्मदिवस और मां सीता जी का प्राकट्य दिवस है। वर्णन है कि एक बार सम्पूर्ण मिथिला में घोर दुर्भिक्ष पड़ गया। अनावृष्टि से मिथिलावासियों में त्राहि-त्राहि मच गई। लोग अन्न और जल के अभाव में दम तोड़ने लगे। सब जीव-जंतु व्याकुल हो उठे। उस समय मिथिला महाराजा निमि के वंशज राजा जनक राज कर रहे थे। ‘यज्ञ से वर्षा होती है और वर्षा के प्रभाव से अन्न उत्त्पन्न होता है’। इससे प्रभावित होकर राजर्षि जनक ने अपने राज्य के विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ज्योतिषियों की आपातकालीन सभा बुलाकर भीषण दुर्भिक्ष की विभीषिका से त्राण पाने के उपाय पर विचार-विमर्श किया। सर्वसम्मत से निर्णय लिया गया कि राजा जनक को हलेष्ठी यज्ञ करना चाहिए। इसके निमित्त शोध के आधार पर पुण्यारण्य (पुण्डरीक आश्रम) को उपयुक्त स्थान के रूप में चयन किया गया।
    वृहद विष्णुपुराण के मिथिला माहात्म्य के अष्टम अध्याय में वर्णित है कि राजर्षि जनक का जो प्राचीन दुर्ग था , उसके पारतः पंचकोशी चार विशाल द्वार थे। वे इन दिनों भी वर्तमान जनकपुरधाम से क्रमशः दस मील उत्तर की ओर धनुषा, दस मील दक्षिण की ओर गिरजा स्थान, दस मील पूरब की ओर हरिहरालय महादेव और दस मील पश्चिम जलेश्वरनाथ के नाम से लोक विदित है। यह स्पष्ट है कि महाराजा जनक इसी जलेश्वरनाथ(शिव जी का जलशयन स्थल) से पश्चिम भाग में शास्त्रवत अठासी ऋषियों एवं रानी सुनैना सहित तीन योजना के बाद हलेष्ठी यज्ञार्थ पुण्डरीक आश्रम पुण्यारण्य पधारे थे, जहां हलेष्ठी यज्ञ की सिद्धि प्राप्त हुई और मां जानकी का प्राकट्य हुआ।
    पद्मपुराण में वर्णन है कि जानकी नाम तो जनक जी के वंशानुगत जनक शब्द से रखा गया, लेकिन शास्त्रानुसार उनका नाम ‘सीता’ होना अपेक्षित है, क्योंकि सीत(फार का नुकीला अग्र भाग) और सीता(सिराउर) के संयोग से उत्पत्ति होने के कारण सीता नाम की पुष्टि होती है। जन्म के बाद लौकिक एवं वैदिक रीतियों से वर्षा से बचाने के लिए ‘मड़ई’ (मढ़ी) में मां सीता जी रखी गईं तथा उस स्थान का नाम सीतामढ़ी हुआ।
    पुण्डरीक क्षेत्र अर्थात पुनौराधाम,जहां मां जानकी जी का प्राकट्य हुआ, वहां कई पुरातन स्मृतियां हैं, जिनका वर्णन और वहां की भाषाएं का उल्लेख रामायण, पुराणों, संहिताओं एवं इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में वर्णित है, सनातन में अविस्मरणीय-अमिट है। पुनौराधाम में प्रवेश मात्रा से प्राणी पवित्र हो जाता है। मां जानकी कुण्ड में जलस्पर्श एवं स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। मां जानकी जन्म कुण्ड को पुण्यनिधि कहा गया है। शास्त्रों-पुराणों में वर्णन है कि यहां तीर्थाटन करने से सभी पापों, संकटों से मुक्ति पाकर श्रद्धालु पुण्यलोक की प्राप्ति कर सकते हैं।
    जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने इसका शास्त्रों में प्रमाण देते हुए वर्णन किया है कि: ‘सीताराम गुणग्राम पुण्यारण्य विहारिणी, वंदे विशुद्ध विज्ञानों कवीश्वर कपीश्वर’(बालकाण्ड संख्या-3)। इसका अर्थ है कि श्री सीताराम जी के गुण समूह रूपी पवित्रता में विहार करने वाली पुण्यारण्य अर्थात पुनौराधाम विशुद्ध विज्ञान संपन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकि जी और कपीश्वर श्री हनुमान जी की मैं वंदना करता हूं।
    जगतगुरु रामभद्राचार्य जी गत 12 वर्षों से लगातार पुनौराधाम में जानकी नवमी आने के नौ दिन पूर्व से जगत जननी मां जानकी की जन्म स्थली पर नौ दिन कथा कर जानकी नवमी सम्पन्न कर समाज को सदैव संदेश देते हैं कि ‘पुनौराधाम’ ही मां जानकी का प्राकट्य स्थल है। मैं और जगतगुरु रामभद्राचार्य जी बिहार के तत्कालीन राज्यपाल के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को इस आशय की जानकारी भी दी। आजादी के बाद पहली बार कोई संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्तित्व तत्कालीन राज्यपाल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी पुनौराधाम पहुंचे। उन्होंने हजारों की सभा में कहा कि ‘पुनौराधाम के बारे में तो मुझे पता ही नहीं था कि यह मां जानकी जी का प्राकट्य स्थल है। यह तो मैं प्रभात झा जी जो हमारे मिथिला के ही गौरव हैं, ने जब बताया तो जानकारी मिली। जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने कहा कि आप जानकी नवमी पर आईये तो मैं वहां पहुंचा’। नीतीश जी ने कहा कि बिहार सरकार पुनौराधाम स्थित मां जानकी के प्राकट्य स्थल का धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विस्तार करने की दिशा में अनेक कदम भविष्य में उठाये जाएंगे।
    अयोध्या में भगवान रामलला का भव्य और दिव्य मंदिर वर्षों के संघर्ष के बाद न्यायालय के फैसले से बनकर तैयार हो गया। अभी अयोध्या में भगवान रामलला के मंदिर का प्रथम चरण बना है जिसकी जिसकी प्राणप्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों द्वारा किया गया। कहा जाता है कि ‘बिना राम के सीता नहीं और बिना सीता के राम नहीं’। पूरे विश्व से अयोध्या में बने भगवान रामलला के भव्य दिव्य मंदिर के दर्शनार्थ आज लाखों लोग पधार रहे हैं। अयोध्या का विकास इतना हो रहा है कि आने वाले दिनों में अयोध्या विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक पर्यटन स्थल बन जाएगा। ऐसा होना हमारी आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाएगा भी।
    पर दूसरी ओर, मां जानकी(सीताजी) का प्राकट्यस्थल पर न चर्च है, न मस्जिद है, न किसी तरह का जमीनी विवाद है, और तो और वहां मां जानकी का एक छोटा मंदिर भी बना है। वहां वह स्थल भी मौजूद है जहां राजा जनक ने हल जाता था और मां ‘सीता’ हल जोतते समय एक मटके से हल के अगले हिस्से जिसे ‘सीत’ कहा जाता है, के लगने से प्रकट हुईं। ‘सीत’ जो हल का अगला हिस्सा होता है उसके लगने से ही मां सीता प्रकट हुईं। ‘सीत’ के कारण ही उनका नाम ‘सीता’ पड़ा । पुनौराधाम से राजा जनक ने उन्हें एक ‘मढ़ी’ में लेकर गए, आज जिसे ‘सीतामढ़ी’ कहा जाता है। उसके पीछे की कहानी जानकार लोग यही कहते हैं।
    भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी जब भी अयोध्या में गए थे जय श्रीराम नहीं बोले वह हमेशा ‘जय सियाराम’ ही बोले। अब सवाल उठता है कि मां जानकी सीता जी के प्रकट स्थल का जीर्णोद्धार कब होगा। जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने प्रण लिया हुआ है कि जब तक मां सीता जी के प्रकट स्थल का जीर्णोद्धार और यह भारत का श्रेष्ठ धाम नहीं बनेगा मेरी कथा सदैव जानकी नवमी पर यहां होती रहेगी। मैं स्वयं राज्यसभा में भी पुनौरा धाम का मामला और वहां मां जानकी के प्राकट्य स्थल के संपूर्ण विकास का मामला उठाया था सदन में सभी दलों ने इसका समर्थन भी किया था। बहुत मुश्किल से भारत में लोगों को अब यह जानकारी हुई है कि पुनौराधाम जो सीतामढ़ी से मात्र साढ़े तीन किलोमीटर दूर है, मां सीता का प्राकट्यस्थल है। नहीं तो लोगों के मन में तो अभी भी जनकपुर का नाम ही बैठा था।

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